वर्ष 2008 में राजनीतिक दल भी उठापटक से अछूते नहीं रहे। दक्षिणी राज्य कर्नाटक में भगवा बुलंद कर दिल्ली की सत्ता तक पहुँचने का ख्वाब बुनने वाली भाजपा के लिए यह साल जाते-जाते गहरे जख्म दे गया। 'पीएम इन वेटिंग' लालकृष्ण आडवाणी का प्रधानमंत्री बनने का सपना बिखरता-सा दिखाई दे रहा है।कांग्रेस के लिए जरूर गुजरा साल नए वर्ष 2009 में 'सुनहरी सुबह' का संकेत लेकर आया है। हालाँकि भाजपा के लिए वर्ष के अंत में जरूर थोड़ी राहत मिली। कर्नाटक उपचुनाव में पाँच सीटें जीतकर भाजपा ने अब खुद के बूते बहुमत जुटा लिया है। जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के परिणाम भी भाजपा का मनोबल बढ़ाने वाले रहे। 'बाबा अमरनाथ' की कृपा से पार्टी ने 11 सीटों पर विजयश्री हासिल की, जबकि पिछली बार यह संख्या महज एक थी।
आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस के लिए वर्ष का उत्तरार्द्ध काफी सुखद रहा है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में जहाँ उसने जीत की तिकड़ी बनाई, वहीं राजस्थान में सत्तारूढ़ भाजपा को शिकस्त देकर सत्ता से बेदखल किया। मिजोरम में स्पष्ट बहुमत हासिल कर कांग्रेस लंबे अरसे बाद पूर्वोत्तर के इस राज्य में अपनी सरकार बनाने में कामयाब हुई। दूसरी ओर मध्यप्रदेश में एक बार फिर सत्ता उसके लिए 'दूर की कौड़ी' साबित हुई। हालाँकि पिछले चुनाव की तुलना में उसके जनाधार में खासा इजाफा हुआ। छत्तीसगढ़ में स्थिति लगभग पूर्ववत ही रही।दक्षिण में भगवा लहराया : वर्ष 2008 का पूर्वार्द्ध भाजपा के लिए काफी अच्छा रहा है। येदियुरप्पा के नेतृत्व में कर्नाटक विधानसभा चुनाव में अभूतपूर्व विजय हासिल कर पार्टी पहली बार दक्षिण के किसी राज्य की सत्ता पर काबिज हुई। उस समय भाजपा के शीर्ष नेताओं ने कर्नाटक विजय को दिल्ली की सत्ता तक पहुँचने का 'दक्षिणी द्वार' करार दिया था। हाल ही में उपचुनाव जीतकर भाजपा ने राज्य विधानसभा में स्पष्ट बहुमत भी हासिल कर लिया है। 224 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा की सीटें अब 115 (उपचुनाव को मिलाकर) हो गई हैं।मई 2008 में हुए इन चुनावों में कांग्रेस को सत्ता भले ही नहीं मिली, लेकिन 80 सीटें जीतकर पिछले चुनाव के मुकाबले उसने काफी अच्छा प्रदर्शन किया। एचडी देवेगौड़ा की अगुआई वाले जनता दल (एस) को काफी नुकसान उठाना पड़ा।सत्ता का सेमीफाइनल : हाल ही में संपन्न हुए पाँच राज्यों के जिन विधानसभा चुनावों को आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर 'सत्ता का सेमीफाइनल' करार दिया जा रहा था, में कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन कर 'फाइनल मुकाबले' के लिए अपना दावा मजबूती से पेश किया है। कांग्रेस ने अपने गढ़ दिल्ली को जहाँ सुरक्षित रखा, वहीं राजस्थान में भाजपा से गद्दी छीन ली। दिल्ली में लगातार तीसरी बार जीत हासिल करने वाली कांग्रेस राजस्थान में बहुमत से कुछ ही सीटें दूर रही। 200 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के खाते में 96 सीटें आईं।मिजोरम में असाधारण प्रदर्शन करते हुए कांग्रेस ने 32 सीटों पर जीत हासिल की, जबकि सत्तारूढ़ एमएनएफ महज तीन सीटों पर ही सिमट कर रह गई। पूर्वोत्तर के इस राज्य में एक अरसे बाद कांग्रेस को सत्ता नसीब हुई है। |
हाल के विधानसभा चुनावों में मतदाताओं के रुझान के साथ ही लगातार नीचे आता महँगाई का ग्राफ भी कांग्रेस के पक्ष में माहौल बना रहा है |
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मध्यप्रदेश चुनाव में भाजपा का पलड़ा भारी रहा। एक बार फिर इस राज्य शिवराज का दरबार तो सज गया, लेकिन पिछले बार की तुलना में भाजपा को 30 सीटों का नुकसान झेलना पड़ा। कांग्रेस के वोटों में हुआ इजाफा निश्चित ही आडवाणी के प्रधानमंत्री पद की कुर्सी तक पहुँचने में रोड़ा बन सकता है। छत्तीसगढ़ में भाजपा ने पिछले चुनाव के बराबर ही 50 सीटें हासिल कीं, लेकिन यहाँ भी कांग्रेस का बढ़ा हुआ वोट प्रतिशत कहीं न कहीं लोकसभा चुनाव के लिए अच्छा संकेत है।
दिसंबर माह के अंत में आए जम्मू-कश्मीर के चुनाव परिणामों ने जरूर भाजपा का मनोबल बढ़ाया। इस चुनाव में भाजपा ने 16 सीटें हासिल की हैं। दूसरी ओर पीडीपी के साथ सत्ता में भागीदारी करने वाली कांग्रेस ने उससे पीछा छुड़ा लिया है। पीडीपी की दगाबाजी से नाराज कांग्रेस ने इस बार नेशनल कॉन्फ्रेंस को समर्थन देना मुनासिब समझा। जम्मू-कश्मीर में इस बार भी किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है।
साल भर के राजनीतिक घटनाक्रम के आधार पर कहा जा सकता है कि 2009 में होने वाले लोकसभा चुनाव भाजपा के शीर्ष नेता और पीएम इन वेटिंग को को कहीं 'लंबा इंतजार' न करवा जाएँ। हाल के विधानसभा चुनावों में मतदाताओं के रुझान के साथ ही लगातार नीचे आता महँगाई का ग्राफ भी कांग्रेस के पक्ष में माहौल बना रहा है। हालाँकि संभावनाएँ लगभग क्षीण हैं, लेकिन पाकिस्तान के साथ यदि युद्ध की स्थिति निर्मित होती है तो यह हालात भी निश्चित ही कांग्रेस को फायदा पहुँचाएँगे।