बिरजनामा मंदिर पीठ पर स्थित त्रिलोचनेश्वर महादेव में सालों पूर्व कबूतर का जोडा रहता था। दोनों भगवान का दर्शन करते ओर अर्पित जल पीते भक्तों द्वारा की जाने वाली भगवान जयकार, भजन-कीर्तन को सुनते रहते थे। एक दिन एक श्येन वहां आया ओर सोचने लगा कि कैसे वह इनका भक्षण करें। कबूतरी ने श्येन को देख लिया ओर वह चिंता करते हुए कबूतर से कहने लगी कि वह श्येन हमें भक्षण करने आया है। श्येन एक दिन कबूतर को आपने साथ आकाश मार्ग ले गया। कबूतरी ने श्येन के पंजों में काटा जिससे कबूतर नीचे गिर गया ओर जंबूद्धीप में गिरकर मर गया। अगले जन्म में वह कबूतर मंदारा नाम के गंर्धव के यहां परिमल के नाम से जन्मा।
दूसरी ओर कबूतरी ने नागराज के यहां रत्नावली के रूप में जन्म लिया। परिमल किशोरावस्था से ही त्रिलोचनेश्वर महादेव के दर्शन ओर पूजन के लिए अंवतिका आने लगा। इधर रत्नावली ने भी भगवान महादेव के दर्शन व पूजन की कामना से यहां आना शुरू कर दिया। एक दिन रत्नावली सखियों के साथ मंदिर में ही सो गई। तब भगवान शिव ने दर्शन देकर पूर्व जन्म की कथा सुनाई ओर अवगत कराया कि परिमल पूर्व जन्म में तुम तीनों का पति था। तीनों कन्याओं ने बात माता-पिता को बताई।
एक बार परिमल और नागराज पूरे परिवार के साथ त्रिलोचनेश्वर महादेव का पूजन करने के लिए आए। यहां दोनों परिवारों में शिप्रा द्वारा कन्याओं को दिए वरदान पर चर्चा कर विवाह परिमल के साथ कर दिया। इसके बाद परिमल वहीं रहकर पूजन करने लगा। मान्यता है कि जो भी मनुष्य त्रिलोचनेश्वर महादेव के दर्शन कर पूजन करेगा वह समस्त सुखों का भोग कर अंत काल में परमपद को प्राप्त करेगा।