सालों पहले एक दैत्य था शंबरासुर। उसने युद्ध में देवताओं को जीत लिया और स्वर्ग पर राज्य शुरू कर दिया। युद्ध में हारे देवता छिप गए, वही चंद्र ओर सूर्य भी भय के कारण भागने लगे। चंद्र के पुत्र अरूण, पिता चंद्र को राहु से युद्ध के दौरान दूसरे स्थान पर ले गया। सूर्य और चंद्र वहां से भगवान विष्णु के पास गए और स्तुति कर रक्षा की प्रार्थना की, भगवान विष्णु ने उनकी स्तुति से प्रसन्न होकर उनसे कहा कि तुम महाकाल वन में जाओ और महाकालेश्वर के उत्तर में स्थित शिवलिंग का पूजन करो, उनकी ज्वाला से शंबरासुर अपनी सेना के साथ जलकर भस्म हो जाएगा। सूर्य-चंद्र दोनों महाकाल वन में आए और शिवलिंग का पूजन किया।
शिवलिंग से निकली ज्वाला से शंबरासुर सेना सहित नष्ट हो गया और स्वर्ग पर फिर देवता आसीन हो गए। तभी आकाशवाणी हुई कि चंद्र व सूर्य के साहस तथा यहां स्तुति करने के कारण शिवलिंग चंद्रादित्येश्वर के नाम से विख्यात होगा।
मान्यता है कि जो भी मनुष्य शिवलिंग के दर्शन कर पूजन करता है उसके माता-पिता के कुल में सभी पवित्र हो जाते हैं व चंद्र व सूर्य लोक में निवास करते हैं। इनका मंदिर महाकाल मंदिर के सभागृह में शंकराचार्य जी के कमरे में है।