काफी समय पहले त्वष्टा नाम के प्रजापति हुआ करते थे, उनका एक पुत्र था कुषध्वज। वह दान-धर्म करता था। एक बार इंद्र ने उसे मार दिया। इस पर प्रजापति ने क्रोध में अपी जटा से एक बाल तोड़ा और उसे अग्नि में डाल दिया। अग्नि से वृत्रासुर नामक दैत्य उत्पन्न हुआ। प्रजापति की आज्ञा से वृत्रासुर ने दवताओं से युद्ध किया ओर इंद्र को बंधक बना लिया ओर स्वर्ग में राज करने लगा। कुछ समय बाद देवगुरू बृहस्पति वहं पहुंचे और इंद्र को बंधनों से मुक्त कराया। इंद्र ने पुनः स्वर्ग प्राप्ति का मार्ग बृहस्पति से पूछा। बृहस्पति ने कहा कि इंद्र आप जल्द महाकाल वन में जाएं ओर खंडेश्वर महादेव के दक्षिण में विराजित शिवलिंग का पूजन कीजिए।
इंद्र ने शिवलिंग का पूजन किया। भगवान शिव ने प्रकट होकर इंद्र को वरदान दिया कि वह शिव के प्रभाव से वृत्रासुर से युद्ध करें ओर विजय प्राप्त करें। इंद्र ने वृत्रासुर का नाश किया ओर पुनः स्वर्ग पर अपना अधिकार प्राप्त किया। इंद्र के पूजन किए जाने के कारण शिवलिंग इंद्रेश्वर के नाम से विख्यात हुआ। जो भी मनुष्य इस शिवलिंग का पूजन करता है, वह सभी पापों से मुक्त होता है। इंद्र के समान स्वर्ग को प्राप्त करता है।