किसी भी युग में रचा साहित्य अपने समय को समेटता हुआ सच होता है। साहित्य का उद्देश्य यही है कि उसमें सबका हित छुपा हो। साहित्यकार जो देखता है, भोगता है और जो दूसरों को अनुभव करते देखता है उसे अपने शब्द देता है, भाव में पिरोता है, कल्पना का अभिस्पर्श देकर सजीव और सुंदर रचना का निर्माण करता है। उसे अपने लेखन में कभी यथार्थ के कांटे रखने पड़ते हैं तो कभी सपनों के मखमली कालीन बिछाने पड़ते हैं।
कभी वह गीत लिखता है, कभी कथा, कभी लेख तो कभी कविता... अनुभवों के विविध आयामों से गुजर कर लेखन की किसी खास विधा में वह अभिव्यक्त होता है। जब-जब साल गुजरता है तो याद आते हैं चर्चित साहित्यकार और उनका रचा साहित्य। 2015 के साहित्य संसार की हर चहल-पहल पर आइए डालें एक नजर.....
'सम्मान' लौटा कर किया विरोध
साल 2015 तीन नामों के आसपास केंद्रित रहा। गोविंद पनसारे, नरेंद्र दाभोलकर और एमएम कलबुर्गी। कन्नड़ साहित्यकार और चिंतक एमएम कुलबर्गी की 30 अगस्त को कर्नाटक में गोली मारकर हत्या कर दी गई।
कुलबर्गी धार्मिक कर्मकांड और मूर्तिपूजा का विरोधी थे। उन्होंने पिछले साल मूर्ति पूजा के विरोध में बयान दिया था जिसके बाद कट्टरपंथियों ने उन्हें जान से मारने की धमकी दी थी।
फरवरी में वामपंथी विचारक गोविंद पानसरे की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। पानसरे ने महाराष्ट्र में टोल नाके के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया था।
इसी तरह पुणे के जाने−माने सामाजिक कार्यकर्ता नरेंद्र दाभोलकर की 20 अगस्त को किसी ने गोली मारकर हत्या कर दी। नरेंद्र दाभोलकर अंधविश्वास के खिलाफ लड़ते रहे थे और वह चाहते थे कि महाराष्ट्र विधानसभा में अंधविश्वास के खिलाफ कानून आए।
इन तीनों हत्याओं खिलाफ साहित्य संसार में तीखा माहौल बना। शब्द 'असहिष्णुता' चर्चा में आया और देश भर में छा गया।
साहित्य अकादमी अवॉर्ड वापसी का दौर चला जो अब तक नहीं थमा है। सबसे पहले हिन्दी लेखक उदय प्रकाश ने पुरस्कार लौटाया। उसके बाद नयनतारा सहगल(अंग्रेजी), अशोक वाजपेयी(हिन्दी),शशि देशपाण्डेय(अंग्रेजी), सारा जोसेफ़(मलयालम), रहमान अब्बास(महाराष्ट्र साहित्य अकादमी अवार्ड उर्दू) ने पुरस्कार लौटाया। इन बड़े नामों के बाद देश भर के साहित्यकार और चिंतकों में यह होड़ सी लग गई।
मित्रो मरजानी और ज़िंदगीनामा जैसे उपन्यासों की लेखिका कृष्णा सोबती व काशीनाथ सिंह ने भी लेखकों और बुद्धिजीवियों की हत्या के विरोध में साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने की घोषणा की। प्रसिद्ध मलयालम लेखक सच्चिदानंदन ने लिखने-बोलने-सोचने की आजादी पर हमले के विरोध में अकादमी के सभी पदों से इस्तीफ़ा दे दिया।
तीन वरिष्ठ पंजाबी लेखकों गुरबचन सिंह भुल्लर, अजमेर सिंह अलख और आत्मजीत सिंह ने भी देश में बढ़ती असिहष्णुता के विरोध में अपने अपने साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने की घोषणा की।
मंगलेश डबराल, राजेश जोशी(हिन्दी), गणेश देवी(अंग्रेजी), एन शिवदास(कोंकणी), के वीरभद्रप्पा(कन्नड़) और वीर याम सिंह संधु(पंजाबी) और अमन सेठी(अंग्रेजी)ने भी साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने की घोषणा की वहीं कन्नड़ लेखक अरविंद एम ने अकादमी की जनरल काउंसिल से इस्तीफ़ा दे दिया।
