धर्म अब ईश्वर या स्वयं की खोज का मार्ग नहीं रहा। धर्म एक व्यापार, जिहाद, धर्मयुद्ध और क्रूसेड है। धर्म सत्ता हथियाने का साधन भी है। हर धर्म चाहता है कि संपूर्ण धरती पर हमारे ही धर्मों के लोग रहें इसीलिए वे जिहाद करते हैं, धर्मांतरण करते हैं या मिशनरी की तरह दूसरे धर्मों के लोगों के प्रति लामबंदी करते हैं। भीतर कुछ और बाहर कुछ और दिखाई देने वाले पूंजीवादी, वामपंथी, धर्मनिरपेक्ष, राजनीतिज्ञ और कथित धार्मिक गुरु सबसे ज्यादा जहरीले हो चले हैं।
पूंजीवादी मुल्क गरीब मुल्कों में धन के बल पर लोगों में फर्क डालते हैं, हथियार बांटते हैं और उस मुल्क के खिलाफ देशद्रोह करना सिखाते हैं। सांप्रदायिक विचारधारा इस वर्ष अपने चरम पर चली गई। सांप्रदायिक विचारधारा से कहीं ज्यादा घातक वह विचारधारा है जिसे साम्यवादी और धर्मनिरपेक्ष विचारधारा कहा जाता रहा है। दोनों ही तरह की विचारधारा धर्म का इस्तेमाल बखूबी करना जानती है, क्योंकि लोगों की अक्ल पर पर्दा डला हुआ है।
धर्म का इस्तेमाल राजनीतिक सत्ता हासिल करने और अपने व्यापार को फैलाने के लिए मध्यकाल में अपने चरम पर था। कहीं-कहीं धर्म ने राजनीति और व्यापार को अपने विस्तार के लिए इस्तेमाल किया। नई कौम, रूहानी कौम, सच्चा मार्ग, ईश्वर की कौम के नाम पर कई पंथ चले और आज उनके ही कारण दुनियाभर में अशांति है। हिन्दू धर्म की तरह ही इस्लाम और अन्य सभी धर्म कई फिरकों में बंट गए।
अब धर्म के बारे में बात करना मौत को दावत देने जैसा है। दुख तो तब होता है, जब भारत की मीडिया सभी तरह की बुरी विचारधारा का एक प्लेटफॉर्म बन गया है जिसमें बाजारवाद और विदेशी पूंजी फंसी हुई है। किसी भी देश को सीरिया या अफगानिस्तान बनाए जाने के लिए मीडिया के माध्यम से देश में गुस्सा भरे जाने की नीति ही काफी है।
इस वर्ष हमने संत, पंडित, मुल्ला, मौलवी और इमामों को राजनीति की शरण में और राजनीतिज्ञों को इनकी शरण में जाते हुए भी देखा, क्योंकि इस वर्ष बिहार के चुनाव के साथ ही कई राज्यों के उपचुनाव भी थे। इस चुनाव में धर्म की बहुत बड़ी भूमिका रही। एक ओर दंगे थे तो दूसरी और लव जिहाद का शोर, एक ओर दादरी कांड था तो दूसरी और पुरस्कार लौटने वालों की होड़। हालांकि चुनाव के बाद सभी का शोर बंद हो गया है। सभी तरह के कुवचन बंद हो गए और मीडिया में भी अब कोई माहौल को खराब करने वाली बहसें कुछ खास नहीं हो रही हैं।
सोशल मीडिया का धर्म : इस वर्ष फेसबुक और ट्विटर के बढ़ते प्रचलन के बीच हमने एक ओर हिन्दू और मुस्लिम युवाओं का कट्टर चेहरा देखा तो दूसरी ओर ऐसी झूठी पोस्टें भी देखीं जिनको पढ़कर हिन्दू और मुसलमानों के मन में नफरत का विस्तार होता है। इस मीडिया का भयानक रूप तब सामने आने लगा जबकि लड़कियों को जाल में फंसाकर उनको एक देश से दूसरे देश में बेच दिया जाता है और दूसरी ओर इसके माध्यम से आतंकवादियों का एक ऑनलाइन नेटवर्क खड़ा कर दिया गया है। इस मीडिया का सबसे खतरनाक कार्य यह है कि इसके माध्यम से जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तोइबा जैसे आतंकवादी संगठन अब भारतीय मुसलमानों को आतंक, अलगाव और जिहाद की राह पर चलने की सलाह दे रहे हैं ताकि भारत के लोगों का जीवन बर्बाद करके उनकी भूमि को भी अफगानिस्तान की तरह युद्ध भूमि में बदल दिया जाए।
सचमुच सोशल मीडिया के माध्यम से अब भारत में बैठा व्यक्ति ISIS के हाथों की कठपुतली बन सकता है तो दूसरे मुल्क के ड्रग्स माफियाओं से आसानी से संपर्क भी कर सकता है। धर्म के नाम पर उधर पाकिस्तान में धर्म का अलग तरह से दोहन किया जा रहा है, किस तरह? यह कहने की बात नहीं है। लेकिन अब हिन्दुस्तान में भी फेसबुक और ट्विटर ने यह काम आसान कर दिया है। देश और धर्म के लिए यह मीडिया बुरा ही साबित हुआ है और हो रहा है। आने वाले समय में इस मीडिया के माध्यम से भारत में असंतोष और अलगाव बढ़ेगा ही, क्योंकि यही अमेरिका की नीति भी है।
टेलीविजनों का धर्म : टीवी चैनलों ने धर्म का प्रस्तुतीकरण पूरी तरह से बदल दिया है। अब उनके ज्योतिष कार्यक्रम में ज्योतिषियों के प्रस्तुतीकरण और ज्योतिष के अजीबोगरीब झूठे उपायों ने जनता में पहले से कहीं अधिक भ्रम फैला दिया है। इससे हिन्दू धर्म की प्रतिष्ठा दांव पर लग गई है। एक ओर इस देश में ज्योतिषियों की फौज खड़ी हो गई है, तो दूसरी ओर बाबाओं और स्वयंभू गुरुओं की भी नई फौज तैयार हो गई है। उत्तर भारत में निर्मल बाबा और दक्षिण भारत में ईसाइयों के धर्म प्रचारक इंजीलवादी बाबा केए पॉल उर्फ पॉल दिनाकरन अभी भी टेलीविजन पर लाइव प्रवचन देते हैं। इस प्रकार एक ओर जहां निर्मल बाबा का उद्देश्य लोगों से पैसे ऐंठना है, तो पॉल बाबा का उद्देश्य हिन्दुओं को चंगाई सभा के नाम पर ईसांईं बनाना रहा है।
