मुझे लगता है कि यदि सरकार दामों के संबंध में एक गाइड लाइन तय कर दे तो शायद इस आसमान छूती महँगाई पर कुछ हद तक अंकुश लग सकता है। बचपन में हमने स्कूल में पढ़ा था कि भारत एक कृषिप्रधान देश है तब हमने यह नहीं सोचा था कि कल को यहाँ की ही जनता में अनाज के लिए त्राहि-त्राहि मचेगी। आज हमारे देश का माल देश में कम तथा विदेशों में अधिक बेचा जाता है। आज अमीर हो या गरीब हर व्यक्ति अपने पेट की भूख को शांत करने के लिए कमाता है। सरकार को चाहिए कि वह इस दिन-ब-दिन बढ़ती महँगाई पर अंकुश लगाए और देश को विकास की चरम सीमा पर ले जाए। आज महँगाई का तेजी से बढ़ना व नागरिक सुरक्षा के औसत का घटना बेहद ही चिंताजनक विषय है। यह देश हम सभी का है। यह किसी हिन्दू या मुस्लिम का नहीं है। वर्तमान में तुष्टीकरण को लेकर जो भी असंतोष उभर रहा है वह गुब्बारे में सूई की तरह चुभ रहा है। वर्तमान में देश की कानून-व्यवस्था बिगड़ने के जिम्मेदार केवल और केवल इस देश के राजनेता हैं, जो सत्ता की शह और मात में देशवासियों की मासूम जिंदगियों से खेल रहे हैं।
शोवना नारायणन (देश की मशहूर कथक नृत्यांगना) :- हर वर्ष चुनौतियों को लेकर लाता है। वर्ष 2008 भी चुनौतियों से ही भरा था। आज व्यक्ति सोचने पर मजबूर है कि इस देश में आखिर ये क्या हो रहा है? आखिर हम क्या चाह रहे हैं?
अब हर व्यक्ति को गंभीरता से इस बारे में सोचना ही होगा क्योंकि व्यक्ति से ही समाज बनता है और समाज से ही कोई देश बनता है। आज जिस तरह से समाज व देश में असंतुलन की स्थिति है वह बेहद ही चिंताजनक है क्योंकि किसी भी प्रकार का असंतुलन होने पर हम कभी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाएँगे।
निष्कर्ष के रूप में कहा जाए तो अब हमें गंभीरता से यह सोचना चाहिए कि हमें किस राह पर चलना है। हमें मुश्किलों का बहुत ही संजीदा ढंग से हल निकालकर उसका सामना करना चाहिए। मुश्किलें तो आती रहेंगी, उनसे घबराना कायरता होगी। आज हम सभी को इंसानियत व इस देश के बारे में सोचना होगा।