अंग्रेजी के दो विश्वविख्यात लेखकों विक्रम सेठ और अनीता देसाई ने भी साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने की मंशा जाहिर की। भारत में इस तरह लेखकों और विचारकों की हत्या के विरोध में अब तक दो दर्जन से अधिक साहित्यकार अपने अपने पुरस्कार लौटा चुके हैं।
इन्हीं सबके बीच साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल ने कहा कि "मैं पुरस्कार लौटा नहीं रहा हूं। मैं कट्टरता विरोध करता हूं, लेकिन विरोध के रूप में पुरस्कार लौटाने को मैं विकल्प की तरह नहीं देखता। 1999 में मुझे साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था और अब पंद्रह-सोलह वर्ष तो हो ही गए हैं इस पुरस्कार से गौरवान्वित हुए। इस गौरवान्वित होने को कैसे वापस किया जाएगा? मुझे यह पुरस्कार मिला है, इस सचाई को कैसे झुठलाया जाए।"
बहरहाल 2015 में साहित्यकार सम्मान मिलने से अधिक सम्मान लौटाने के लिए चर्चित रहे। धरना और रैली के अलावा बयानों से भी वे मीडिया में छाए रहे।
विश्व हिन्दी सम्मेलन : थोड़ा खट्टा-थोड़ा मीठा
हिन्दी के लिए हिन्दी प्रदेश यानी मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में 10 से लेकर 12 सितंबर 2015 तक दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन हुआ। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस आयोजन का शुभारंभ किया। यह तीन दिवसीय आयोजन अपने मिलेजुले प्रदर्शन से चर्चा में रहा। कुछ साहित्यकार आमंत्रण ना मिलने से नाराज नजर आए तो कुछ आमंत्रण के बाद भी प्रवेश ना मिलने से। विशेष बात यह रही कि पूरे आयोजन में तकनीक और हिन्दी के गठजोड़ को और अधिक मजबूत बनाने पर जोर दिया गया। थोड़ी बहुत कमियों के बावजूद यह आयोजन सफल माना गया क्योंकि दूसरे सम्मेलनों की तरह यहां साहित्य के मठाधीशों का वर्चस्व नहीं रहा।
कई हिन्दी प्रेमी जो अब तक हुए सम्मेलनों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया करते थे उनका गायब रहना भी चर्चा का विषय रहा और कानाफूसी यह सुनाई दी कि उन्हें हिन्दी से ज्यादा विदेश प्रवास में दिलचस्पी होती है। इस बार आयोजन भारत में हुआ तो उनके हिन्दी प्रेम का बिरवा मुरझा गया। विश्व हिन्दी सम्मेलन की अधिक जानकारी के लिए दी गई लिंक्स पर क्लिक कीजिए।
फिर चर्चा में रहा 'कोशिश करने वालों की हार नहीं होती'
कई सालों से यह लोकप्रिय पंक्तियां सुप्रसिद्ध साहित्यकार हरिवंश राय बच्चन के नाम से लिखी और पढ़ी जाती रही है। पिछले साल इसके असली लेखक को लेकर एक बहस चली कि यह पंक्तियां कवि सोहन लाल द्विवेदी की हैं बच्चन की नहीं वहीं एक वर्ग यह भी दावे पेश करता दिखाई दिया कि यह पंक्तियां निराला की है।
हालांकि सोहनलाल द्विवेदी के पक्ष में माहौल बनता अधिक दिखाई दिया। उनके लिए आरंभ की गई मुहिम ने साहित्य जगत जोर पकड़ा और सोशल मीडिया से होते हुए इस स्तर तक पहुंचा कि बच्चन जी के पुत्र सुविख्यात अभिनेता अमिताभ बच्चन को फेसबुक और ट्विटर पर यह स्पष्ट करना पड़ा कि यह कविता उनके पिता की नहीं है अत: इस कविता के साथ उनका जिक्र न किया जाए।
विश्व पटल पर ....