मीडिया द्वारा प्रचारित या कहें कि पैदा किए गए ऋषि और मुनि भी अब एसी बेडरूम और स्वीमिंग पूल का मजा लेते हैं। यू-ट्यूब पर अपने प्रवचन डालकर उन्होंने देखते ही देखते भव्य साम्राज्य खड़ा कर लिया है। धार्मिक चैनलों पर तो दंत मंजन, किताबें, चूर्ण के साथ ही अब धार्मिक ज्ञान और वस्तुओं को आधुनिक लुक दिया जा रहा है। चैनलों और अखबारों के माध्यम से 2015 में भी हमने रुद्राक्ष, माला, पारद शिवलिंग, ताबीज, यंत्र, मंत्र और तंत्र के नए-नए रूप देखे हैं। नवरात्रि और मोहर्रम के मेलों में धार्मिक पोस्टरों और अन्य सामग्रियों के दाम भी उनकी आधुनिक शैली के कारण ही बढ़े हैं। क्रिसमस का बाजार तो पहले से ही चमकदार रहा है।
खैर, हमने तो सुना था कि धार्मिक संत सत्य, अहिंसा, नैतिकता का पाठ पढ़ाते हैं लेकिन वर्ष 2015 में दुनियाभर के पादरियों, संतों, इमामों और बाबाओं के कुकृत्य अखबारों की सुर्खियां बने रहे। दूसरी ओर जहां पाकिस्तान, बांग्लादेश, बर्मा और श्रीलंका में धर्म के नाम पर अल्पसंख्यकों पर जुल्म बढ़े, वहीं भारत में असहिष्णुता को जबरन मुद्दा बनाकर भारत की छवि खराब की गई। आओ नजर डालते हैं धर्म और संप्रदाय से जुड़े प्रमुख विवादों और कुछ घटनाओं के बारे में...
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गाय विवाद और राजनीति : बिहार में गाय वोट नहीं बटोर सकी लेकिन गाय देश और धर्म के केंद्र में वर्ष के शुरुआत से ही रही। गाय का मामला तब गर्मा गया, जब दादरी में एक मुसलमान की भीड़ द्वारा इसलिए मारकर हत्या कर दी गई कि उस पर शंका थी कि उसने गाय को मारकर खाया था।
भारत के मीडिया ने इस घटना की बगैर जांच किए इसी आधार पर खबर चलाई और इसे राष्ट्रीय मुद्दा बना दिया। यह घटना उत्तरप्रदेश के दादरी के पास गांव बिसवाड़ा में घटी थी। उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार है, लेकिन इस घटना का सारा दोष प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर मढ़कर यह मुद्दा बनाया गया कि देश में असहिष्णुता फैल रही है। कुछ नेताओं ने दादरी की घटना पर आपत्तिजनक बयान दिए जिससे हालात बद से बदतर हुए और इस घटना का अंतरराष्ट्रीयकरण कर दिया गया।
गाय पर राजनीति करने वालों ने कभी गाय की सुध नहीं ली। हालांकि ऋषि कपूर, शोभा डे, जस्टिस मार्कन्डेय काटजू ने यह कहकर हिन्दू धर्म का अपमान ही किया कि वे गाय का मांस खाते हैं। इससे पहले कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने युवा कांग्रेस की एक रैली में कहा था कि वे बीफ नहीं खाते लेकिन अब वे खा सकते हैं। इससे पहले जम्मू-कश्मीर के इंडिपेंडेंट शेख अब्दुल राशिद ने बीफ पार्टी देकर हिन्दुओं की भावनाओं को बुरी तरह आहत कर दिया था। इससे हिन्दुओं की भावनाएं जहां आहत हुई वहीं इस मामले में इन लोगों ने आग में घी डालने का कार्य किया।
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सहिष्णुता बनाम असहिष्णुता : दादरी घटना के पहले से ही साहित्यकार देश में कथित रूप से फैल रही असहिष्णुता को लेकर खासे बेचैन थे या कि वे बेचैन इसलिए भी थे, क्योंकि उनकी विदेश यात्राओं और ऐशो-आराम पर रोक लग गई थी। उन पर आरोप कैसे भी लगाए जा सकते हैं लेकिन उन्होंने साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाकर देश और अकादमी का अपमान ही किया। भारत को बदनाम करने में वे भी इस वर्ष धर्मनिरपेक्षतावादियों के साथ सक्रिय रहे, ऐसा सत्तापक्ष का आरोप है।
हालांकि यह मामला दादरी घटना से पहले से ही शुरू हो गया था जिसमें महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के नरेन्द्र दाभोलकर और कन्नड़ लेखक एमएम कलबर्गी की हत्या के मामले को मुद्दा बनाया गया था। इसको लेकर देश के कई लेखकों ने साहित्य अकादमी का पुरस्कार लौटाकर अपना विरोध दर्ज कर असहिष्णुता के मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण कर दिया।
इस मामले से देश में असहिष्णुता फैलने का आरोप लगाने वालों के खिलाफ भारतीय जनता पार्टी और उनके समर्थकों ने भी करारा जवाब दिया जिसमें यह कहा गया कि कांग्रेस के शासन में जब कश्मीर में पंडितों का नरसंहार हो रहा था तब ये सभी धर्मनिरपेक्ष, वामपंथी दल और देश के साहित्यकार चुप क्यों थे? जब कांग्रेस के ही शासनकाल में सिखों के परिवारों को जिंदा जलाया जा रहा था, तब क्या देश में असहिष्णुता का माहौल नहीं था? गोधरा की एक ट्रेन में 56 रामभक्तों को जिंदा जला दिया गया, तब पुरस्कार लौटाने वाले देश के लेखक कहां थे? जब केरल और असम में हिन्दुओं को मौत के घाट उतारा जा रहा था, तब धर्मनिरपेक्ष दलों को देश में असहिष्णुता नजर नहीं आई?
