Dharma Sangrah

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

आजादी का अमृत महोत्सव : 75 वर्ष में भारत के विश्वगुरु बनने की रखी गई नींव

Advertiesment
हमें फॉलो करें Bharat vishwa guru

अनिरुद्ध जोशी

, शनिवार, 6 अगस्त 2022 (18:02 IST)
Aazadi ka amrit mahotsav 2022 : प्राचीनकाल में भारत विश्‍वगुरु था और अब वह पुन: इसी राह पर है। भारतीय दर्शन, धर्म और संस्कृति को समझना बहुत कठिन है और उससे भी ज्यादा कठिन है आज के बुद्धिमान मनुष्य को समझाना। वह मनुष्य जो अब तर्क और विज्ञान की कसोटी पर सब कुछ परखकर ही किसी बात पर विश्वास करता है। ऐसे में भारतीय संतों के सामने चुनौतियां तो बहुत थीं लेकिन आजाद भारत में जो कार्य हुआ है अब उसकी कलियां खिलने लगी हैं या जो नींव खोदी गई थी अब उस पर नींव खड़ी हो गई है। कैसे?
 
 
सैंकड़ों दार्शनिक और संतों ने बदली भारत के प्रति दुनिया की सोच : 1850 से 1960 के बीच भारत में सैंकड़ों महान आत्माओं का जन्म हुआ। लेकिन यदि हम धर्म की बात करें तो ऐसे संत हुए जिन्होंने देश ही नहीं पुरी दुनिया के मस्तिष्क को बदल कर रख दिया। भारत ने इस काल खंड में जो ज्ञान पैदा किया उसकी गूंज अभी भी दुनिया में गूंज रही है। देश और विदेश में भारत के इन संतों ने भारतीय दर्शन, योग और धर्म की महानता को स्थापित कर भारत के बारे में विदेशियों का नजरिया बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन्हीं संतों की बदौलत हमें भारत पर गर्व है।
 
स्वामी विवेकानंद (1863-1902): भले ही स्वामी विवेकानंद का जन्म आजाद भारत में नहीं हुआ लेकिन उनके विचारों की गुंज आजाद भारत में ही गुंजी। आज भी उनके विचार देश और दुनिया को प्रभावित करते हैं। विवेकानंद को युवा सोच का संन्यासी माना जाता है। अमेरिका के शिकागो शहर में सन् 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासम्मेलन में सनातन धर्म पर उनके द्वारा दिए गए भाषण और वेदांत के प्रचार-प्रसार के कारण उन्हें विशेष रूप से जाना जाता है। उन्होंने ही 'रामकृष्ण मिशन' की स्थापना की थी।
 
परमहंस योगानंद (1893-1952): परमहंस योगानंद 1920 में बोस्टन पहुंचे थे। उन्होंने लॉस एंजेलेस में ‘सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप’ की स्थापना की। उन्होंने प्रसिद्ध पुस्तक ‘ऑटोबायोग्राफी ऑफ ए योगी ’ (एक योगी की आत्मकथा) लिखी। उनकी इस उत्कृष्ट आध्यात्मिक कृति हिंदी में 'योगी कथामृत' के नाम से उपलब्ध है। इस कृति की लाखों प्रतियां बिकीं और इसने सबसे ज्यादा बिकने वाली आध्यात्मिक आत्मकथा का रिकॉर्ड कायम किया है। इस पुस्तक में उन्होंने भारतीय दर्शन और रहस्य की ऐसी बातें लिखी हैं जिन्हें पढ़कर विदेशी लोग भारत और खुद की खोज में लग गए। 
webdunia
महर्षि अरविंद (1872-1950): 5 से 21 वर्ष की आयु तक अरविंद की शिक्षा-दीक्षा विदेश में हुई। 21 वर्ष की उम्र के बाद वे स्वदेश लौटे तो आजादी के आंदोलन में क्रांतिकारी विचारधारा के कारण जेल भेज दिए गए। वहां उन्हें कष्णानुभूति हुई जिसने उनके जीवन को बदल डाला और वे 'अतिमान' होने की बात करने लगे। वेद और पुराण पर आधारित महर्षि अरविंद के 'विकासवादी सिद्धांत' की उनके काल में पूरे यूरोप में धूम रही थी।
 
जे. कृष्णमूर्ति (1895-1986) : यह एक ऐसे दार्शनिक थे जिन्होंने बुद्धिवादियों को सबसे ज्यादा प्रभावित किया और भारतीय दर्शन को एक नए रूप में प्रस्तुत करके दुनिया को सोचने पर मजबूर कर दिया। विज्ञानवादियों और नास्तिकों को इनकी भाषा ज्यादा समझ में आई।
 
स्वामी शिवानंद (1887-1963): स्वामी शिवानंद दार्शनिक होने के साथ ही योगाचार्य भी थे। उन्होंने योग, गीता और वेदांत पर 200 से अधिक किताबें लिखीं। स्वामी विष्णुदेवानंद उनके मशहूर शिष्य थे जिन्होंने ‘कंप्लीट इलस्ट्रेटेड बुक ऑफ योग’ नामक किताब लिखी। उनके दूसरे शिष्यों स्वामी सच्चिदानंद, स्वामी शिवानंद राधा, स्वामी सत्यानंद और स्वामी चिदानंद ने उनके प्रयासों को जारी रखा। स्वामी सत्यानंद ने 1964 में बिहार स्कूल ऑफ योग की स्थापना की। शिवानंद पहले मलेशिया में एक डॉक्टर थे बाद में उन्होंने भारत, यूरोप और अमेरिका में योग केंद्र खोले।
 
