वर्ष 2008 को देश के आर्थिक और वित्तीय जगत में अभूतपूर्व उथल-पुथल के लिए याद किया जाएगा। एक लंबे अर्से के इस वर्ष महँगाई ने गरीब-अमीर सभी को परेशान किया।
शेयर बाजारों में रिकॉर्ड तेजी और उसके उपरांत अकल्पनीय गिरावट ने निवेशकों को झकझोर दिया। डॉलर के मुकाबले रुपया नई तलहटी तक गिरा तो सोने में ऐतिहासिक चमक आई।
वैश्विक वित्त संकट और मंदी के दौर में वर्ष 2008 के अंतिम पाँच महीने ज्यादा कष्टदायी रहे। देश की आर्थिक प्रगति के आईने के रूप में देखा जाने वाले बम्बई शेयर बाजार (बीएसई) सेंसेक्स ने वर्ष की शुरुआत तो शानदार तरीके से की थी, किंतु अमेरिका के सब प्राइम संकट और उसके बाद वैश्विक वित्त मंदी के तूफान ने इसे हिला कर रखा दिया।
सेंसेक्स ने वर्ष की शुरुआत 20286.99 अंक से की और दस जनवरी को 21206.77 अंक का रिकॉर्ड बनाने के बाद यह लगातार गिरता रहा। 20 नवम्बर को वर्ष के न्यूनतम स्तर 8451.01 अंक गिरने के बाद भी यह बहुत अधिक नहीं संभल सका और साल की समाप्ति पर दस हजार अंक से नीचे ही रहा।
वर्ष की शुरुआत में महँगाई का कोई विशेष असर नहीं था, किंतु अगस्त आते-आते इसने विकराल रूप धारण कर लिया। नौ अगस्त को समाप्त अवधि में महँगाई की वृद्धि दर 16 साल के उच्चतम स्तर 12.91 प्रतिशत पर पहुँच गई।
इसके बाद विश्व बाजार में विशेषकर कच्चा तेल, खाद्य तेल और स्टील आदि की कीमतों में भारी गिरावट से महँगाई दर ने लुढ़कना शुरू किया और 12 दिसम्बर को समाप्त हुए सप्ताह में घटकर 6.61 प्रतिशत रह गई।
विश्व बाजार में 17 मार्च को सोने की कीमतें 1031.80 डॉलर के शिखर पर पहुँच गई थीं, किंतु उस समय डॉलर के समक्ष रुपए में मजबूती होने से इसका असर पर नहीं देखा गया था, किंतु अक्टूबर के दौरान जब रुपए कमजोर बना हुआ था।
सोने के दाम 14 हजार प्रति दस ग्राम की चोटी पर पहुँच गए। पिछले साल देश के शेयर बाजार विदेशी संस्थानों को खूब रास आ रहे थे। विदेशी संस्थानों ने 2007 में देश में इक्विटी के रूप में 17 अरब 40 करोड़ डॉलर का भारी भरकम निवेश किया तो रुपए ने 12 प्रतिशत की छलांग लगाई। इस वर्ष स्थिति बिलकुल विपरीत रही।
विदेशी संस्थानों ने लगभग साढ़े तेरह अरब डॉलर की शुद्ध निकासी की और डॉलर के मुकाबले रुपए में वर्ष के दौरान करीब 19 प्रतिशत की गिरावट आई। नवंबर के दौरान विदेशी संस्थानों की भारी बिकवाली से रुपया खासे दबाव में रहा और 20 नवम्बर को एक डॉलर की कीमत 50.12 रुपए तक पहुँच गई।
मंदी के दौर में रिजर्व बैंक को साढ़े चार साल में पहली बार रैपो दर घटाने का कदम उठाना पड़ा। इकतीस मार्च 2004 के बाद पहली बार बीस अक्टूबर 2008 को रैपो दर में एक प्रतिशत की तीव्र कटौती की गई।
बैंकिंग तंत्र में तरलता बढ़ाने के उद्देश्य से रिजर्व बैंक को चार वर्ष के अंतराल के बाद बैंकों के नकद सुरक्षित अनुपात (सीआरआर) में भी कटौती करना पड़ी। अट्ठारह सितम्बर 2004 के बाद रिजर्व बैंक ने पहली बार 11 अक्टूबर 2008 को सीआरआर में डेढ़ प्रतिशत की कमी की।
वैश्विक मंदी के चलते इस वर्ष अक्टूबर में देश का निर्यात नकारात्मक हो गया। वर्ष 2001 के बाद आई इस पहली गिरावट से अक्टूबर-08 में निर्यात 12.1 प्रतिशत की भारी गिरावट से 12.8 अरब डॉलर का रह गया। अक्टूबर माह के दौरान ही देश के औद्योगिक उत्पादन को पहली बार झटका लगा और लंबे अर्से के बाद इसमें 0.4 प्रतिशत की गिरावट आई।
वर्ष के दौरान ऊँची ब्याज दरों का दौर एक बार फिर से दिखा, किंतु सरकार के प्रोत्साहन पैकेजों और अर्थव्यवस्था को मंदी के प्रकोप से बचाने के लिए उठाए गए कदमों और हस्तक्षेप से एक बार फिर सस्ते ऋण की झलक नजर आने लगी।