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राष्ट्रवाद बनाम धर्मनिरपेक्षता : साध्वी निरंजना ने रामजादे और... कहकर कई दिनों तक संसद नहीं चलने दी। यह उतना गंभीर नहीं है जितना कि उनके वचनों से देश का माहौल खराब हुआ। इससे बाद आदित्यनाथ, आजम खान, साक्षी महाराज, प्रवीण तोगड़िया, अशोक सिंघल, इमाम बुखारी, अकबरुद्दीन औवेसी, असदउद्दीन औवेसी, जाकिर नायक और गुजरात के सूफी इमाम मेहदी हुसैन आदि नेताओं सहित कई धार्मिक नेताओं के इस वर्ष के कुवचनों से सोशल मीडिया भरा पड़ा है।
इससे भी खतरनाक बात तो यह कि टीवी चैनल इन लोगों के बयान दिनभर दिखाकर और प्रचारित करते रहे। इससे देश में ऐसा माहौल बना कि देश को सभी आमजनों को लगने लगा है कि शायद देश में कोई तूफान आने वाला है। हर व्यक्ति अब एक-दूसरे को संदेह की निगाह से देखता है। देश का माहौल खराब करने में कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों भी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी।
गैर-जिम्मेदाराना बयान : यदि हम गैर-जिम्मेदाराना बयानों के लिए नेताओं की लिस्ट बनाएं तो उसमें मुलायम सिंह, अमित शाह, अबू आजमी, बेनी प्रसाद वर्मा, गिरिराज सिंह, यूपी के कांग्रेसी नेता इमरान मसूद, उमा भारती, लालू प्रसाद यादव, दिग्विजय सिंह, फारुक अब्दुल्ला, साक्षी महाराज, आदित्यनाथ, असदउद्दीन औवेसी, उद्धव ठाकरे, राहुल गांधी आदि नेताओं के नाम लिखे जा सकते हैं।
इस वक्त विपक्ष ने एकजुट होकर असहिष्णुता के मुद्दे को ऐसी हवा दी कि देश का पर्यटन विभाग अब निराश है। देश में माहौल बिलकुल शांत है लेकिन रूस ने अपने लोगों से कह दिया कि यात्रा के लिहाज से वे अभी भारत न जाएं। आप बताइए कि विपक्ष ने अपनी राजनीति चमकाने के लिए जाने या अनजाने क्या देश का अहित नहीं किया? राहुल गांधी कहते हैं कि नरेन्द्र मोदी गुस्से की राजनीति करते हैं, लेकिन मोदीजी को कभी संसद में चिल्लाते हुए नहीं देखा गया जबकि राहुल और असदुद्दीन औवेसी को बहुत गुस्से में देखा गया है।
यह वर्ष पूरी तरह चुनाव का रहा। इस दौरान राजनीतिज्ञ और धार्मिक शक्तियां अपने चरम पर थीं। धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक ताकतें और उनसे जुड़े लोग नहीं चाहते थे कि नरेन्द्र मोदी सत्ता में आएं इसलिए खूब शोर-शराबा हुआ। और जब वे सत्ता में आ गए हैं तो अब वे नहीं चाहते हैं कि उन्हें शांतिपूर्वक कोई कार्य करने दिया जाए, ऐसा अक्सर भाजपा आरोप लगाती रही है, लेकिन सबसे ज्यादा मुश्किल तो भाजपा नेताओं ने ही खड़ी की है।
जब वे सत्ता में नहीं आए थे तब उन्हें सांप्रदायिक कहते हुए सोनिया गांधी ने इमाम बुखारी की शरण ली थी और अरविंद केजरीवाल ने भी मुल्लाओं का दामन थाम लिया था। अब जब वे आ गए हैं तो उनके खिलाफ एक-दूसरे का विरोधी समूचा विपक्ष एकजुट होकर उनका मुकाबला कर रहा है। सभी मान-मर्यादा भूलकर रोज नए-नए मुद्दे बनाए जाते हैं और देश की छवि खराब करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी जाती है।
अपने बेतुके और बगैर सिर-पैर के बयान देने वालों में मशहूर दिग्विजय सिंह की नजर में आरएसएस और आईएसआई में कोई फर्क नहीं है। मणिशंकर अय्यर और सलमान खुर्शीद पाकिस्तान में जाकर भारत विरोधी बयान दे रहे हैं और फारुक अब्दुल्ला के सुर भी अब पाकिस्तानी सुर से मिलने लगे हैं। यहां तक कि बॉलीवुड के आमिर खान और शाहरुख खान ने भी कथित रूप से धर्मनिरपेक्ष दलों के मोदी विरोधी मूवमेंट को अपने बयान से हवा देकर देश का माहौल खराब करने में अहम किरदार निभाया।
इधर, राहुल गांधी भी अब झूठ बोलना और राजनीति करना सीख गए हैं। उनकी आंखों से अब मासूमियत नहीं, चालाकी झलकती है। भ्रष्ट लालू प्रसाद यादव और चालाक नीतीश कुमार से हाथ मिलाने में उन्हें कोई गुरेज नहीं। 'दुश्मन का दुश्मन हमारा दोस्त है' की नीति पर चलकर उन्होंने भी अब राजनीति सीख ली है।
सांप्रदायिक संगठनों की बेचैनी : हिन्दू संगठन इस बात से चिंतित हैं कि देश में दरगाहों को मस्जिद में कन्वर्ट कर दिया गया है तो दूसरी ओर बाहरी मुसलमानों की घुसपैठ बढ़ गई है, वहीं दूसरी ओर ईसांईं मिशनरियों को भी अब लगने लगा है कि आदिवासी और पिछड़े इलाकों में हिन्दुओं को ईसांईं बनाने के मिशन को अब कुछ समय के लिए रोकना होगा और फिर से कांग्रेस के आने का इंतजार करना होगा। तीसरी ओर बिहार और उत्तरप्रदेश की तबलीगी जमात, बरेली शरीफ और देवबंद जमात में भी खासी बेचैनी लाजिमी है।
