वेस्टइंडीज में विश्व कप के शर्मनाक प्रदर्शन से दक्षिण अफ्रीका में ट्वेंटी-20 विश्व चैंपियनशिप की खिताबी जीत तक उतार- ढ़ाव से गुजरते भारतीय क्रिकेट के लिए 2007 कई खट्टी-मीठी यादें छोड़कर जाएगा।
भारतीय क्रिकेट में इस साल कई ऐसी घटनाएँ घटी जिसका असर भविष्य में भी उसके क्रिकेट पर देखने को मिलेगा। यदि इन घटनाओं से हटकर भारतीय टीम का प्रदर्शन देखा जाए तो उन्होंने क्रिकेट के दीवाने देश को खूब रुलाया तो उन्हें खुशियाँ मनाने के ढेरों मौके भी दिए।
भारतीय क्रिकेट बोर्ड जरूर अपने कार्यकलापों के कारण लगातार चर्चा में रहा। इनमें उसके कुछ तुगलकी फरमान भी शामिल हैं जो आगे भी क्रिकेट पर गहरा असर डाल सकते हैं। इनमें इंडियन क्रिकेट लीग में शामिल होने वाले खिलाड़ियों पर प्रतिबंध खिलाड़ियों को मुंह बंद रखने और चयनकर्ताओं को कलम न चलाने का आदेश काफी चर्चा में रहे।
बोर्ड को इस बीच कुछ अवसरों पर बैकफुट पर जाना पड़ा जिसमें कोच की खोज का मामला भी शामिल है क्योंकि ग्रेग चैपल के इस्तीफे के बाद इस पद के लिए चुने गए दक्षिण अफ्रीकी ग्राहम फोर्ड ने बीसीसीआई की लुभावनी पेशकश भी ठुकरा दी थी। अब एक और दक्षिण अफ्रीकी गैरी कर्स्टन की नियुक्ति की गई है।
इससे पहले जनवरी के शुरू में भारत को दक्षिण अफ्रीका से न्यूलैंड्स में तीसरे और अंतिम टेस्ट मैच में मात खानी पड़ी थी। लेकिन इसके बाद उसने बांग्लादेश और इंग्लैंड से उनकी सरजमीं पर 1-0 के समान अंतर से टेस्ट श्रृंखलाएँ जीती जबकि पाकिस्तान को 27 साल बाद टेस्ट श्रृंखला 1-0 में हराया।
एकदिवसीय क्रिकेट में यदि विश्व कप इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया ऑस्ट्रेलिया के हाथों मिली हार भुला दी जाए तो भारत का प्रदर्शन ओवरऑल अच्छा रहा। उसने इस बीच बांग्लादेश आयरलैंड दक्षिण अफ्रीका और पाकिस्तान से श्रृंखलाएं जीती। इंग्लैंड से वह 3-4 के मामूली अंतर से हारा जबकि ऑस्ट्रेलिया ने भारत को 4-2 से मात दी।
वेस्टइंडीज में भारतीय क्रिकेट पर लगे दाग हालाँकि धोनी की टीम ने दक्षिण अफ्रीका में ट्वेंटी-20 विश्व चैंपियनशिप में जीत दर्ज करके धो दिए। सचिन तेंडुलकर, राहुल द्रविड़ और सौरव गांगुली जैसे दिग्गज इस टूर्नामेंट में नहीं खेले थे, जिससे कहा जाने लगा कि अब भारतीय क्रिकेट का भविष्य युवाओं के हाथों में ही सुरक्षित है।
धोनी की टीम ने दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और फाइनल में पाकिस्तान जैसी दिग्गज टीमों को हराकर यह खिताब जीतकर 1983 के बाद भारत को क्रिकेट में कोई बड़ी उपलब्धि दिलाई थी।
भारतीय टीम का स्वदेश पहुँचने पर मुंबई में जिस तरह से शाही स्वागत किया गया, उसे लेकर विदेशों में भले ही नाक भौं सिकाड़ी गई, लेकिन इससे भारत की क्रिकेट के प्रति दीवानगी दिखाई दी।
भारतीय क्रिकेट ने इस साल तीन कप्तान भी देखे। राहुल द्रविड़ ने इंग्लैंड दौरे के बाद अचानक ही कप्तानी छोड़कर सबको चौंका दिया। उनका यह फैसला अब भी रहस्य बना हुआ है।
महेन्द्रसिंह धोनी पहले ही ट्वेंटी-20 कप्तान बन गए थे और बाद में जब उन्हें एकदिवसीय कप्तान बनाया गया तो लगा कि अब भारतीय क्रिकेट की कमान युवाओं के हाथ में है, लेकिन टेस्ट मैचों के लिए अनुभव को तरजीह देकर अनिल कुंबले का कप्तान बनना भारतीय क्रिकेट में साल भर चले उठापटक का एक हिस्सा बन गया।
बहरहाल प्रदर्शन की बात की जाए तो टीम का प्रदर्शन बेहतर ही कहा जाएगा क्योंकि इस साल अब तक खेले गए नौ टेस्ट मैच में टीम ने तीन जीते जबकि केवल एक में उसे हार मिली। भारतीय टीम ने 37 एकदिवसीय मैचों में 20 में जीत दर्ज की जबकि 15 में उसे पराजय झेलनी पड़ी।
भारतीय टीम ने शुरू में वेस्टइंडीज और श्रीलंका से घरेलू एकदिवसीय श्रृंखला जीतकर विश्व कप की अच्छी तैयारियों की झलक दिखाई। भारत को खिताब का प्रबल दावेदार माना जा रहा था, लेकिन 17 मार्च 2007 का दिन भारतीय क्रिकेट में भूचाल लेकर आ गया।
भारत विश्व कप के अपने पहले मैच में ही बांग्लादेश से पांच विकेट से हार गया। उसने बरमुडा की नौसिखिया टीम को रिकॉर्ड 257 रन से हराया, लेकिन श्रीलंका ने तीसरे मैच में उसे 69 रन से शिकस्त देकर विश्व कप की चमक भी फीकी कर दी।
युवराजसिंह ने इसी टूर्नामेंट में इंग्लैंड के स्टुअर्ट ब्रॉड के एक ओवर में छह छक्के जड़े। उन्होंने फिर पाकिस्तान के खिलाफ बेंगलुरू टेस्ट में शतक जड़कर भारतीय क्रिकेट के आकाओं का सिरदर्द बढ़ा दिया है, जो युवाओं को तो तरजीह दे रहे हैं लेकिन अपने 'अनुभवी शेरों' से भी मुँह नहीं मोड़ना चाहते।
दुनिया के सबसे धनी क्रिकेट बोर्ड ने इस बीच अपनी 'मनीपावर' भी दिखाई। जब आईसीएल आ गया तो बोर्ड इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) लेकर आया, जिसके लिए वह विदेशी खिलाड़ियों पर करोड़ों रुपए खर्च कर रहा है। अब मार्च अप्रैल 2008 में ही दिखेगा कि यह बोर्ड का यह जुआ चल पाता है या नहीं?
जाते-जाते अगले साल की बात करें तो भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती ऑस्ट्रेलियाई दौरा है, जहाँ उसे चार टेस्ट मैचों के अलावा त्रिकोणीय श्रृंखला में भाग लेना है। इसके बाद दक्षिण अफ्रीका की टीम भारतीय दौरे पर आएगी।
और अंत में इस साल भारत ने दिलीप सरदेसाई जैसे दिग्गज क्रिकेटर को भी अंतिम विदाई दी, जिन्होंने 1971 में वेस्टइंडीज में टीम की जीत में अहम भूमिका निभाई थी।