एक बार माता पार्वती ने शिवजी से कहा कि उनका पुत्र वीरक कहां है तो शिवजी ने कहा कि तुम्हारा पुत्र महाकाल वन में तपस्या कर रहा है। इस पर पार्वती ने शिव से कहा कि वह उसे देखना चाहती है, इसलिए वह भी उनके साथ चले। दोनों नंदी पर सवार होकर महाकाल वन के लिए निकल पड़े। रास्ते में एक पर्वत पर पार्वती के भयभीत होने से कुछ देर के लिए रूक गए। शिवजी ने पार्वती से कहा कि तुम कुछ देर यहां रूको मै पर्वत देखकर आता हूं। कुण्ड नामक गण तुम्हारी सेवा में रहेगा ओर तुम्हारी आज्ञा मानेगा। शिवजी को पर्वत घुमते हुए10 वर्ष बीत गए। शिव के न लौटने पर पार्वती विलाप करने लगी। उन्होंने कुण्ड गण को आज्ञा दी कि वह उन्हें शिव के दर्शन कराए।
जब कुण्ड दर्शन नहीं करा सका तो पार्वती ने उसे मनुष्य लोक में जाने का श्राप दिया। इसी बीच शिव वहां उपस्थित हो गए। पार्वती ने कुण्ड से कहा कि तुम महाकाल वन में जाओ ओर वहां भैरव का रूप लेकर खड़े रहो। वहां उत्तर दिशा में सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला शिवलिंग है। उसका पूजन करो। शिवलिंग का नाम तुम्हारे नाम पर कुण्डेश्वर विख्यात होगा। कुण्ड ने पार्वती की आज्ञा से महाकाल वन में शिवलिंग का दर्शन कर पूजन किया ओर अक्षय पद को प्राप्त किया। मान्यता है कि शिवलिंग के दर्शन मात्र से सभी तीर्थो की यात्रा का फल प्राप्त होता है।