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महँगाई : मुसीबत के 12 महीने

छाया रहा महँगाई का मारक साया

हमें फॉलो करें महँगाई : मुसीबत के 12 महीने
महेन्द्र तिवारी
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वक्त की रेत पर 21वीं सदी का नौवाँ साल भी फिसलने को है। अपने उदय से लेकर अस्ताचलगामी होने तक 2009 ने घटनाओं के कैनवास पर अच्छी-बुरी कई तस्वीरें उकेरीं। आईएनएस अरिहंत के जलावतरण और अग्नि मिसाइलों के सफल प्रक्षेपण ने दुनिया को भारत की सामरिक शक्ति का अहसास करवाया। दूसरी ओर मेरठ के पास रेल दुर्घटना और जयपुर के आईओसी डिपो में लगी भीषण आग ने साल के सबसे बड़े हादसों के रूप में सुर्खियाँ बटोरीं।

2009 के दौरान वाकयों की वाटिका में सालभर खुशी के कई फूल महके, लेकिन गम के काँटों ने भी देश की आह निकालने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी। दामों की दग्धता इन्हीं में से एक थी।

रोज-दर-रोज दर तेज होती गई कीमतों की कटार ने सर्वहारा वर्ग पर ऐसे वार किए कि जबान से जायका जाता रहा और सीने से सुकून। मंदी की मार से मर्माहत भारतीय जनमानस के खिलाफ महँगाई ने इस कदर महाभारत छेड़ी कि न तो गृहिणियाँ रसोई का बजट बिगड़ने से रोक सकीं, न ही गरीब दूर होते निवाले को। सरकार बेपरवाह बनी रही और बेचारगी के बोझ तले दबे बाशिंदे बेजार।

दाल हो या दूध, तरकारी हो अथवा तेल, रोजमर्रा की हर चीज समय के सापेक्ष एक-दूसरे के साथ होड़ करती नजर आई। चालू वित्त वर्ष के पन्ने पलट कर देखें तो ऐसा कोई सफा नहीं मिलेगा, जिस पर भाव भृकुटियाँ तानते न दिखाई पड़े हों।

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इस दशक में संभवतः यह ऐसा पहला साल हो सकता है, जब पेट्रो-डीजल, केरोसिन और एलपीजी की कीमतों को लेकर सदा सांसत में रहने वाली जनता गेहूँ-चावल, फल और मसालों के मूल्य सुनकर भी गश खाकर गिरने लगी। अरहर से लेकर आलू और शकर से शहद तक बाजार में मौजूद प्रत्येक सामान सातवें आसमान पर पहुँचने में एड़ी-चोटी का जोर लगाने लगा।

हरी सब्जियों ने खाने की थाली को खाली करने के लिए मानो कमर ही कस ली तो दूध घरों में घमासान करवाने की कवायद में हाथ धोकर पीछे पड़ गया। हालात कुछ ऐसे बने कि कभी 'दाल-रोटी खाओ, प्रभु गुण गाओ' के सिद्धांत को सफल जीवन का सूत्र मानने वाले आम भारतीय के हाथ-पाँव दो जून की रोटी जुटाने में ही फूल गए।

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तुवर दाल की सुगंध से महकने वाले चूल्हों पर इसकी हंडियाँ चढ़ना ही बंद हो गईं तो शकर की सफेदी ने लोगों के चेहरे का रंग उड़ा दिया। थोड़े ही दिनों में वह मंजर भी आया, जब भले-चंगे ग्राहक 'डायबिटिज का डंक' समझ इससे कन्नी काटते हुए गुड़ से दोस्ती गाँठने लगे। यदि सरकार द्वारा सालभर में जारी महँगाई के 'प्रगति-पत्रक' पर माहवार नजर डालें तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। कहने को फरवरी, मार्च और अप्रैल के कुछ हफ्ते ऐसे रहे, जब मुद्रास्फीति ने गिरावट का मुँह देखा लेकिन दाम फिर भी जनता का दम निकालते रहे, क्योंकि खुदरा मूल्य सूचकांक में कहीं कोई कमी नहीं आई।

यहाँ तक कि मई, जून और जुलाई में महँगाई दर लगातार हफ्तों तक नकारात्मक बनी रही, मगर गरीब की जेब राहत की आस में लगातार लुटती रही।

जनवरी : आवश्यक खाद्य पदार्थों, जेट ईंधन और अल्कोहल की ऊँची कीमतों के कारण मुद्रास्फीति लगातार दूसरे हफ्ते बढ़कर 17 जनवरी को समाप्त सप्ताह के दौरान 5.64 फीसदी हो गई। पिछले सप्ताह के 5.60 फीसदी के स्तर के मुकाबले मुद्रास्फीति में 0.04 फीसदी का इजाफा हुआ।

फरवरी : मुद्रास्फीति की दर 31 जनवरी को समाप्त हुए सप्ताह में 0.68 प्रतिशत गिरकर लगभग एक वर्ष के निम्नस्तर 4.39 प्रतिशत पर आ गई, लेकिन खुदरा वस्तुओं के दाम नहीं घटे।

खाने-पीने की चीजों, फल, सब्जी, दालों और कारखाने में उत्पादित कुछ वस्तुओं के सस्ता होने से थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति की दर 14 फरवरी को समाप्त सप्ताह में 0.50 प्रतिशत अंक घटकर 3.36 प्रतिशत पर आ गई, जो पिछले 15 माह की न्यूनतम दर है।