सभी ने मिलकर एक ओर जहां 'घर वापसी' को मुद्दा बनाया तो दूसरी ओर हिन्दुओं के बीच विभाजन की नीति के तहत दलित मुद्दे को हवा दी। हालांकि इस बीच साक्षी महाराज, साध्वी प्राची और आदित्यनाथ ने ऐसे बयान दिए जिसके चलते हिन्दुओं के प्रति दूसरे धर्म के लोगों में नफरत का विस्तार ही हुआ। ऐसे में इस वर्ष धर्म, जाति और प्रांतवाद पूर्णत: राजनीति की शरण में ही रहा और हर बार की तरह इस बार उसका व्यापार और आतंकवाद में कन्वर्जन भी अच्छे तरीके से किया गया।
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कश्मीर में आतंकवाद : कश्मीर में इस वर्ष धार्मिक कट्टरता के चलते अलगाववाद और आतंकवाद का नया रूप देखने को मिला। किश्तवाड़ में हिन्दुओं के कत्लेआम के घाव अभी भरे ही नहीं थे कि आए दिन शुक्रवार की किसी नमाज के बाद सड़कों पर पाकिस्तान और आतंकवादी संगठन आईएस के झंडे लहराते हुए नकाबपोशों के फोटो दुनियाभर के मीडिया में छाए रहे।
कश्मीरी पंडित : इस बीच बीजेडी के एक सांसद ने सरकार से सवाल पूछा कि कहां गायब हो गए कश्मीर के मंदिर? बीजेडी के भर्तृहरि महताब ने कहा कि सरकार द्वारा मुहैया कराई गई लिस्ट के मुताबिक 1989 से पहले कश्मीर में 436 मंदिर थे। उन्होंने पूछा कि 266 मंदिर सही-सलामत थे और 170 डैमेज्ड। इसके बाद 90 मंदिरों का पुनरुद्धार किया गया था। वहां के बाकी 80 मंदिर कहां गए? बीजेडी ने गत दिवस लोकसभा में कहा कि 2009 से अब तक कश्मीर में 80 मंदिर गिराए जा चुके हैं।
उन्होंने कहा कि 1989 में कश्मीरी पंडितों के खिलाफ शुरू हुए अभियान और आतंकियों के डर से करीब 3.5 लाख हिन्दू घाटी छोड़कर जा चुके हैं, जो देशभर में शरणार्थियों का नारकीय जीवन जी रहे हैं।
आतंक और अलगाववादियों की नई नस्ल तैयार : दरअसल लंबे अरसे से भारत में आतंकी हमला कर पाने में नाकाम आईएसआई और लश्कर का आका हाफिज सईद बौखला गया है और वो हर हाल में भारत में आतंकी वारदात को अंजाम देने की फिराक में है। इसी के चलते उसने प्रचार माध्यमों से कश्मीर में नए सिरे से अलगाव और आतंक की आग भर दी है।
इसी के चलते पाकिस्तान से आए आतंकियों ने अगस्त माह में उधमपुर जिले में जम्मू और श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर सीमा सुरक्षा बल के एक काफिले पर हमला कर दिया जिसमें सीमा सुरक्षा बल के 2 कांस्टेबल मारे गए। इसमें खास बात यह रही कि हमले में शामिल लश्कर-ए-तैयबा के 1 आतंकवादी नावेद को 2008 के मुंबई हमले के हमलावर कसाब की ही तरह जिंदा पकड़ लिया गया। यह आतंकी हमला ऐसे समय हुआ है, जब कुछ ही दिन पहले आतंकवादियों ने पंजाब के दीनानगर पुलिस थाने पर हमला किया था। इस खतरनाक हमले में शामिल मोहम्मद नावेद ने एक अन्य उग्रवादी नोमान उर्फ मोमिन के साथ मिलकर जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर सीमा सुरक्षा बल के काफिले पर गोलियां चलाईं। सीमा सुरक्षा बल के जवानों ने भी जवाब में गोलियां चलाई जिससे नोमान मारा गया जबकि नावेद पास की पहाड़ियों में एक गांव की तरफ भाग गया, जहां उसने 3 लोगों को बंधक बना लिया। ग्रामीणों ने उसे पकड़ लिया और पुलिस को बुलाकर सौंप दिया।
इससे पहले जुलाई महीने में आतंकी गुरदासपुर के दीनानगर थाने में दाखिल हुए। 11 घंटे लंबे ऑपरेशन में सभी आतंकी मारे गए। 1 एसपी, 2 होमगार्ड समेत 9 लोगों की मौत ने पूरे देश को दहला दिया।
सीमापार से घुसपैठ और फायरिंग : इस साल भी पाकिस्तान की ओर से सीमा पर आतंकियों की घुसपैठ के कई प्रयास किए गए। आतंकियों की घुसपैठ पिछले साल की तुलना में इस साल काफी बढ़ी। आतंकियों की घुसपैठ कराने के लिए इस दौरान पाकिस्तानी सेना सीमा पर लगातार फायरिंग करती है जिसके चलते भारतीय सेना के कई जवान शहीद हो गए, वहीं कुछ आतंकवादियों से मुठभेड़ में शहीद हो गए।
बॉर्डर सिक्युरिटी फोर्स के डीजी के अनुसार जम्मू और कश्मीर में अंतरराष्ट्रीय सीमा पर इस साल घुसपैठ की 60 से अधिक कोशिशें हुईं। पिछले साल यह तादाद महज 48 ही थी। इसी घुसपैठ के चलते इस साल गुरदासपुर और कठुआ में अंतरराष्ट्रीय सीमा के रास्ते से आतंकी पंजाब और जम्मू में दाखिल हुए और आम नागरिकों की जानें लीं। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में 37 आतंकी प्रशिक्षण शिविर चलने और करीब 700 दहशतगर्दों को जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ करने की ट्रेनिंग की खबर सामने आने के बाद सीमा पर चौकसी और बढ़ा दी गई।
