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होम्योपैथी में सायनस का अचूक इलाज

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- डॉ. कैलाशचंद्र दीक्षित

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होम्योपैथी सर्दी-जुकाम और एलर्जी में अचूक इलाज करती है। चिकित्सक मरीज के लक्षणों के आधार पर दवा निर्धारित करता है, इसीलिए चिकित्सा की इस पद्धति में कोई पेटेंट दवा नहीं होती।

मेरे पास 29 साल के का एक युवक आया जिसे सायनस की पुरानी समस्या थी। उसके सायनस पिछले चार साल से भरे रहते थे। उसकी समस्या सामान्य सर्दी-जुकाम, छींकों और पानी जैसी बहती नाक से शुरू हुई थी, जो बाद में 'सायनॉसाइटिस' में तब्दील हो गई थी।

उसकी नाक से पीलापन लिए हुए हरे रंग की श्लेष्मा बहती थी तथा उसे निरंतर सिरदर्द की शिकायत बनी रहती थी। चिकित्सकों द्वारा मरीज का एक्स-रे कराने पर पाया गया कि उसके दोनों यानी अगले और मैक्सिलरी सायनसेस पूरी तरह भरे हुए थे। नाक की खोकल में कुछ पॉलिप्स भी पाए गए। चिकित्सकों ने सायनस और पॉलिप्स की सर्जरी का निर्णय लिया। सर्जरी के साथ ही मरीज की समस्या भी दूर हो गई।

सर्दी-जुकाम और एलर्जी में होम्योपैथी अचूक इलाज करती है। चिकित्सक मरीज के लक्षणों के आधार पर दवा निर्धारित करता है, इसीलिए चिकित्सा की इस पद्धति में कोई पेटेंट दवा नहीं होती। एक युवक को सायनस की पुरानी समस्या थी और इलाज के जरिये वह रोगमुक्त हो गया
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मरीज को आराम आ गया, पर यहाँ कहानी का अंत नहीं होना था। छः महीने बीतते न बीतते मरीज को फिर से सर्दी-जुकाम का जबर्दस्त अटैक आया, जो 15 दिन तक लगातार बना रहा। इसके बाद फिर से मरीज को सायनॉसाइटिस के लक्षण उभरने लगे। इस बार मरीज बुरी तरह से घबरा गया, क्योंकि उसे पहले होने वाली समस्याओं का कड़वा अनुभव हो चुका था।

मरीज को पुनः सिरदर्द और नाक ठस रहने की समस्या खड़ी हो गई। इस बार एक नई समस्या ने भी मरीज को घेर लिया। मरीज का सिर इस तरह भारी रहने लगा, मानो वह नशे में हो। मरीज एक पेशेवर स्टॉक ब्रोकर था, जिसे नियमित रूप से लगतार 10 घंटे तक कम्प्यूटर पर बैठना होता था। नाक की परेशानी से वह अपने काम पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाता था।

जैसे ही वह अपने सिस्टम पर काम करना शुरू करता था, उसके सिर और आँखों में भारीपन होने लगता था। किसी भी ठंडी खाने पर या ठंडी हवा लगते ही उसका दर्द और तीव्र हो उठता था। सिरदर्द से निपटने के लिए उसे दर्दनिवारक दवाईयाँ लेनी पड़ती थी, लेकिन उनका असर अस्थायी रहता था, क्योंकि दर्द होने का कारण हमेशा बैचेन रहता था।

नाक ठस बंद रहने के कारण मरीज की रातों की नींद भी पूरी नहीं हो पाती थी। उसे बीच-बीच में नींद उचटने की समस्या रहती थी, क्योंकि मुँह से साँस लेने में गला सूख जाता था, इसलिए वह जब भी सुबह उठता था तब उसे ऐसा लगता था कि थोड़ी देर और सो लें तो अच्छा। इसी वजह से उसका सुबह का रूटीन बुरी तरह से बिगड़ चुका था।

किसी मित्र की सलाह पर उसने होम्योपैथिक इलाज कराने का मन बनाया। उसका केस लेने पर हमने पाया कि उसके सायनसेस भरे होने की समस्या फिर से उठ खड़ी हुई है। उसके पॉलिप्स भी बढ़ गए हैं। लक्षणों के आधार पर मरीज का इलाज शुरू किया गया।

इलाज का असर धीरे-धीरे शुरू हुआ, क्योंकि मरीज पैन किलर्स के साथ ठस नाक को खोलने के लिए डिकन्जटेंट दवाएँ भी ले रहा था। धीरे-धीरे उसकी दूसरी दवाएँ बंद की गईं। पाँच-छः महीनों के बाद उसकी हालत में कुछ सुधार होता नजर आया। थोड़े समय बाद उसकी बीमारी के सभी लक्षण गायब हो गए। पूरी तरह ठीक होने के बाद भी कुछ और समय तक उसका इलाज जारी रखा गया, ताकि उसकी सायनस की समस्या फिर से न उठ खड़ी हो।

मेरा यह सुझाव है कि जो मरीज सायनस को मामूली मानते हैं, वे इस भूल में नहीं रहे और समुचित इलाज के जरिये वे अपनी बीमारी से निजात पा सकते हैं। जब भी कोई सायनस का मरीज मेरे पास आता है तो मुझे सहसा उस 29 वर्षीय युवक की याद आ जाती है, जिसे मैंने बीमारी से मुक्त किया था।

( डॉ. कैलाशचंद्र दीक्षित ने 1967 में बीएससी के करने के बाद होम्योपैथ एंड बायोकेमी में डिप्लोमा हासिल किया। इंदौर (मप्र) के छावनी स्थित क्लीनिक में उन्होंने होम्योपैथिक के जरिये 41 सालों के दौरान अनेक असाध्य रोगियों को ठीक किया है। उन्हें माइग्रेन और एलर्जी के इलाज में महारत हासिल है)

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