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बिग बैंग महाप्रयोग का साल

गरिमा माहेश्वरी

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बिंग बैंग महाप्रयोग के लिए तैयार की गई ये महामशीन विश्व की सबसे बड़ी ऐसी मशीन है जिसमें तेज गति से प्रोटॉन के कणों को आपस में टकराया जा सकता है। यह महामशीन 'हैड्रॉन कोलाइडर' यूरोपियन ऑर्गेनाइजेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च द्वारा बनाई गई थी। इस मशीन को तैयार करने का मुख्य उद्देश्य 'हाई एनर्जी फिजिक्स' पर शोध करना था। वैज्ञानिकों के इस प्रयास को इतिहास में भौतिक विज्ञान का अब तक का सबसे बड़ा प्रयोग करार दिया गया है।

इस प्रयोग की सफलता से बहुत-सी चिकित्सा संबंधी उम्मीदें भी लगाई गई थीं जैसे इससे निकलने वाले प्रोटॉन, कार्बन आयन और एंटी-मैटर की पार्टिकल बीम का कैंसर के इलाज में इस्तेमाल हो सकता था। अभी तक कैंसर की रेडिएशन थैरेपी में कैंसरग्रस्त कोशिकाओं के साथ-साथ स्वस्थ कोशिकाएँ भी नष्ट हो जाती थीं, लेकिन पार्टिकल बीम यदि सफल होता तो शरीर के स्वस्थ हिस्से को बिना नुकसान पहुँचाए केवल ट्यूमर को ही अपना निशाना बनाता, जो चिकित्सा क्षेत्र के लिए भी बहुत फायदेमंद होता।

किस तरह की थी यह महामशीन :

यह मशीन एक 3.8 मीटर चौड़ी सुरंग में रखी गई थी। यह सुरंग स्विटजरलैंड और फ्रांस की बॉर्डर पर है। इस कोलाइडर मशीन में दो समानांतर बीम पाइप लगाए गए थे जो चार बिंदुओं पर एक-दूसरे से मिलते हैं। इसके साथ ही इसमें कुछ डायपोल और क्वाड्रुपल चुंबकों का प्रयोग भी किया गया था। महामशीन लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर (एलएचसी) के शुरू होने के साथ ही इसमें दो 'प्रोटॉनों' की आपस में टक्कर कराई गई।

क्या थे इंतजाम :

ऐसा माना जा रहा था कि इस मशीन को चालू करने पर सालभर में इतने आँकड़े इकट्ठा होंगे कि करीब 5.6 करोड़ सीडी भर जाएँगी। इस डाटा को सहेजने के लिए वैज्ञानिकों को ऐसे बहुत अधिक सक्षम सिस्टम विकसित करने थे जो इतनी बड़ी संख्या में आँकड़ों को क्रमबद्ध कर उपयोग में ला सकें।

इसके लिए सर्न के द्वारा एक ग्रिड बनाई गई जो इस पूरे डाटा को बहुत से अलग-अलग स्थानों पर स्टोर करे। यह ग्रिड बहुत से देशों में हजारों कम्प्यूटरों द्वारा बनाई गई लैब्स से मिलकर बनाई गई।

महाप्रयोग किस तरह का था :

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इस प्रयोग में प्रोटॉन की एक बीम को सीसे या लेड के टुकड़ों पर डाला गया था। इससे एक और सब-अटॉमिक पार्टिकल, 'न्यूट्रॉन' निकला। ऐसा भी माना जा रहा था कि इन न्यूट्रॉनों के सहारे विषैले परमाणु कचरे को नुकसान न पहुँचाने वाले पदार्थों में बदला जा सकेगा। इसके सहारे अंतरिक्ष में फैले परमाणु कचरे को साफ करने में सफलता मिलेगी।

इस महाप्रयोग में प्रोटॉन सिंक्रोटोन से निकली प्रोटॉन बीम कॉस्मिक किरणों की तरह व्यवहार करेगी और इन्हें एक छोटे 'क्लाउड चैंबर' में भेजकर देखा जाना था कि इनसे छोटे स्तर पर बादलों का निर्माण हो सकता है या नहीं। यदि संभव हो गया तो वैज्ञानिक बादलों का भी निर्माण कर सकने में सक्षम होते।

महाप्रयोग की असफलता का कारण :

अरबों डॉलर मूल्य के बिग बैंग परीक्षण के तहत चुंबकों के अत्यधिक गर्म हो जाने से दूसरे चरण में विलंब हो गया था। यह इसलिए भी हुआ क्योंकि चुंबकों के गर्म हो जाने के कारण हेड्रान कोलाइडर के परिचालन में कुछ समस्याएँ आ गई थीं। इसी वजह से इस महामशीन पर कार्य कर रहे इंजीनियरों को मशीन बंद करनी पड़ी।

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