आँखें- हमारी आत्मा की खिड़की। जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि- जितनी दृष्टि उतनी सृष्टि का भाव प्रदर्शित होता है। नजर के पास वाले पदार्थों व जीवों के प्रति अधिक ममता की नजर से दूर वाले पदार्थ व जीवों के प्रति कम ममता का भाव प्रदर्शित होता है।कान- शरीर के प्रत्येक हिस्से के एक्युप्रेशर के केन्द्र यहाँ पर हैं। सुनने की क्षमता के भावों को प्रदर्शित करता है।जबड़े- विचारों व भावनाओं को रोंदने पर यह अंग खिंचाव का अनुभव करता है। डर व सुरक्षा के भावों को दर्शाता है।हाथ की कलाइयाँ- ये अंग हृदय चक्र का क्षेत्र होने के कारण प्रेम की भावनाओं को व्यक्त करते हैं।छाती- यहाँ पर जीवन के तत्व हैं। श्वासोश्वास के साथ संबंध है, हृदय का केन्द्र है। अन्य व्यक्ति के संबंधों को दर्शाता है।पेट- पाचन शक्ति का केन्द्र। जातीयता का केन्द्र। भावनाओं की यहाँ पर बैठक है व गहरी भावनाओं का यहाँ पर संग्रह होता है।गुप्तांग, जनन अवयव- यहाँ पर जीवन के तत्व स्थित है, जीवन के अस्तित्व का भय यहाँ बना रहता है।
घुटने- शारीरिक परिवर्तन का भय, बूढ़े होने का भय, स्वाभिमान में कमी होने का भय व मृत्यु के भय के कारण यहाँ पर तकलीफ होती है।
पैर- अपनी ध्येय-प्राप्ति न होने व अस्थिरता के भावों के कारण यहाँ तकलीफ होती है।
कन्धा- संतुलन बनाए रखने का भाव, जवाबदारी का भाव, जगत का भार रहने के भाव व्यक्त होते हैं। स्त्रियाँ यहाँ पर अधिक संग्रह करती हैं।
किसी भी प्रकार की साधना द्वारा, व्यायाम द्वारा, रेकी अभ्यास द्वारा, हलन-चलन द्वारा या तीव्र गति से पैदल चलने से शरीर के अंदर संग्रहित मनोभावों के तनावों से मुक्ति प्राप्त करके स्वयं को स्वस्थ व आकर्षक बनाया जा सकता है।