विश्व पटल पर हार्पर ली की गो सेट अ वॉचमैन, मिलान कुंदेरा की 'द फेस्टिवल ऑफ इनसिग्निफिकेंस' और मारियो वर्गास लाओसा की 'द डिस्क्रीट हीरो' जैसी किताबें आईं और पसंद की गई। विश्व पटल पर 10 प्रमुख पुस्तकें कौन सी रहीं जानने के लिए लिंक पर क्लिक करें।
नई दस्तक ....
2015 में रमेश कुंतल मेघ की रचना 'विश्वमिथकसरित्सागर' का जिक्र बेहद जरूरी है। इसमें 35 देशों और नौ संस्कृतियों के मिथकों को बड़ी कुशलता से संयोजित किया गया है। इसी बीच विलियम डैलरिंपल के 'द लास्ट मुगल' के हिन्दी अनुवाद 'आखिरी मुगल' का हिन्दी भाषी युवा पाठकों ने दिल खोलकर स्वागत किया।
शिवानी की बेटी उनकी यश गाथा को आगे बढ़ा रही हैं। जी हां मृणाल पांडे ने 2015 में 'ध्वनियों के आलोक में स्त्री', शीर्षक से बेहतरीन किताब दी है। इसमें गौहर जान, गंगुबाई हंगल, बेगम अख्तर जैसी कमाल की गायिकाओं के जीवन को पूरी रोचकता से प्रस्तुत किया गया है।
2015 में शशिकांत मिश्र के उपन्यास 'नॉन रेजीडेंट बिहारी' ने चर्चा बटोरी, वहीं दशरथ मांझी की जिंदगी पर रचा निलय उपाध्याय का उपन्यास 'पहाड़' भी हाथों हाथ लिया गया। निखिल सचान के कहानी संग्रह 'जिंदगी आइस-पाइस', संजीव के उपन्यास 'फांस' और सत्य व्यास के उपन्यास 'बनारस टॉकीज' ने भी अपनी उपस्थिति पूरे दमखम से कराई है
साहित्यकार विश्वनाथ त्रिपाठी के लेखन की निरंतरता बनी हुई है। 'नंगातलाई का गांव' से 'व्योमकेश दरवेश' तक होते हुए अब उनके संस्मरणों की किताब 'गुरुजी की खेती बारी' ने पाठकों को आकर्षित किया है।
वर्ष 2015 में युवा और क्रांतिकारी कवयित्री बाबुषा कोहली की खूबसूरत लेखनी ने सारे साहित्य संसार को आकर्षित किया। उनकी कृति 'प्रेम गिलहरी दिल अखरोट' में जिस अनूठेपन और शाब्दिक चमत्कार से बाबुषा चौंकाती है वह मुक्त कंठ से प्रशंसनीय है। उनकी उपमाएं नई है, लेखन में ताजगी है और भाषा मधुर है।
लोकप्रिय साहित्य की दुनिया में सदा की तरह चेतन भगत, अमीष त्रिपाठी, देवदत्त पटनायक और सुरेंद्र मोहन पाठक छाए रहे। अमीष त्रिपाठी की 'इक्ष्वाकु के वंशज' ने कमाई के रिकॉर्ड तोड़े हैं और भारतीय युवा वर्ग द्वारा इसे गहरी दिलचस्पी से पढ़ा गया। चेतन भगत की 'हाफ गर्लफ्रेंड' भी ट्रेन में लड़कियों के सिरहाने रखी मिली। हालांकि पु्स्तकों के विक्रेता बताते हैं कि चेतन का बिजनेस औसत ही रहा।
इस वर्ष की सर्वाधिक चर्चित किताब रही युवा कथाकार प्रभात रंजन की कोठागोई। अनूठी शैली में रचे गए इस उपन्यास की विशेषता है कि इसमें उस संस्कृति को सहेजने का शुभ उद्देश्य साफ नजर आता है जो बदलते समय के साथ खत्म होती जा रही है।
