द्वापर युग में एक ब्राह्मण थे सुगती। उनके यहां मतंग नामक पुत्र का जन्म हुआ। बालक अवस्था में ही मतंग क्रूर स्वभाव का हुआ। एक बार बालक मतंग माता की गोद में बैठकर लकड़ी से अपने पिता को मार रहा था। पास खड़ी एक गर्दभी ने उससे कहा कि यह ब्राह्मण नहीं, यह चांडाल है।
गर्दभी के वचन सुनकर बालक ने उससे कहा कि मुझे बताओ कि मैं चांडाल कैसे हुआ। गर्दभी ने उससे पूरी कथा कह सुनाई। मतंग ने निश्चय किया कि वह ब्राह्मणत्व को प्राप्त करेगा। ऐसा प्रण कर वह तपस्या करने के लिए चला गया। कई वर्षों तक तपस्या करने के बाद इंद्र उसके सामने प्रकट हुए और उससे कहा कि तुम्हें जो चाहिए मांग लो। मतंग ने इंद्र से कहा कि उसे ब्राह्मणत्व चाहिए। इंद्र ने उससे कहा कि तुम चांडाल योनि में उत्पन्न हुए हो, तुम्हें ब्राह्मणत्व नहीं मिल सकता। इसके बाद भी मतंग ने कई हजार वर्षों तक तपस्या की ओर इंद्र ने कई बार उसे समझाने का प्रयास किया, परंतु मतंग ने अपना प्रण नहीं त्यागा, उसने गया में जाकर तप करना प्रारंभ कर दिया। एक बार फिर इंद्र उसे समझाने के लिए आए तो उसने इंद्र से कहा कि मुझे ब्राह्मणत्व कैसे प्राप्त होगा, मुझे उपाय बताएं। इंद्र ने कहा कि अवंतिकानगरी के महाकाल वन में सिद्धेश्वर महादेव के पूर्व में एक शिवलिंग है तुम उसका पूजन-दर्शन करो। मतंग इंद्र की बात सुनकर आवंतिका नगरी में आया और यहां शिवलिंग का पूजन व दर्शन किया। मतंग के पूजन से महादेव ने प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिए। इस प्रकार मतंग ब्रह्मलोक को प्राप्त हुआ।
मतंग के पूजन के कारण शिवलिंग मतंगेश्वर महादेव के नाम से विख्यात हुआ। मान्यता है कि कोई भी क्रूर मनुष्य भगवान का पूजन करेगा वह शुद्ध होकर ब्रह्मलोक को प्राप्त करेगा।