मार्च : 28 फरवरी को समाप्त हुए सप्ताह में महँगाई दर और गिरकर 2.43 प्रतिशत रह गई। पिछले सप्ताह में यह 3.03 प्रतिशत रही थी। पिछले सात साल के अपने न्यूनतम स्तर पर आ गई।

सात मार्च को समाप्त सप्ताह में मुद्रास्फीति भारी गिरावट के साथ 0.44 प्रतिशत रह गई। बावजूद इसके ज्यादातर खाद्य पदार्थों की कीमत में कमी नहीं हुई। मुद्रास्फीति में भारी गिरावट के बावजूद अनाज और दाल समेत आवश्यक खाद्य पदार्थों की कीमतें पिछले साल के समीक्षाधीन सप्ताह के मुकाबले अधिक रहीं।

अप्रैल : कई खाद्य पदार्थों, चाय, आयातित तेल और गुड़ आदि के दामों में मजबूती के चलते थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति 21 मार्च को समाप्त सप्ताह में 0.04 प्रतिशत की हल्की वृद्धि के साथ 0.31 प्रतिशत हो गई। इससे पूर्व सप्ताह में मुद्रास्फीति 0.27 प्रतिशत व एक वर्ष पूर्व इसी दौरान 7.8 प्रतिशित थी। सॉफ्ट ड्रिंक, खली, बाजरा, मसाले और अचार जैसी वस्तुएँ भी महँगी हुईं। इस दौरान सोयाबीन, कच्ची रबड़, मूँगफली और कच्ची रूई के दामों में भी वृद्धि दर्ज की गई।

मई : मुद्रास्फीति 0.48 से बढ़कर 0.61 पर पहुँच गई। फिर इसी दर पर अपरिवर्तित रही।

जून : गिरकर 0.48 फीसदी पर आई। फिर लगातार दो हफ्तों तक शून्य से नीचे दर्ज की गई।

जुलाई-अगस्त : इन दो महीनों में मुद्रास्फीति लगातार ऋणात्मक बनी रही।

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सितंबर : सालाना आधार पर आवश्यक वस्तुओं की कीमत में भारी बढ़ोतरी हुई। इसके कारण 12 सितंबर को समाप्त सप्ताह के दौरान मुद्रास्फीति बढ़कर 0.37 फीसद हो गई, जो इसके पिछले सप्ताह 0.12 फीसद थी। पिछले वर्ष की समान अवधि में यह 12.42 फीसद पर थी। पाँच सितंबर को समाप्त सप्ताह के दौरान मुद्रास्फीति 13 हफ्ते बाद पहली बार नकारात्मक दायरे से बाहर निकली।

अक्टूबर : खाद्य वस्तुओं की कीमतों में मामूली कमी के मद्देनजर मुद्रास्फीति की दर 26 सितंबर को समाप्त सप्ताह के दौरान घटकर 0.70 फीसद के स्तर पर आ गई। इससे पूर्व सप्ताह में यह 0.83 फीसद के स्तर पर थी। खाद्य वस्तुओं की बढ़ती कीमतों के मद्देनजर मुद्रास्फीति 17 अक्टूबर को समाप्त सप्ताह के दौरान 0.30 फीसद बढ़कर 1.51 फीसदी हो गई।

थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति इससे पूर्व सप्ताह में 1.21 फीसदी थी। आलोच्य अवधि में चाय, मटन, अरहर, विनिर्मित वस्तुएँ, गुड़ और खाद्य तेल महँगे हुए।

नवंबर : मुख्य रूप से फल, सब्जियों, गेहूँ, ज्वार और अरहर की कीमतों में तेजी के कारण प्राथमिक वस्तुओं के थोक मूल्यों पर आधारित महँगाई दर 31 अक्टूबर को समाप्त सप्ताह में इसके पूर्व के सप्ताह के 13.39 फीसद से बढ़कर 13.68 प्रतिशत हो गई।

दिसंबर : प्याज, चावल और गेहूँ जैसी आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी के साथ खाद्य वस्तुओं के थोक मूल्य पर आधारित मुद्रास्फीति की दर 21 नवंबर को समाप्त सप्ताह में उछलकर 17.47 फीसद पर पहुँच गई। इससे पिछले सप्ताह महँगाई दर 15.58 फीसद थी।

आलू और दाल की बढ़ती कीमतों ने दिसंबर के पहले सप्ताह में खाद्य मुद्रास्फीति को और बढ़ाकर 19.95 प्रतिशत पर पहुँचा दिया। पिछले सप्ताह प्राथमिक उत्पादों के थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित महँगाई दर 19.05 प्रतिशत पर थी।

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कुल मिलाकर वर्ष 2009 में महँगाई कमजोर आर्य वर्ग के लिए किसी अभिषाप से कम नहीं साबित नहीं हुई। सरकार दिलासों के दानों से जनता का पेट भरती रही और बिखरे विपक्ष का समय अपने ही घर को ठीक करने में बीत गया। केंद्र के मंत्री तो जनता को महँगाई की आग में झुलसने के लिए तैयार रहने की नसीहत देने से भी नहीं चूके।

बहरहाल, उम्मीद यही की जाना चाहिए महँगाई का यह मारक साया आने वाले साल की सुबह के साथ खत्म हो जाए। यदि ऐसा न भी हो तो कम से कम ईश्वर हर भारतीय को ऐसी दुश्वारियों के खिलाफ मजबूती के साथ खड़े रहने का साहस प्रदान करे। सुप्त सरकार और संवेदनहीन राजनीतिक व्यवस्था में रहकर इतना होना भी किसी उपलब्धि से कम नहीं है।

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