उपन्यास के नाम से होने वाले भ्रम को तोड़ते हुए प्रभात ने कोशिश की है कि बनारस और लखनऊ के अलावा मुजफ्फरपुर के चतुर्भुज इलाके से निकली श्रेष्ठतम गायन परंपरा को सही परिप्रेक्ष्य में समझा जाए। प्रभात कहते हैं ''खत्म हो रहा है सब कुछ लेकिन जो बीत गया है उस सुनहरे दौर का सम्मान किया जाना बेहद जरूरी है इस भ्रांति को परे रखकर कि कोठा सिर्फ नाचने-गाने की जगह है।
देवदत्त पटनायक को उनके भारतीय प्रशंसकों व पाठकों ने आधुनिक वेदव्यास की उपाधि दी है। मात्र 36 ट्वीट्स में उन्होंने पूरी महाभारत लिख डाली। पौराणिक विषयों पर महारत हासिल करने के बाद इस साल 'शिखंडी' लिख कर वे फिर चर्चा में बने रहे। सुरेंद्र मोहन पाठक इस साल 'गोवा गलाटा' के साथ पाठकों से रूबरू हुए।
अभिनेत्री ट्विंकल खन्ना की ‘मिसेज फन्नीबोन्स: शीज जस्ट लाइक यू एंड ए लॉट लाइक मी’ भी मार्केट में पसंद की गई। ट्विंकल ने बताया कि मैं दो साल से लिख रही हूं। आप लोगों को यह देर से पता चला।
कहां गए वो लोग
इस साल की सबसे बड़ी क्षति रही पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का हमारे बीच से चले जाना। 2015 में उनकी आत्मकथा और अन्य किताबें खूब क्रय की गई। लेखक और निर्देशक गुलजार की आवाज में उनकी आत्मकथा की सीडी सैकड़ों युवा प्रशंसकों ने ऑनलाइन खरीदी।
अन्य रचनाकार जिन्होंने 2015 में हमसे विदा ली...
* हिन्दी के वरिष्ठ लेखक कृष्णदत्त पालीवाल
* दलित लेखक प्रोफेसर तुलसीराम,
* मशहूर आलोचक विजय मोहन सिंह,
* वरिष्ठ कवि कैलाश वाजपेयी,
* सारिका पत्रिका के संपादक अवध नारायण मुदगल,
* उपन्यासकार महेन्द्र भल्ला,
* आलोचक पुष्पपाल सिंह,
* वरिष्ठ लेखक कमलेश,
* साहित्यकार जगदीश चतुर्वेदी
* वरिष्ठ आलोचक डॉ. गोपाल राय
* वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. महीप सिंह
* समाजवादी चिंतक कृष्णनाथ
* तमिल लेखक जयकांतन,
* जर्मन लेखक गुंटर ग्रास,
* उर्दू के लेखक अब्दुल्ला हुसैन
* सुविख्यात लेखक-पत्रकार प्रफुल्ल बिडवई
* चंदामामा पत्रिका संपादक बालशौरी रेड्डी
* कवि और पत्रकार पंकज सिंह (बीबीसी)
* पश्यंति के संपादक प्रणव कुमार बंदोपाध्याय
* मराठी साहित्यकार मंगेश पाडगांवकर
सम्मान-पुरस्कार
2015 में साहित्य अकादमी पुरस्कार के लौटाने की चर्चा में दूसरे सम्मान और पुरस्कारों की चर्चा अधूरी रह गई।
वरिष्ठ लेखक कमल किशोर गोयनका : व्यास सम्मान
मराठी के लेखक भालचंद्र नेमाड़े : 50वां भारतीय ज्ञानपीठ सम्मान
युवा कवयित्री बाबुशा कोहली : भारतीय ज्ञानपीठ का नवलेखन पुरस्कार (प्रेम गिलहरी, दिल अखरोट)
कथाकार उपासना : भारतीय ज्ञानपीठ का नवलेखन पुरस्कार
कथाकार इंदिरा दांगी : साहित्य अकादमी का हिन्दी भाषा के लिए युवा पुरस्कार
साहित्यकार केदारनाथ सिंह : परिवार पुरस्कार
उपन्यासकार कथाकार अखिलेश : कथाक्रम सम्मान
प्रो. आच्छा : नंददुलारे वाजपेयी पुरस्कार
साहित्यकार रामदरश मिश्र (आग की हंसी) : साहित्य अकादमी पुरस्कार 2015