श्रीकृष्णामाचार्य (1888--1989): योग को विदेशी धरती पर प्रचारित करने में इनका बहुत योगदान रहा। आधुनिक समय में हठयोग के महान व्याख्याता रहे श्रीकृष्णामाचार्य ने बाकी लोगों के साथ प्रसिद्ध जिद्दू कृष्णमूर्ति को भी योग सिखाया है। श्रीकृष्णामाचार्य के एक और मशहूर विद्यार्थी हुए बी.के.एस.अयंगर (1918-2014) जो खुद भी एक गुरु थे।
webdunia
स्वामी प्रभुपादजी (1896-1977) : इंटरनेशनल सोसायटी फॉर कृष्णाकांशसनेस अर्थात इस्कॉन के संस्थापक श्रीकृष्णकृपाश्रीमूर्ति श्री अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपादजी के कारण ही पूरे विश्व में 'हरे रामा, हरे कृष्णा' का पवित्र नाम गूंज उठा। उन्होंने न्यूयॉर्क में कृष्णभवनामृत संघ की स्थापना की। न्यूयॉर्क से शुरू हुई कृष्ण भक्ति की निर्मल धारा जल्द ही विश्व के कोने-कोने में बहने लगी। लाखों विदेशी आज कृष्ण भक्त हैं।
 
श्रीराम शर्मा आचार्य (1911-1990) : शांति कुंज के संस्थापक श्रीराम शर्मा आचार्य ने हिंदुओं में जात-पात को मिटाने के लिए गायत्री आंदोलन की शुरुआत ‍की। जहां गायत्री के उपासक विश्वामित्र ने कठोर तप किया था उसी जगह उन्होंने अखंड दीपक जलाकर हरिद्वार में शांतिकुंज की स्थापना की। गायत्री मंत्र के महत्व को पूरी दुनिया में प्रचारित किया। आपने वेद और उपनिषदों का सरलतम हिंदी में श्रेष्ठ अनुवाद किया।
 
महर्षि महेश योगी (1918-2008): 'ट्रांसेंडेंटल मेडिटेशन' (अनुभवातीत ध्यान) के प्रणेता महर्षि महेश योगी के आश्रम अनेक देशों में हैं। मशहूर रॉक बैंड बीटल्स के सदस्यों के साथ ही वे कई बड़ी हस्तियों के आध्यात्मिक गुरु थे। उन्होंने वैदिक ज्ञान और शिक्षा का पुरी दुनिया में प्रचार प्रसार किया।
 
सत्य सांई बाबा (1926-2011) : सत्य सांई बाबा को शिर्डी के सांई बाबा का अवतार माना जाता है। विश्वभर में इनके आश्रम 'प्रशांति निलयम' की प्रसिद्धि है। विदेशों में सांई के लाखों भक्त हैं। उन्होंने भारतीय संस्कृति और धर्म के साथ ही समाज सेवा में भी अपना योगदान दिया। 
 
ओशो रजनीश (1931-1990) : ओशो रजनीश को जीवन संबंधी उनके विवादास्पद विचारों, सेक्स समर्थक और धर्म की आलोचना करने के कारण जाना जाता है, लेकिन भारतीय धर्म पर उनके प्रवचनों ने दुनिया के लाखों लोगों को लगभग पागल कर रखा है। दुनियाभर में हैरि पोटर्स के बाद उनकी पुस्तकों की बिक्री का नम्बर आता है। कहा जाता है कि उन्होंने भारतीय दर्शन और धर्म को पुन:स्थापित किया है।
webdunia
उपरोक्त के अलावा : दयानंद सरस्वती, रामकृष्ण परमहंस, एनी बेसेंट, नीम करौली बाबा, आनंदमूर्ति, रमन महर्षि, स्वामी रामतीर्थ, स्वामी कुवलयानंद, राघवेंद्र स्वामी, दादा लेखराज के योगदान को भी भूला नहीं जा सकता।
 
उपरोक्त के कार्य को ही वर्तमान में ये लोग बढ़ा रहे हैं आगे- मां अमृतामयी, सद्गुरु जग्गी वासुदेव, अवधेशानंद गिरि, बाबा रामदेव और श्रीश्री रविशंकर।
 
भारत विश्‍व गुरु बनने की राह पर : आज भारत और भारतीय धर्म एवं दर्शन को दुनिया के लोग गंभीरता से लेने लगे हैं। अमेरिका, जर्मन, रशिया, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन सहित करीब 55 ऐसे देश हैं जहां पर हिन्दू सनातन धर्म को मानने वाले और जानने वाले लोगों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। आजादी के पहले भारत को सपेरे का देश मानने वाले अब भारत को एक रहस्यमयी और अध्यात्म की भूमि कहने लगे हैं। वे अब खुद की खोज के चलते भारत की ओर रुख करने लगे हैं। जैसा की प्राचीनकाल में होता था कि पूरी दुनिया से लोग नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला, वल्लभी, पुष्पगिरि में पढ़ने और भारतीय धर्म को समझने आते थे, वैसा ही अब होने लगा है। आजाद भारत के इन 75 वर्षों में भारतीय संतों ने इतना कार्य किया है कि आने वाले समय में संपूर्ण विश्‍व योग और ध्यान करने लगेगा और भारत फिर से विश्व गुरु बनेगा।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

उपराष्ट्रपति चुनाव : TMC के आदेश का उल्लंघन कर पार्टी के 2 सांसदों ने डाला वोट, कुल 92% वोटिंग (Live Updates)