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उत्तरप्रदेश 2011 : विवादों से भरा रहा साल

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उत्तर प्रदेश के लिए राजनीतिक उठापटक का वर्ष रहे साल 2011 में विपक्ष भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए राज्य की मायावती सरकार पर हमलावर रहा, वहीं सरकार ने पलटवार करते हुए विपक्षी दलों के सियासी समीकरण बिगाड़ने के लिए सूबे को चार हिस्सों में बांटने जैसे अति महत्वपूर्ण प्रस्ताव को आनन-फानन में पारित कराकर एक नई जंग छेड़ दी।

मायावती सरकार के लिए यह साल मुश्किलों भरा रहा और उसके पांच मंत्रियों को भ्रष्टाचार के आरोपों की लोकायुक्त जांच के बाद पद गंवाना पड़ा, जिससे सरकार की खासी किरकिरी हुई। साथ ही लोकायुक्त द्वारा साल के अंत तक प्रदेश के 22 मंत्रियों तथा 28 विधायकों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच जारी होने से भी सरकार की जान सांसत में रही।

इसके अलावा सरकार का साल सत्तारूढ़ बसपा के विधायकों तथा मंत्रियों पर बलात्कार, हत्या और भ्रष्टाचार के लगे गम्भीर आरोपों पर सफाई देते हुए ही बीता।

अगले साल के शुरू में होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव के मद्देनजर इस वर्ष राजनीतिक गतिविधियां भी परवान चढ़ीं और कांग्रेस, भाजपा तथा सपा समेत प्रमुख सियासी दलों की ‘यात्राओं’ का दौर सरगर्म रहा।

इस दौरान कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने खासतौर पर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई। मई में वह पुलिस-किसान संघर्ष के गवाह बने ग्रेटर नोएडा के भट्टा पारसौल में सबको चौंकाते हुए पहुंच गये। वहां वह निषेधाज्ञा के उल्लंघन के आरोप में गिरफ्तार भी किए गए।

मिशन-2012 को कामयाब बनाने में जुटे राहुल ने भट्टा पारसौल कांड के बाद अपनी सक्रियता में और तेजी लाते हुए किसान जागरण यात्रा की और पार्टी की किसान महापंचायत के लिए समर्थन जुटाया। साल के आखिरी महीनों में राहुल ने अपनी रैलियों में मायावती सरकार की जनता के बीच छवि ‘नोट खाने वाले हाथी’ के रूप में स्थापित करने की कोशिश की।

‘विकास कार्यों के लिए’ जमीन अधिग्रहण के खिलाफ किसानों के आंदोलन के चलते राज्य सरकार ने जमीन अधिग्रहण संबंधी नई नीति बनाई। इसके अलावा नोएडा में अदालत ने अनेक जमीनों के आबंटन रद्द कर दिए, जिससे वहां निवेश करने वालों को करारा झटका लगा।

उत्तर प्रदेश के लिए यह साल कथित घोटालों के नाम रहा। इस दौरान राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम), महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) और जननी सुरक्षा योजना जैसी केन्द्रीय योजनाओं में कथित रूप से हुई वित्तीय अनियमितताएं चर्चा का विषय रहीं।

वर्ष 2011 में मुख्य चिकित्साधिकारी (परिवार कल्याण) डॉक्टर बीपी सिंह की हत्या और उनके कत्ल तथा एनआरएचएम घोटाले के अभियुक्त उप मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर वाईएस सचान की लखनऊ जेल में संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु जैसी सनसनीखेज घटनाएं भी हुईं जिन्होंने स्वास्थ्य विभाग में माफिया तत्वों की पैठ का एहसास कराया।

एनआरएचएम तथा स्वास्थ्य विभाग में वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों के कारण सरकार के दो काबीना मंत्रियों बाबूसिंह कुशवाहा और अनंत मिश्र को पद छोड़ना पड़ा। इसके अलावा इन कथित घोटालों की सीबीआई जांच तथा कैग से विशेष ऑडिट कराने का आदेश दिया गया।

मुख्यमंत्री मायावती की ‘पत्र राजनीति’ भी पूरे साल चर्चा का विषय रही। चुनाव नजदीक आने के बीच उन्होंने मतदाताओं को लुभाने के लिए विभिन्न वर्गो के आरक्षण की मांग करते हुए केन्द्र को कई पत्र लिखे लेकिन उन्हें अपेक्षित प्रतिक्रिया नहीं मिली।

