एक बार इस पर ब्रह्मा को चिंता हुई कि कल्प समाप्त होने पर चंद्र ओर सूर्य भी नष्ट होंगे। उन्होंने सोचा अब सृष्टि की स्थापना कैसे होगी। इस दुख के कारण आंसू गिरे जिससे हारव ओर कालकेलि नामक दो दैत्य प्रकट हुए। सृष्टि पर कुछ न होने के कारण दोनों दैत्य ब्रह्मा को मारने के लिए दौड़े। ब्रह्मा वहां से भागे। उन्होंने समुद्र के बीच प्रकाश देखा ओर पुरुष से उसका परिचय पूछा तो उन्होंने बताया कि सृष्टि पालक विष्णु हूं। ब्रह्मा ने उनसे दोनों दैत्यों से रक्षा करने के लिए कहा। दैत्य विष्णु को भी मारने के लिए दौड़े। ब्रह्मा-विष्णु दोनों समुद्र में छिप गए। यहां ब्रह्मा ने महाकाल वन में नूपुरेश्वर के दक्षिण में स्थापित शिवलिंग का पूजन करने के लिए कहा। ब्रह्मा-विष्णु दोनों महाकाल वन पहुंचे, शिवलिंग का पूजन किया।
शिव ने प्रसन्न होकर दर्शन दिए। शिव ने भय का कारण पूछा तो ब्रह्मा ने बता दिया। शिव ने दोनों को पेट में छिपा लिया ओर कुछ देर बाद जब दोनों बाहर निकले तो दोनों दैत्य भस्म हो चुके थे। ब्रह्मा ओर विष्णु ने शिव से वरदान मांगा कि जो भी मनुष्य शिवलिंग के दर्शन करेगा उसे आप अभयदान देंगे। तब से ही शिवलिंग अभयेश्वर महादेव के नाम से विख्यात हुआ। मान्यता है कि जो भी मनुष्य इस शिवलिंग का दर्शन कर पूजन करता है उसे धन, पुत्र ओर स्त्री का वियोग नहीं होता है। संसार के समस्त सुखों को भोग कर अंतकाल में परमगति को प्राप्त करता है।