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बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हमला : यह पहला मौका था जबकि बांग्लादेश के दिनाजपुर जिले में हिन्दुओं के एक धार्मिक कार्यक्रम रूशमेला में एक के बाद एक कई धमाके हुए जिसमें 6 लोग घायल हो गए। पुलिस के मुताबिक इस घटना के बाद अब तक 5 संदिग्ध आरोपियों को गिरफ्तार किया जा चुका है। मजीद के मुताबिक आयोजन से पहले मंदिर के पुजारी को धार्मिक आयोजन न करने की धमकी भी दी गई थी। मुस्लिम बहुल बांग्लादेश में हिन्दू धार्मिक कार्यक्रमों को निशाना बनाए जाने की घटनाएं न के बराबर होती हैं। देश में बीते 1 साल में इस्लामिक आतंकवाद की घटनाओं में तेजी आई है। देश में कई ब्लॉगर्स की हत्या की जा चुकी है।
इस वर्ष बांग्लादेश में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी का दखल कुछ ज्यादा ही बढ़ गया जिसके चलते भारत-बांग्लादेश के सीमावर्ती क्षेत्रों और हिन्दू बहुल क्षेत्रों में भय और आतंक का माहौल बना दिया गया जिसके चलते जमात-ए-इस्लामी जैसी संस्थाओं ने देश को कट्टरवाद की आग में झोंक दिया है।
हालांकि इस वर्ष पाकिस्तान में हिन्दुओं की लड़कियों के अपहरण और उनके धर्मांतरण की घटनाएं अखबार की सुर्खियां जरूर रहीं, लेकिन हर बार की तरह भारत में उनका समर्थन करने वाला कोई व्यक्ति या संगठन नहीं था।
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चर्च पर हमले : दिल्ली सहित देश के कुछ चर्चों ने शिकायत की थी कि चर्चों पर हमले हो रहे हैं, लेकिन जांच के बाद यह शिकायत निराधार पाई गई। चर्च पर हमले की शिकायत सबसे ज्यादा दिल्ली में दर्ज की गई। दिल्ली पुलिस ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेजी एक रिपोर्ट में कहा है कि जितनी भी घटनाओं को चर्च पर हमला बताया जा रहा है, दरअसल वे हमले की वारदात हैं ही नहीं।
पुलिस का कहना है कि ये घटनाएं चोरी, शॉर्ट सर्किट से आग या मामूली विवाद को लेकर पथराव के मामले हैं और इनका ईसांईं समुदाय के प्रति धार्मिक असहिष्णुता से कोई लेना-देना नहीं है। चर्चों में कथित तोड़फोड़ की 6 घटनाओं में से 2 चोरी के मामले थे, 2 शॉर्ट सर्किट के और अन्य 2 में व्यक्तिगत विवादों की वजह से पत्थर फेंके गए थे।
दिलशाद गार्डन के चर्च में आग के केस का जिक्र करते हुए कहा गया है कि खराब वायरिंग की वजह से यह हादसा हुआ था। पुलिस के मुताबिक चर्च के आरोपों के ठीक विपरीत इस घटना में धार्मिक ध्रुवीकरण की कोशिश जैसा कुछ नहीं था।
गौरतलब है कि ईसांईं संगठन चर्चों में तोड़फोड़ का दावा करते हुए पुलिस सुरक्षा की मांग कर रहे थे। दिल्ली में 240 चर्च हैं। 161 चर्चों में सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। चर्च की इस कथित घटना के बाद एक पादरी ने देश विरोधी बयान दिया। उसने कहा कि बढ़ रही है कट्टरता, खंडित हो जाएगा देश।
उसने एक चिट्ठी लिखकर दिल्ली-फरीदाबाद के सभी चर्चों में इसे भेजा जिसे सभी चर्चों में पढ़ा गया। फरीदाबाद-दिल्ली सायरो मालाबार चर्च के आर्कबिशप के. भरनाइकुलंगर ने लिखा है कि यह किसी को मंजूर नहीं होगा कि किसी पर इस बात के लिए अंगुली उठाई जाए कि वह क्या खाता है, कौन-सा धर्म मानता है या किस जाति का है।
हालांकि इस सबके बावजूद चर्च द्वारा भारत के आदिवासी हिन्दुओं का धर्मांतरण जारी हैं जिस पर वे कुछ भी बोलते नहीं हैं। कई लोग मानते हैं कि पश्चिम बंगाल, केरल, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और देश के तमाम आदिवासी इलाकों में जिस तेजी के साथ ईसांईं मिशनरियों द्वारा हिन्दुओं का धर्मांतरण किया जा रहा था उससे हिन्दू संगठनों में चिंता बढ़ गई है। ऐसे में नरेन्द्र मोदी के सत्ता में आने के बाद धर्मांतरण का यह मुद्दा देश के पटल पर आ गया, जो पिछले 60 वर्षों से हिन्दू संगठनों के अनुसार तथाकथित धर्मनिरपेक्ष सरकारों द्वारा नजरअंदाज किया जाता रहा था जिसके चलते देश में डेढ़ करोड़ से अधिक हिन्दू अब ईसांईं बन चुके हैं। हिन्दू संगठन आरोप लगाते रहे हैं कि विदेशी ताकतों द्वारा धन के बल पर हिन्दुओं में फूट डालकर हिन्दुओं के खिलाफ ही हिन्दुओं को खड़ा कर दिया गया है।
हिन्दू संगठनों का आरोप है कि देश में ऐसे सैकड़ों एनजीओ और ईसांईं संगठन हैं जिनको विदेशों से रुपया मिलता है और जो सेवा के नाम पर आदिवासी और पिछड़े इलाकों में हिन्दुओं को ईसांईं बनाने में धड़ल्ले से अभी भी लगे हुए हैं, जब हम 'घर वापसी' की बात करते हैं जो देश का समूचा मीडिया और तथाकथित धर्मनिरपेक्ष राजनीतिज्ञ हमारे खिलाफ खड़े हो जाते हैं लेकिन वे इस और ध्यान नहीं देते हैं कि कहां-कहां धर्मांतरण किया जा रहा है और कहां आतंकवाद फैल रहा है।
