नई दिल्ली। असहिष्णुता को लेकर देश में छिड़ी तकरार तथा करीब 100 लेखकों, कलाकारों और बुद्धिजीवियों के सम्मान लौटने और इससे पैदा हुए विवाद के लिए वर्ष 2015 को साहित्य ही नहीं, बल्कि राजनीति की दुनिया में भी लंबे समय तक याद किया जाएगा।
लेखकों, कलाकारों और बुद्धिजीवियों ने न केवल पुरस्कार लौटाए बल्कि इससे देश में सम्मान वापसी को लेकर विवाद खड़ा हो गया और इसकी गूंज विदेशों तक जा पहुंची लेकिन बिहार विधानसभा चुनावों के बाद अचानक यह मुद्दा ठंडा पड़ गया जिसे लेकर सवाल उठे।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी तक ने अपने कई भाषणों में बढ़ती असहिष्णुता पर चिंता व्यक्त की और यह भी कहा कि पुरस्कार लौटाने की जगह विरोध के और तरीके अपनाने चाहिए। यह विवाद इतना तीखा हुआ कि साहित्य जगत ही नहीं, बल्कि बॉलीवुड भी विभाजित हो गया और सत्ता तथा विपक्ष के नेताओं के बीच जमकर बयानबाजी हुई और संसद में सरकार को असहिष्णुता के मुद्दे पर बहस भी करानी पड़ी। लोकसभा में तो इस मसले पर चर्चा हुई राज्यसभा में लगातार हंगामे के कारण इस पर चर्चा भी नहीं हो सकी।
कन्नड़ के साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता लेखक एमएम कलबुर्गी की दिनदहाड़े हत्या, उत्तरप्रदेश के नोएडा में गोमांस की अफवाह को लेकर अखलाक की हत्या जैसी घटनाओं ने लेखकों को इतना विचलित कर दिया कि विभिन्न भाषाओं के लेखकों ने अकादमी पुरस्कार लौटाना शुरू कर दिया और देखते-देखते इसमें देश के अन्य कलाकार तथा बुद्धिजीवी भी जुड़ते चले गए और पूरे देश में इसको लेकर वाद-विवाद खड़ा हो गया।
कलबुर्गी की हत्या के विरोध में हिन्दी के प्रसिद्ध कथाकार उदयप्रकाश ने सबसे पहले अकादमी पुरस्कार लौटाने की घोषणा अपने फेसबुक पर की। उसके करीब एक माह बाद अंग्रेजी की प्रख्यात लेखिका एवं पंडित जवाहरलाल नेहरू की भानजी नयनतारा सहगल ने भी अपना अकादमी पुरस्कार लौटाने की घोषणा की।
उसके बाद प्रख्यात कवि अशोक वाजपेयी तथा वयोवृद्ध लेखिका कृष्णा सोबती ने भी पुरस्कार लौटाया तो पुरस्कार लौटाने वालों की जैसे झड़ी लग गई और इस तरह 39 लेखकों ने अकादमी पुरस्कार लौटाए तो कई लेखकों ने अकादमी से इस्तीफा भी दे दिया। इनमें कन्नड़, मराठी, पंजाबी, बंगला और उर्दू तथा अंग्रेजी के भी लेखक शामिल थे।
इन लेखकों की सम्मान वापसी के कारण साहित्य अकादमी को अपनी कार्यकारिणी की आपात बैठक बुलानी पड़ी और उन्हें कलबुर्गी की हत्या के विरोध में निंदा प्रस्ताव भी पारित किया।
पुरस्कार लौटाने वाले लेखकों ने आरोप लगाया कि अकादमी ने कलबुर्गी की हत्या के बाद कोई शोकसभा भी आयोजित नहीं की जबकि अकादमी का कहना था कि कर्नाटक में कलबुर्गी की स्मृति में आयोजित शोकसभा में अकादमी के उपाध्यक्ष चंद्रशेखर कंबार शरीक हुए थे।
अकादमी की कार्यकारिणी की बैठक के दिन सरकार समर्थक और सरकार विरोधी लेखकों ने धरना प्रदर्शन एवं जुलूस भी निकाले। इस तरह लेखक समुदाय भी इस मुद्दे पर विभाजित हो गया। सरकार की तरफ से कई केंद्रीय मंत्रियों ने असहिष्णुता के मुद्दे को नकारा और कहा कि पुरस्कार लौटाने वाले लेखक या तो कांग्रेसी और वामपंथी हैं तथा वे मनगढ़ंत विरोध कर रहे हैं।
केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली, रविशंकर प्रसाद, महेश शर्मा तथा जनरल वीके सिंह ने सम्मान लौटाने वाले लेखकों पर हमले किए तो कांग्रेस के राहुल गांधी, माकपा के सीताराम येचुरी, जद (यू) के शरद यादव तथा नीतीश कुमार जैसे नेताओं ने कहा कि देश में असहिष्णुता का माहौल बढ़ रहा है।
बॉलीवुड की दुनिया में शर्मिला टैगोर, शाहरुख खान तथा आमिर खान ने बयान दिया कि देश में असहिष्णुता बढ़ रही है, तो उस पर हंगामा खड़ा हो गया, वहीं दूसरी ओर अनुपम खेर, रवीना टंडन, मधुर भंडारकर जैसे कलाकारों ने कहा कि देश में कहीं भी असहिष्णुता नहीं है।
प्रख्यात कवि एवं संस्कृतिकर्मी अशोक वाजपेयी ने राजधानी में असहिष्णुता के विरोध में एक राष्ट्रीय सम्मेलन भी आयोजित किया जिसमें प्रख्यात इतिहासकार रोमिला थापर, इरफान हबीब, वयोवृद्ध लेखिका कृष्णा सोबती ने भाग लिया तो इसके विरोध में अनुपम खेर के नेतृत्व में संसद मार्च भी हुआ तथा राष्ट्रपति को एक ज्ञापन भी सौंपा गया।
बाद में अशोक वाजपेयी, मशहूर चित्रकार विवान सुंदरम तथा 'जनसत्ता' के पूर्व संपादक ओम थानवी ने राष्ट्रपति से मुलाकात कर देश में असहिष्णुता को रोकने की अपील की।
अक्टूबर-नवंबर में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस, जनता दल (यू) और राष्ट्रीय जनता दल गठबंधन की भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन पर जीत के बाद असहिष्णुता और सम्मान वापसी का सिलसिला और मुद्दा अचानक थम गया। इस पर सवाल भी उठे और इसी क्रम में अनुपम खेर ने कहा कि आखिर क्यों बिहार चुनाव के बाद अचानक सम्मान वापसी का सिलसिला थम गया? (वार्ता)