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नाक दर्द व हड्डी का बढ़ना

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नीलम चड्ढा

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अकसर कुछ लोगों को साँस लेने में तकलीफ होती है, उन्हें नाक की हड्डी बढ़ी हुई महसूस होती है, नाक में कुछ जमा हुआ सा महसूस होता है। और जब वे नाक में जमा मैल निकालने की कोशिश करते हैं तो उनकी नाक से खून भी निकलने लगता है।

नाक विशेषज्ञों का कहना है कि एक बार नाक की हड्डी बन जाने के बाद वह कभी भी किसी दिशा में नहीं बढ़ती। जो लोग यह समझते हैं कि हड्डी बढ़ गई है तो उसके कई कारण हैं।

अगर बचपन में कभी हड्डी पर चोट लग गई हो, दब गई हो या दबाव से अपने स्थान से खिसक जाए तो इन दशाओं में नाक की मध्य हड्डी एक तरफ झुक जाती है।

नाक की हड्डी टूटने, दबने या कभी-कभी पूरी तरह अपने स्थान से खिसकने के कारण भी नाक का आकार ही टेढ़ा दिखाई देने लगता है।

जब बच्चा युवावस्था में आता है तो ऐसी दशा में टूटी हुई नाक आधी लंबाई में तो बढ़ती ही है, इसके साथ ही टूटा हिस्सा भी अलग दिशा में बढ़ने लगता है, जो नसिका को छोटा कर देता है तथा नाक का छेद छोटा होने से साँस और जुकाम रहने की तकलीफें प्रारंभ हो जाती हैं।

तीसरी दशा में नाक की हड्डी टूटती नहीं, बल्कि दबकर मुड़ जाती है और 'एस' या 'सी' के आकार में आकर नाक के किसी हिस्से के एक छिद्र को छोटा कर देती है। इससे नाक के एक छिद्र से तो साँस भी नहीं ली जा सकती और दूसरे छिद्र में ज्यादा खुला स्थान होने के कारण धूल के कण भी साँस के साथ भीतर जाने का डर बना रहता है।

चोट या दबाव के अलावा कभी-कभी गर्भ में बच्चे की नाक पर दबाव पड़ जाने से नाक की हड्डी मुड़-तुड़ जाती है। कई बार फारसेप डिलीवरी में भी नाक पर चोट लग जाती है, इसलिए प्रसव के दौरान 10-15 मिनट का सामान्य समय पार हो जाने पर अन्य विकारों के साथ यह विकार आना भी स्वाभाविक है।

सिर्फ यही नहीं बल्कि नाक की हड्डी के खिसकने या टेढ़े होने पर अन्य परेशानियों के अलावा कभी-कभी गला दर्द, सिर दर्द और कभी-कभी साइन साइटिस के लक्षण भी दिखाई देते हैं। ऐसे में रोगी को सुबह तेज सिर दर्द व शाम को कम सिर दर्द की शिकायत रहने लगती है।

उपचार के प्रकार

  अगर विकार छोटा हो तो एंटीबायोटिक दवाएँ देकर रोग का इलाज किया जा सकता है। यदि हड्डी एक तरफ ज्यादा मुड़ी हुई हो या निकली हुई हो तो सैप्टोप्लास्टी ऑपरेशन करके हड्डी को अपने निश्चित स्थान पर रख दिया जाता है।      
* कभी-कभी लोग नाक में तकलीफ होने पर अपने आप बाजार से मिलने वाले ड्रॉप्स डालने लगते हैं। इससे शुरू में तो नाक में जमा मैल सिकुड़ जाता है व साँस का आवागमन चालू हो जाता है पर दवा का असर खत्म होते ही मैल फिर अपनी स्थिति में वापस आ जाता है। लगातार दवा डालते रहने से दवा का असर भी खत्म हो जाता है व दवा के इस्तेमाल के 'साइड इफेक्ट' के कारण नाक में इन्फेक्शन भी हो जाता है।

* अगर विकार छोटा हो तो एंटीबायोटिक दवाएँ देकर रोग का इलाज किया जा सकता है। यदि हड्डी एक तरफ ज्यादा मुड़ी हुई हो या निकली हुई हो तो सैप्टोप्लास्टी ऑपरेशन करके हड्डी को अपने निश्चित स्थान पर रख दिया जाता है। यह ऑपरेशन मात्र आधे घंटे से एक घंटे का होता है और अगर हड्डी एक तरफ ज्यादा निकली हुई हो तो उसे वहां से हटा दिया जाता है।

इस ऑपरेशन के बाद पट्टियों का पैक लगाकर 48 घंटे के लिए नाक के छिद्र बंद कर दिए जाते हैं। पट्टियाँ खुलने पर दवाइयाँ, ड्रॉप्स दिए जाते हैं। रोगी को एलर्जी है तो उसकी दवा भी दी जाती है। दवा बंद होने पर भी एक महीने के अंतर से रोगी को 3-4 बार डॉक्टर से चेकअप अवश्य करवा लेना चाहिए।

* नाक के ऑपरेशन 16 या 17 साल से पहले नहीं करवाना चाहिए, क्योंकि एक बार आई जटिलता उम्र बढ़ने के साथ फिर आने की संभावना बनी रहती है। सो पूरी तरह बढ़ चुकी हड्डी को ही सामान्य बनाने के लिए ऑपरेशन करवाना उचित रहता है।

* यदि जन्म से ही बच्चे की नाक टेढ़ी लगे, बहती रहे या साँस की तकलीफ महसूस करें तो ई.एन.टी. (कान, नाक, गला रोग) विशेषज्ञ को तुरंत दिखाएँ, उसी समय किया गया उपचार ही स्थायी होता है व आसानी से किया जा सकता है।

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