शाकल नाम के नगर में राजा थे, चित्रसेन। उनकी रानी का नाम था चन्द्रप्रभा। राजा-रानी दोनों रूपवान थे। उनकी एक पुत्री हुई वह भी अत्यंत सुंदर थी, इस कारण राजा ने उसका नाम रखा लावण्यावती। लावण्यावती को पूर्व जन्म की बातें याद थी। लावण्यावती युवा हुई तो राजा ने उसे बुलाया व कहा कि बताओ बेटी में तुम्हारा विवाह किससे करूं? राजा की बात सुनकर लावण्यावती कभी रोती तो कभी हंसने लगती। राजा ने उसका कारण पूछा तो उसने कहा कि पूर्व जन्म में वह प्राग्ज्योतिषपुर में हरस्वामी की स्त्री थी। रूपवान होने के बाद भी उसके पति ब्रह्मचर्य का पालन करते थे। उससे क्रोधित रहते थे। एक बार वह अपने पिता के घर गई, उन्हें पूरी बात बताई। उसके पिता ने उसे अभिमंत्रित वस्तुएं तथा मंत्र दिए, जिससे उसका पति उसके वश में हो गया। पति के साथ सुखी जीवन जीने के बाद उसकी मृत्यु हो गई पर वह नरक को प्राप्त हुई। यहां तरह-तरह की यातनाएं भोगने के बाद पापों का कुछ नाश करने के लिए वह एक चांडाल के घर उसका जन्म हुआ।
यहां सुंदर रूप पाने के बाद उसके शरीर पर फोड़े हो गए ओर जानवर उसे काटने लगे। उनसे बचने के लिए वह भागी ओर महाकाल वन पहुंच गई। यहां उसने भगवान शिव व पिप्लादेश्वर के दर्शन किए। दर्शन के कारण उसे स्वर्ग की प्राप्ति हुई। स्वर्ग में देवताओं के साथ रहने के कारण मेरा आपके यहां जन्म हुआ है। कन्या ने राजा से कहा कि इस जन्म में भी मैं अवंतिका नगरी में शिव के दर्शन करूंगी। राजा अपनी सेना के साथ महाकाल वन आया और कन्या व रानी के साथ शिवजी के दर्शन किए। लावण्यावती यहां शिवलिंग के दर्शन-पूजन कर देह त्याग कर शिव में समाहित हो गई।
पार्वती जी ने शिवलिंग को अभिमुक्तेश्वर नाम दिया। मान्यता है कि जो भी मनुष्य अभिमुक्तेश्वर महोदव के दर्शन-पूजन करता है उसकी मुक्ति अवश्य होती है। उसे मृत्यु का भय नहीं होता है। यह मंदिर सिंहपुरी के मंगलनाथ मंदिर के पास स्थित है।