वंदिता श्रीवास्तव (लेखिका व गृहिणी) :- 'यह वर्ष देश के लिए स्वर्णिम वर्ष नहीं था। एक ओर जहाँ इस वर्ष हमने बहुत कुछ खोया, वहीं दूसरी ओर आतंकवादी हमलों के बाद जिस तरह से हमने अपनी एकता का प्रदर्शन किया, वह काबिले तारीफ रहा। पहली बार देश के लोगों का खुलकर विरोध करना निश्चित ही हमारी एकता का परिचायक है।' सुरों की सरताज हैं हम :-
आकांक्षा जाचक (गायिका) :- 'वर्ष 2008 की शुरुआत तो बहुत ही अच्छी रही लेकिन इसका आखिरी दौर बेहद ही दर्दनाक रहा। देश में हुए आतंकी हमलों से देश को एक बड़ा आर्थिक नुकसान सहना पड़ा। इन हमलों में वे लोग मारे गए, जिनका किसी से कोई सरोकार नहीं था। उसके बाद शेयर बाजार में अचानक छाई मंदी, राजनीतिक उथल-पुथल-इन सभी ने देश को पूरी तरह से हिलाकर रख दिया।'
वर्षा झालानी (गायिका) :- 'इस वर्ष हमने जितना पाया नहीं, उससे कहीं अधिक खोया है। देश के कई शहरों में हुए आतंकवादी धमाकों में हमने कई अपनों को खोया है। इस वर्ष देश में जन-धन की जितनी हानि हुई उसकी भरपाई करना बहुत ही मुश्किल है।'
आकाशवाणी कलाकार :- दविन्दर कौर मधु (वरिष्ठ उद्घोषक, आकाशवाणी इंदौर) :- 'वर्ष 2008 की शुरुआत तो बहुत अच्छी रही लेकिन इस वर्ष का अंत बेहद ही दु:खद रहा। वर्ष के अंत में मुंबई में जो आतंकवादी हमले हुए उसने पूरे देश को झकझोरा है और देश की आंतरिक व्यवस्था के नाम पर सवालिया निशान लगाया है। हमारे देश की आंतरिक व्यवस्था कितनी खोखली है, इसकी पोल इन धमाकों से खुली है। अब वक्त आ गया है कि हम इन हमलावरों से दो-चार हाथ कर एक बार में ही इनका सफाया कर दें ताकि बार-बार इस देश पर हमले न हों।'
बीना पी. शर्मा (कार्यक्रम अधिशासी, आकाशवाणी इंदौर) :- 'यह वर्ष देश के लिए अच्छा नहीं रहा। इस वर्ष देश में कई स्थानों पर हुए धमाकों में कितने ही निर्दोष लोगों की जान गई। इन धमाकों को देखते हुए वर्तमान परिप्रेक्ष्य में तो यही कहा जा सकता है कि कल कहाँ और क्या हादसा हो जाए। इस बारे में आज कुछ नहीं कहा जा सकता है।
आज हर माँ अपने बच्चे को स्कूल, कॉलेज या कहीं बाहर भेजने में डर रही है। उनके मन में यही भय कायम है कि उनका बच्चा घर वापस लौटकर आएगा या नहीं। आज इस देश का आमजन महफूज नहीं है। यदि हम महिलाओं की बात करें तो यह वर्ष उनके लिए बहुत अच्छा रहा। इस वर्ष भारत की कई महिलाएँ उच्च पदों पर आसीन हुईं। आज हमारे देश की राष्ट्रपति भी एक महिला है, जो हमारे लिए गौरव की बात है।'
कैमरे की मुस्तैद निगाहें :-
व्योमा मिश्रा (महिला फोटोग्राफर) :- 'इस वर्ष का अंत ऐसा रहा कि हमने जो कुछ वर्षभर में पाया, आतंकी धमाकों के कारण वे सारी उपलब्धियाँ एक पल में ही खो दीं। मेरे अनुसार इस वर्ष के जाते-जाते आतंकवाद देश की सुरक्षा व्यवस्था के नाम पर एक बदनुमा दाग लगा गया।'
बैंकिंग क्षेत्र में सक्रिय :-
एनी पँवार (स्टेट बैंक ऑफ इंदौर ) :- 'वर्ष 2008 में देश में कई उतार-चढ़ाव आए परंतु हमारी हिम्मत और सूझबूझ से हम इन सबसे उबर पाए। आखिरकार हम आशावादी भारतीय हैं और जहाँ चाह है वहीं राह है।'
निष्कर्षत: यह वर्ष एक विचार मंथन का काल रहा, जिसमें हर भारतीय ने अपने देश के बारे में गंभीरता से सोचा। जहाँ हमने इस वर्ष आतंकवाद के कहर में खून से लथपथ लाशों का ढेर देखा वहीं हमारे देश के धुरंधर खिलाडि़यों व बेहतरीन फिल्मी अदाकारों के द्वारा देश की झोली में डाले गए नायाब पुरस्कारों की चमक को भी देखा। यह मेरा भारत है जहाँ आशा के दीये प्रज्वलित होते हैं।
मौत का तांडव देखते हुए भी हममें भारतीयता अभी तक जिंदा है। आज भी हमें अपने देश पर नाज है। इन धमाकों के बाद हमने दुनिया को अपना ज़ज़्बा, अपनी एकता व अपनी ताकत दिखाकर यह सिद्ध कर लिया है कि दुश्मन भले ही लाख कोशिश कर ले पर वह हमारी इंसानियत, हमारे देशप्रेम व एकता की बुनियाद को नहीं हिला सकता है। हम निरंतर आगे बढ़ते रहे हैं व बढ़ते रहेंगे।