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नासिक और त्र्यंबकेश्वर में कुंभ : इस वर्ष महाराष्ट्र के नासिक और त्र्यंबकेश्वर में कुंभ का आयोजन हुआ, जहां लाखों की संख्या में लोग जुटे। अच्छी बात यह रही कि बगैर किसी विघ्न और हादसे के यह कुंभ संपन्न हो गया।
कहा जाता है कि इस कुंभ में प्रति स्नान में लगभग 30 लाख लोगों ने डुबकी लगाई। कुल 5 मुख्य स्नान थे। हर बार की तरह इस बार भी कुंभ महामंडलेश्वरों के विवादों, महिला अखाड़े के अधिकारों और प्रशासनिक आदेशों की वजह से सुर्खियों में बना हुआ था। इस पर शाही स्नान के दौरान सेल्फी पर पाबंदी रही। इस बार के कुंभ में दिलचस्प यह रहा कि जूना अखाड़े के साधु राधे मां पर मीडिया द्वारा पूछे जा रहे सवालों से बचते रहे।
कुंभ मेले प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में बारी-बारी से 12 साल बाद आयोजित होते हैं। यजुर्वेद में 4 कुंभ मेलों का जिक्र है, ऐसे में माना जाता है कि यह पर्व वैदिक काल से चला आ रहा है।
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पुष्करम भगदड़ : जुलाई माह में आंध्रप्रदेश के पुष्करम महोत्सव में मची भगदड़ ने एक बार फिर हमारी व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर दिया। गोदावरी नदी पर 12 साल में लगने वाले इस धार्मिक महोत्सव में भगदड़ मचने से 27 से अधिक लोगों की मौत हो गई। यह हादसा उस दौरान हुआ, जब वहां खुद राज्य के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू मौजूद थे। मरने वालों में सबसे ज्यादा महिलाएं हैं।
नेशनल क्राइम ब्यूरो के अनुसार देश में 2000 से 2012 तक भगदड़ में 1,823 लोगों को जान गंवानी पड़ी हैं। 2013 में तीर्थराज प्रयाग में आयोजित महाकुंभ के दौरान इलाहाबाद स्टेशन पर मची भगदड़ के दौरान 36 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी, जबकि 1954 में इसी आयोजन में 800 लोगों की मौत हुई थी। उस दौरान कुंभ में 50 लाख लोगों की भीड़ जुटी थी।
वर्ष 2005 से लेकर 2011 तक धार्मिक स्थल पर अफवाहों से मची भगदड़ में 300 लोग मारे जा चुके हैं। राजस्थान के चामुंडा देवी, हिमाचल के नैनादेवी, केरल के सबरीमला और महाराष्ट्र के मंडहर देवी मंदिर में इस तरह की घटनाएं हुई हैं। हालांकि इस तरह की घटनाएं केवल भारत में ही नहीं, अपितु पूरी दुनिया में हुई हैं, लेकिन यहां मरने वालों की संख्या सबसे अधिक रही है।
वर्ष 1980 से 2007 तक दुनिया में भगदड़ की 215 घटनाएं हुईं। 7,000 से अधिक लोगों की मौत हुई, उससे दुगुने लोग जख्मी हुए। 2005 में बगदाद में एक धार्मिक जुलूस के दौरान तकरीबन 700 लोग मारे गए। जबकि 2006 में मीना घाटी में हज के दौरान लगभग 400 लोगों की मौत हुई। लेकिन विदेशों में चिकित्सा और व दूसरी सुविधाएं त्वरित गति से उपलब्ध कराए जाने से अधिक से अधिक लोगों की जान बचाई जाती है, जबकि विकासशील देशों में बेहतर मैनेजमेंट उपलब्ध न होने से मरने वालों की तादाद अधिक होती है।
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सांईं-शंकराचार्य विवाद : इस वर्ष भी धर्मगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के निशाने पर रहे शिर्डी के सांईं बाबा। शंकराचार्य के भक्तों ने इस बार सांईं भक्तों को निशाना बनाने के लिए कुछ पोस्टरों का सहारा लिया। इस पोस्टर में हनुमानजी को सांईं पर गुस्सा जताते दिखाया गया है। सांईं के विरोध और इस पोस्टर को लेकर शंकराचार्य के पास तमाम तर्क हैं। शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती का दावा है कि सांईं मालेगांव के मुसलमान थे।
शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के अलावा गोवर्धन मठ जगन्नाथपुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने भी सांईं का विरोध करते हुए कहा कि मंदिरों में किसी मुसलमान फकीर की मूर्ति रखना सही नहीं है। निश्चलानंदजी का कहना था कि सांईं मुस्लिम कुल में पैदा हुए थे व उनकी मूर्ति मंदिर में नहीं मस्जिद में स्थापित की जाए। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म को विकृत करने का अधिकार किसी को भी नहीं है। एक से एक सिद्ध-पुरुष सनातन धर्म में हुए हैं लेकिन सनातनधर्मियों ने कभी उनकी मूर्तियां मंदिर में स्थापित नहीं कीं।
