तेल के खेल में सरकार मालामाल, आम आदमी बेहाल
2015 में एक ओर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल के दाम लगातार गिरते रहे तो भारत में पेट्रोल, डीजल, एलपीजी, सीएनजी के दामों में भारी कमी की उम्मीदें लिए आम आदमी का पूरा साल निकल गया। सरकार ने मौके का फायदा उठाया और जमकर कर वसूली की। तेल कंपनियां भी मौके का फायदा उठाने में पीछे नहीं रही और मालामाल हो गई।
कच्चे तेल के लिए यह वर्ष किसी बूरे सपने से कम नहीं रहा। मई 2014 में 100 डॉलर प्रति बैरल पर चल रहे क्रूड के दाम 21 दिसंबर 2015 तक घटकर 36.05 डॉलर प्रति बैरल रह गए। मई 2004 के बाद यह पहली बार इस स्तर पर पहुंचा है। यही हाल यूएस क्रूड का रहा, जो 34.12 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर रहा। इस तरह से देखा जाए तो कच्चा तेल महज डेढ़ साल में 65 फीसद से ज्यादा सस्ता हो चुका है।
दूसरी ओर अमेरिका ने कच्चे तेल के निर्यात पर 40 साल से लगी पाबंदी हटा ली है। ईरान और रूस भी अपना क्रूड उत्पादन बढ़ाते चले जा रहे हैं, जबकि निर्यातक देशों के संगठन ओपेक ने पहले ही उत्पादन में कटौती करने से इनकार कर दिया है। नतीजतन कच्चे तेल के दाम बढ़ने का नाम ही नहीं ले रहे हैं।
एक ओर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल का हाल बेहाल था तो दूसरी ओर भारत सरकार ने इस अवसर का फायदा उठाते हुए जमकर टैक्स वसूली की। क्या केंद्र सरकार और क्या राज्य सरकारें सभी ने कूट-कूटकर महंगाई से परेशान जनता से तेल पर टैक्स वसूला। पेट्रोल, डीजल, एलपीजी, सीएनजी, पीएनजी जिसे जहां मौका मिला टैक्स लगा दिया।
ऐसा नहीं है कि आम आदमी को इसका फायदा नहीं मिला लेकिन उतना ही मिला जैसे ऊंट के मुंह में जीरे... पेट्रोल-डीजल के दामों में काफी कम कमी की गई और एलपीजी में सब्सिडी प्राप्त उपभोक्ताओं को पूरी तरह दरकिनार कर गैर सब्सिडी वाले उपभोक्ताओं को ही इसका फायदा दिया गया। इसके पीछे शायद यही था कि सब्सिडी की जटिलता से परेशान लोग सब्सिडी वाले गैस सिलेंडर ही सरेंडर कर दे।
तेल कंपनियों ने पेट्रोल-डीजल के दाम कुछ कम किए भी तो पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग करने वालों को इसका फायदा नहीं मिल सका। हवाई जहाज, ट्रेन, बस, टैक्सी कार, ऑटो के किराए में इस वर्ष कोई उल्लेखनीय कमी दर्ज नहीं की गई। इसी तरह माल भाड़ा भी कम नहीं हुआ और महंगाई के बढ़ते कदम को थामने में की दिशा में तेल का योगदान नगण्य रहा।
इस तरह से देखा जाए तो 2015 तेल के लिए बेहद डरावना रहा। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तरों पर इसे लोगों की रुसवाई ही झेलना पड़ी। उम्मीद है कि 2016 में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल की हालत में सुधार होगा और देश में सरकार को भी इस पर तरस आएगा और कर का बोझ कम होगा।