विधानसभा चुनाव से पहले विरोधियों के सियासी समीकरण बिगाड़ने के लिए सरकार ने राज्य विधानमंडल में उत्तर प्रदेश को बुंदेलखण्ड, पूर्वाचल, पश्चिम प्रदेश और अवध प्रदेश में बांटने संबंधी प्रस्ताव मात्र 16 मिनट में पारित करा दिया। हालांकि सरकार के इस कदम को उसकी बदनीयती का हिस्सा करार दिया गया।

इस दौरान विधानमंडल सत्र बमुश्किल डेढ़ घंटे चला जो संभवत: सबसे छोटा सत्र होने का एक रिकॉर्ड रहा। केन्द्र सरकार ने राज्य विधानमंडल द्वारा भेजे गए प्रस्ताव पर मायावती सरकार को पत्र लिखकर उससे कुछ बुनियादी सवाल पूछे।

मायावती ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए वह पत्र भेजे जाने को संविधान के प्रति उल्लंघनकारी बताया और आरोप लगाया कि केन्द्र सरकार सूबे के विभाजन के मुद्दे को ठंडे बस्ते में डालना चाहती है।

राज्य सरकार को इस साल अपने कुछ विधायकों की हरकतों की वजह से शर्मसार होना पड़ा। साल के शुरू में बांदा के नरैनी क्षेत्र से विधायक पुरुषोत्तम नरेश द्विवेदी को एक नाबालिग लड़की से बलात्कार के मामले में बसपा से निलम्बित कर दिया गया।

इस साल बसपा के दो विधायकों शेखर तिवारी और आनंद सेन यादव को क्रमश: इंजीनियर मनोज हत्याकांड तथा शशि हत्याकांड मामलों में उम्रकैद की सजा सुनाई गई। लखीमपुर खीरी के निघासन थाने में एक नाबालिग अल्पसंख्यक लड़की का शव संदिग्ध परिस्थितियों में एक पेड़ से लटका पाए जाने का मामला भी खासी चर्चा में रहा। विपक्षी पार्टियों ने इस मामले को लेकर राज्य सरकार पर खूब हमले किए। बाद में इस मामले की जांच भी सीबीआई के सुपुर्द की गई।

कभी मायावती सरकार की आंख का तारा माने जाने वाले मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा और दागी सांसद धनंजय सिंह के सितारे भी इस साल गर्दिश में रहे।

एनआरएचएम घोटाला उजागर होने के बाद इस्तीफा देने वाले कुशवाहा को प्रदेश के कैबिनेट मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी तथा कुछ ताकतवर नौकरशाहों पर कई आरोप लगाने की वजह से बसपा से निकाल दिया गया वहीं दागी सांसद धनंजय सिंह को दोहरे हत्याकांड मामले में गिरफ्तार करके उन पर गैंगस्टर एक्ट लगाया गया।

इस साल मुख्यमंत्री मायावती के परिजन पहली बार विपक्ष के निशाने पर आये। भाजपा ने तो उनके भाई आनंद कुमार के खिलाफ बाकायदा मुहिम छेड़ते हुए उन पर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में अनेक फर्जी कम्पनियां बनाकर घोटाले के 10 हजार करोड़ रुपये निवेश करने का आरोप लगाया।

वर्ष 2011 कई दुर्घटनाओं का दर्द भी दे गया। जुलाई में फतेहपुर में कालका मेल ट्रेन हादसे में 69 लोगों की मौत हो गयी। वहीं, उसी महीने कांशीरामनगर में एक फाटकरहित रेलवे क्रासिंग पार कर रही बस के छपरा-मथुरा एक्सप्रेस की चपेट में आ जाने से 38 लोगों की मृत्यु हुई।

इसके अलावा अगस्त में एक ट्रैक्टर-ट्राली के पलट जाने से 41 लोग मारे गए वहीं शाहजहांपुर में फरवरी में भारत-तिब्बत सीमा पुलिस में भर्ती के लिये आए 15 युवक लौटते वक्त ट्रेन की छत पर बैठने के कारण एक पुल से टकराने की वजह से मारे गए। (भाषा)

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