इधर, शंकराचार्य की मानें तो सांईं धर्म, नहीं भ्रम हैं। वे परंपरा से बनी आस्था से नहीं बल्कि प्रचार के जरिए बनाई गई आस्था के प्रतीक हैं, जो फिल्म, सीरियल और दूसरे तरीकों से बनाई गई आस्था है। शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के मुताबिक उनके महाराष्ट्र के किसी भक्त के सपने में हनुमानजी इस तरह सांईं का विरोध करते हुए नजर आए इसलिए ऐसे पोस्टर छपवाए गए हैं।
स्वरूपानंद सरस्वती के मुताबिक अगर सांईं के भक्त और ट्रस्ट से जुड़े लोग हनुमानजी के संजीवनी बूटी लाने वाली तस्वीर में हनुमानजी को सांईं के हाथ में दिखा सकते हैं, सिरसैया में सांईं को दिखाया जा सकता है, सांईं को राम और शिव बताया जा सकता है और सांईं का विराट रूप और बंसी बजाने वाला रूप प्रचारित किया जा सकता है तो उनके भक्त भी अपने तरीके से ऐसे पोस्टर छपवा सकते हैं।
गौरतलब है कि पिछले वर्ष स्वरूपानंद सरस्वती ने शिर्डी के सांईं बाबा के खिलाफ विवादित बयान देते हुए उनकी पूजा का विरोध किया था जिसके चलते अच्छा-खासा विवाद चलता रहा और अंतत: यह मामला सुप्रीम कोर्ट में गया। अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट ने सांईं-शंकराचार्य विवाद में दखल देने से इंकार कर दिया है। सांईं भक्तों ने अदालत से अपील की थी कि वह शंकराचार्य को सांईं के खिलाफ बयानबाजी से रोकें। मुंबई के सांईं भक्त इस मामले में सुप्रीम कोर्ट गए थे।
शंकराचार्य ने सांईं बाबा को एक अफगानी मुस्लिम बताते हुए उनको वेश्या-पुत्र तक कह दिया था। शंकराचार्य ने कहा कि पिंडारी बहरुद्दीन, जो अफगानिस्तान का रहने वाला था, वह अहमदनगर आया और एक वेश्या के यहां रहा। वहीं ये चांद मियां पैदा हुए, जो शिर्डी का सांईंबाबा है। शंकराचार्य ने तो सांईंबाबा के बढ़ते भक्तों को संक्रामक बीमारी की तरह बताया। स्वरूपानंद ने सांईं बाबा को भगवान मानने से इंकार किया है। उन्होंने कहा कि सांईं बाबा अगर हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक हैं, तो उनकी पूजा मुसलमान क्यों नहीं करते हैं? वे संत भी नहीं थे। उन्होंने कहा कि सांईं बाबा का मंदिर बनाना भी गलत है।
लेकिन सांईं भक्तों का कहना है कि शंकराचार्य झूठ बोलकर लोगों में विभाजन कर रहे हैं। सांईं भक्तों के अनुसार महाराष्ट्र के पाथरी (पातरी) गांव में सांईं बाबा का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके अनुसार सांईं के पिता का नाम गोविंद भाऊ और माता का नाम देवकी अम्मा है। देवकीगिरि के 5 पुत्र थे। पहला पुत्र रघुपत भुसारी, दूसरा दादा भुसारी, तीसरा हरिबाबू भुसारी, चौथा अम्बादास भुसारी और पांचवां बालवंत भुसारी था। सांईं बाबा गंगाभाऊ और देवकी के तीसरे नंबर के पुत्र थे। उनका नाम था हरिबाबू भुसारी।
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श्रीगुरु ग्रंथ साहिब : अक्टूबर में पवित्र पुस्तक श्रीगुरु ग्रंथ साहिब के 'अपमान' के विरोध में पंजाब बंद रहा। विरोध प्रदर्शन के दौरान कृष्ण भगवान सिंह और गुरजीत सिंह की मौत हो गई थी जिसके चलते यह मामला और बढ़ गया। हालांकि अपराधियों को पकड़ लिया गया, जो वहीं के सेवादार थे। ऐसा किस तरह हुआ यह अभी जांच का विषय है और मामला कोर्ट में है।
हालांकि इस पर केंद्र सरकार ने कड़ा फैसला लिया। एक आधिकारिक विज्ञप्ति में कहा गया कि कैबिनेट ने भारतीय दंड संहिता, 1860 में 295-ए-ए के रूप में एक नई संशोधित धारा जोड़े जाने को मंजूरी दी। इसके तहत श्रीगुरु ग्रंथ साहिबजी के अपमान के गंभीर अपराध के दोषियों को उम्रकैद की सजा मिलेगी।
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अयोध्या विवाद : वर्ष के अंतिम माह में खबर आई कि राम मंदिर निर्माण के लिए अयोध्या में 20 टन पत्थर पहुंच चुके हैं। हालांकि पत्थर पहुंचने का यह क्रम पूरे वर्ष जारी रहा। बीच-बीच में अशोक सिंघल, मोहन भागवत, विनय कटियार, महंत नृत्यगोपाल दास और बाबरी एक्शन कमेटी के सदस्यों द्वारा विवादित बयान दिए जाते रहे लेकिन अब इस मामले में असदुद्दीन औवेसी ने भी आग में घी डालने का कार्य किया।
इससे पहले बाबरी-अयोध्या विवाद के मुख्य याचिकाकर्ता हाशिम अंसारी ने बाबरी विवाद की अपनी याचिका कोर्ट से वापस लेने की घोषणा कर दी थी जिसके चलते मुस्लिम कट्टरपंथी लोग नाराज हो गए थे। अंसारी ने कहा कि वे इस मसले पर हो रही राजनीति से आहत हैं, साथ ही वे इस विवाद को सुलझाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से बात करना चाहते हैं।
