अयोध्या के राजा को वन में एक कन्या मिली। वे उससे विवाह कर उसे राज्य मे ले आए। उसके मोह में राजा का ध्यान राजकाज से हट गया। राजा के मंत्री ने सुंदर वाटिका निर्माण कराकर राजा को वहां उसे रानी के साथ छोड़ दिया। एक बार रानी वहां बने एक तालाब में स्नान करने गई और फिर वापस नहीं आई। उस तालाब में दुर्दुर (मेंढक) अधिक थे। राजा ने सभी मेढकों को नष्ट करने का आदेश दे दिया। इस बीच मेंढकों का राजा निकलकर आया और कहा मेरा नाम आयु है ओर जो कन्या है वह उसकी पुत्री है। उसकी कन्या को नाग लोक का राजा नागचूड़ ले गया है। आप उसे याद करें ओर उससे रानी को मांगें। नागचूड़ ने राजा को उसकी रानी सौंप दी। नागचूड़ ने कहा कि उसने गालव ऋषि का उपहास उड़ाया था इस कारण उसे दुर्दुर होने का श्राप दिया।
उन्होंने कहा जब तुम अपनी कन्या इक्श्वाकु कुल के राजा को दान करोगे और महाकाल वन के उत्तर में स्थित शिवलिंग के दर्शन करोगे तो तुम्हें मुक्ति मिलेगी। ऐसा करने के बाद वे स्वर्ग को प्राप्त हुए। दुर्दुर से मुक्ति के कारण शिवलिंग दुर्दुरेश्वर महादेव के नाम से विख्यात हुए। मान्यता है कि जो भी दुर्दुरेश्वर महादेव के दर्शन करेगा उसके पाप नष्ट होंगे। यह मंदिर आगर रोड़ पर जैथल गांव में है।