Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

साल 2009 और भारतीय अर्थव्यवस्था

हमें फॉलो करें साल 2009 और भारतीय अर्थव्यवस्था
साल 2008 में विश्व अर्थव्यवस्था के केंद्र अमेरिका में हाउसिंग/प्रॉपर्टी लोन के फेल होने से वैश्विक अर्थव्यवस्था को गहरा धक्का लगा था और और पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में आ गई थी। विशेषज्ञों ने वैश्विक अर्थव्यवस्था के इस संकट को 1930 की मंदी से भी बड़ा आर्थिक संकट कहा।

FILE
साल 2009 की शुरुआत में कहा गया था कि अगर आप वैश्विक स्तर पर साल 2008 को अर्थव्यवस्था के लिए बुरा मानते हैं तो साल 2009 के परिणामों का इंतजार कीजिए, यह साल अर्थव्यवस्था के लिए और भी भयावह होगा।

इस साल की शुरुआत तक वैश्विक स्तर पर हर दिन लाखों लोग बेरोजगार हुए, कईयों को कम वेतन पर काम करना पड़ा तो कुछ बिना इंक्रिमेंट के नौकरी करने को मजबूर हुए। लेकिन साल 2009 के अंत तक वैश्विक स्तर पर अर्थ जगत में रिकवरी की शुरुआत देखी गई।

साल 2009 के तीसरे तिमाही परिणामों में ज्यादातर कंपनियों ने माना कि उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर है। इस समय तक वैश्विक स्तर पर कंपनियों में छँटनी का दौर समाप्त हो चुका था और इनमें से कुछ कंपनियों में नई नौकरियों की संभावनाएँ भी बनीं।

2008 के आर्थिक संकट के सामने अमेरिकी, यूरोपयी देशों की कई बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ चपेट में आईं। वैश्विक स्तर पर इसे बड़े आर्थिक संकट का डटकर सामना तीन देशों की अर्थव्यवस्थाओं ने किया। जर्मर्नी, चायना और भारत। ये ‍तीन देश वैश्विक आर्थिक संकट से सबसे कम प्रभावित हुए। इनके लिए कहा गया था कि साल 2009 में वैश्विक संकट के जारी रहने से इन तीन देशों में भी मंदी अपने पैर पसार लेगी, ले‍किन आशंकाओं के विपरित साल 2009 मंदी से उबरने की शुरुआ‍‍त वाला साल रहा। वैश्विक और भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए साल 2009 अनुमान से बेहतर साबित हुआ।

साल 2009 और भारतीय अर्थव्यवस्था- साल 2007/08 में भारतीय अर्थव्यवस्था ने 9.8 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की, इसके बाद अर्थव्यवस्था की चाल के सुस्त पड़ने की आशंका थी। कुछ सालों की लगातार आर्थिक वृद्धि के बाद साल 2009 को आर्थिक वृद्धि की कसौटी माना गया।

विशेषज्ञ मान रहे थे कि यह आँकड़ा 7 प्रतिशत के आसपास पहुँच सकता है, जो बढ़ती महँगाई की रोकथाम के लिए अच्छा है। आर्थिक मंदी के दौर में हुआ भी यही, लेकिन अब साल 2009 के परिणामों को देखते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था के साल 2010/2011 के लिए 9 से 10 प्रतिशत की वृद्धि की उम्मीद की जा रही है।

webdunia
FILE
शेयर बाजार- 9 मार्च 2009 को शेयर बाजार अपने न्यूनतम स्तर पर कारोबार करता देखा गया। सेंसेक्स 8 हजार के स्तर के नीचे आकर कारोबार कर रहा था। देश में आम चुनाव होने वाले थे और आशंका व्यक्त की जा रही थी कि शेयर बाजार अभी और नीचे आएगा।

सेंसेक्स और निफ्टी नया बॉटम बनाएँगे, लेकिन एक बार फिर हुआ इसके विपरित। मार्च के निचले स्तर के बाद सेंसेक्स ने अक्टूबर 2009 तक 17 हजार का स्तर पार कर लिया, वहीं निफ्टी भी पाँच हजार के ऊपर था। छह माह में शेयर बाजार 105 प्रतिशत बढ़ चुका था और इसके पीछे नियंत्रित और सुधरी हुई अर्थव्यवस्था थी। घरेलू और वैश्विक बाजारों से मिलने वाली सकारात्मक खबरों ने भी शेयर बाजार में निवेश को बढ़ावा दिया। इस अवधि में न केवल भारत बल्कि वैश्विक बाजारों में तेजी से सुधार आया।

महँगाई- साल 2009 में जुलाई-अगस्त का समय ऐसा भी आया जब महँगाई दर नकारात्मक हो गई। सितंबर में महँगाई दर फिर से सकारात्मक हुई। महँगाई दर कम जरूर हुई, लेकिन इसका असर आम आदमी के राशन पर नहीं दिखा। माँग में आई बढ़ोतरी को इसका कारण माना गया। ब्राजील से शकर आयात करने के बावजूद इसके भाव 100 प्रतिशत तक बढ़ गए। हालाँकि अन्य खाद्य सामग्री के भावों में भी बढ़ोतरी हुई, लेकिन शकर, तेल, सब्जियों के भाव बहुत तेजी से बढ़े।

मानसून- इस साल भारत के कई हिस्सों में मानसून समय पर नहीं पहुँच सका, जिसके कारण फसल को नुकसान हुआ। हालाँकि बाद में वर्षा हुई, जिससे औसत वर्षा का आँकड़ा तो पूरा हो गया, लेकिन यह वर्षा फसलों के लिए उतनी लाभदायक साबित नहीं हो पाई, जितनी की मानसून सही समय पर आने से हो सकती थी। पिछले वर्ष गन्ने की फसल बर्बाद होने से आज शकर के भाव आसमान पर हैं। इस साल बाजरा, चावल, मकई के पैदावार औसत से कम होने की आशंका है। मानसून का समय पर नहीं आना विकास दर को प्रभावित कर सकता है।

2010 में भारतीय अर्थव्यवस्था- साल 2009 में उत्पादन और निर्माण (मैन्यूफेक्चरिंग और कंस्ट्रक्शन) सेक्टर के आँकड़े उत्साहजनक रहे हैं। इन सेक्टरों से 9 प्रतिशत की सालाना आर्थिक वृद्धि दर्ज की गई। 2009 में कृषि क्षेत्र से उतने उत्साहजनक परिणाम नहीं मिल पाए हैं, जिनकी उम्मीद की जा रही थी।

साल 2010 में वैश्विक स्तर पर अर्थव्यवस्था के तेजी चाल पकड़ने के आसर हैं। मंदी के दौर में हर सेक्टर द्वारा अपनाए गए उपाय साल 2010 में सुखद परिणामों के रूप में सामने आएँगे।

भारत में 2010 में ब्याज दर बढ़ने से उम्मीद है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह नई मजबूती दर्ज करेगा। रुपए के मजबूत होने से भारत वैश्विक स्तर पर धन जमा करने का प्रमुख केंद्र बन सकता है। (वेबदुनिया डेस्क)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi