वर्ष 2011 में इक्विटी बाजार में रहा सन्नाटा
कंपनियों ने जुटाई विदेशी पूंजी
वैश्विक अनिश्चितता और शेयर बाजार में मंदी के चलते वर्ष 2011 में प्राथमिक पूंजी बाजार में सन्नाटा रहा। कंपनियों ने सस्ती और प्रतिस्पर्धी दरों पर पूंजी जुटाने के लिए विदेशी बाजारों का रुख किया, लेकिन साल के अंत में डॉलर के मुकाबले रुपए की भारी गिरावट ने उनका यह गणित भी बिगाड़ दिया।
कंपनियों ने कामकाजी पूंजी जुटाने के लिए वर्ष के दौरान तमाम विदेशी रिण साधनों के जरिए पूंजी जुटाई, लेकिन साल के आखिरी दो महीनों में उल्लेखनीय मोड़ आया जब एक समय आकर्षक दिखने वाले विदेशी ऋण भारतीय कंपनियों के लिए अभिशाप बन गया। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 53 रुपए प्रति डॉलर तक गिर गया, जिससे कंपनियां का सस्ता विदेशी रिण उन्हें भारी पड़ने लगा।
अमेरिकी डॉलर की मजबूती और भारत व विदेशों में मुश्किल आर्थिक स्थिति के बीच साल के आखिर में कंपनियां विदेशी कर्ज के भारी बोझ से दबी हैं।
भारतीय कंपनियों ने इक्विटी और ऋण बाजार से वर्ष 2011 में 1,80,000 करोड़ रुपए की ताजा पूंजी जुटाई, लेकिन यह 2010 के तीन लाख करोड़ रुपए के स्तर से बहुत कम रही।
विशेषज्ञों का मानना है कि शेयर बाजार में गिरावट के कारण शेयरों की बिक्री के जरिए धन जुटाना मुश्किल रहा और पूंजी आम तौर पर ऋण के जरिए ही जुटाई जा सकी। इस रुख से कंपनियों के साथ साथ औद्योगिक उत्पादन और आर्थिक वृद्धि का आंकड़ा भी प्रभावित हो सकता है। (भाषा)