अंसारी ने कहा कि वे इस मुद्दे का शांतिपूर्ण हल चाहते हैं तो दूसरी ओर मुलायम सिंह ने अंसारी द्वारा याचिका वापस लेने को दुर्भाग्यपूर्ण बताया। इसका मतलब कि मुलायम नहीं चाहते कि इस मामले का शांतिपूर्ण हल हो? हालांकि इस बार यह अच्छी बात रही कि हिन्दू संगठनों ने 6 दिसंबर को शौर्य दिवस में उत्साह नहीं दिखाया तो दूसरी ओर मुस्लिम संगठनों ने भी काला दिवस नहीं मनाया।
मौलाना वहीदुद्दीन खान जाने-माने इस्लामी विद्वान और धार्मिक नेता हैं। उनका शुरू से यह मत रहा है कि मुसलमानों को बाबरी मस्जिद कहीं और बनाकर इस विवाद को हमेशा के लिए खत्म कर देना चाहिए। शिया धार्मिक नेता मौलाना कल्बे जव्वाद कहते हैं कि दोनों बिरादरियों की संकीर्णता की वजह से यह विवाद अभी तक हल नहीं हुआ है। अधिकतर लोगों का मानना है कि यह विवाद इमाम बुखारी और प्रवीण तोगड़िया जैसे लोगों के कारण अभी तक अधर में अटका हुआ है जिसके कारण देश का माहौल खराब हो रहा है जबकि अधिकतर मुसलमान इसका शांतिपूर्ण हल चाहते हैं।
6 दिसंबर 1992 को बाबरी ढांचा गिराया गया था। उसे 'ढांचा' इसलिए कहा जाता है, क्योंकि वहां कभी नमाज नहीं पढ़ी गई। वह बाबर द्वारा हिन्दू मंदिर को तोड़कर बनाया गया एक ढांचा ही था। बाबर एक विदेशी आक्रांता था। लेकिन कट्टरता के चलते अब मुस्लिम लोग उसका जब भी जिक्र करते हैं तो कहते हैं कि शहीद बाबरी मस्जिद या बाबरी मस्जिद की शहादत का दिन। यह कथन पिछले 2 साल से ही सुनने में आ रहा है।
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राधे मां : राधे मां इस वर्ष खासी चर्चा में रही। उनके कारण हिन्दू धर्म ने बहुत बदनामी झेली। उन पर गिरफ्तारी की तलवार लटकी थी लेकिन वे बच गईं। उन पर सेक्स रैकेट चलाने, भक्तों को चौकी आयोजन के माध्यम से ठगने, अश्लील हरकतें करने आदि के अरोप लगाए गए हैं।
राधे मां की चौकी का खर्च करीब 5 से 35 लाख रुपए होता है। भक्त की आर्थिक हालत के हिसाब से चौकी का रेट थोड़ा कम-ज्यादा हो सकता है। चौकी के आयोजन की सारी डीलिंग राधे मां का एजेंट टल्ली बाबा करता है। एक न्यूज चैनल की रिपोर्ट के अनुसार, सबसे बड़ी चौकी का आयोजन करने वाले भक्तों को राधे मां का किस, उनको गले लगाने और गोद में लेने का खास मौका दिया जाता है।
हाल ही में पंजाब-हरियाणा हाइकोर्ट ने राधे मां के खिलाफ एक रिट पर सुनवाई करते हुए कपूरथला के एसएसपी को 3 महीने में कार्रवाई करने के आदेश दिए हैं। वह याचिका फगवाड़ा के सुरिंदर मित्तल ने दायर की थी। उन्होंने याचिका दायर कर कार्रवाई की मांग करते हुए कहा था कि वे कोई संत नहीं हैं, वे लोगों को गुमराह कर रही हैं।
राधे मां खुद को संन्यासिन कहती हैं। ग्लैमरस लाइफ और पिछले दिनों कई विवादों की वजह से वे चर्चाओं में थीं। उनका जन्म पंजाब के गुरदासपुर जिले के एक सिख परिवार में हुआ था। पंजाब के ही व्यापारी सरदार मोहन सिंह से इनकी शादी हुई है। शादी के बाद एक महंत से राधे मां की मुलाकात हुई जिसके बाद से ही उन्होंने आध्यात्मिक जीवन अपना लिया। कुछ समय बाद वे मुंबई आ गईं और राधे मां के नाम से मशहूर हो गईं। इनके खिलाफ देश के कई राज्यों में मुकदमे चल रहे हैं।
मुंबई की बहुचर्चित संत राधे मां उज्जैन कुंभ में नहीं जा पाएंगी। जूना अखाड़े ने अब उनसे पूरी तरह किनारा कर लिया है। अखाड़े द्वारा प्रदत्त महामंडलेश्वर पद हमेशा के लिए निलंबित रहेगा। जूना पीठाधीश्वर की स्पष्ट पहल के बाद अब उस एकमात्र संत के प्रयास भी ठंडे पड़ गए हैं, जो पहले नासिक और अब उज्जैन में राधे मां को महामंडलेश्वर के रूप में ले जाने का प्रयास कर रहे थे।
जूना अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि कई बार स्पष्ट कर चुके हैं कि राधे मां को महामंडलेश्वर बनाना अखाड़े की भूल थी। बनाने के 2 दिन बाद ही भूल सुधार करते हुए उनका पद निलंबित कर दिया गया था। उसके बाद राधे मां ने पहले प्रयाग कुंभ और फिर नासिक कुंभ में जाने का भरपूर प्रयास किया।
राधे मां को महामंडलेश्वर पद पर अभिशिक्त कराने के पीछे पंजाब में रहने वाले अखाड़े के ही एक बड़े संत का हाथ था। राधे मां को आधी रात के समय हरिद्वार के जूना अखाड़े में बाकायदा महामंडलेश्वर की उपाधि संतों ने प्रदान की थी। शोर-शराबा होने पर देशभर के अनेक संत इसके खिलाफ खड़े हो गए। तब अखाड़े ने राधे मां को दिया महामंडलेश्वर पद निलंबित कर दिया था।