Dharma Sangrah

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

साल 2016 : दिल्ली के प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट हुआ सख्त

Advertiesment
हमें फॉलो करें Pollution
नई दिल्ली , शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016 (20:33 IST)
नई दिल्ली। दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्रों में सालभर प्रदूषण का हौव्वा मंडराता रहा। दिल्ली समेत उत्तर भारत के कई राज्यों में छाई धूलभरी धुंध ने लोगों का घरों से न केवल निकलना मुहाल कर दिया बल्कि स्कूलों तक को बंद करना पड़ा। 
देश की शीर्ष अदालत ने प्रशासन को कड़ी फटकार लगाते हुए कह़ा कि क्या प्रशासन लोगों के मरने का इंतजार कर रहा है? साल बीतते-बीतते यह तय हुआ कि यदि वायु प्रदूषण का स्तर पीएम 2.5 के लिए लगातार 48 घंटे तक 300 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर पर पहुंच जाता है तो निजी कारों के लिए ऑड-ईवन फॉर्मूला स्वत: ही लागू कर दिया जाएगा और सभी विनिर्माण गतिविधियां बंद कर दी जाएंगी। केंद्र की ग्रेडिड कार्ययोजना को उच्चतम न्यायालय द्वारा स्वीकार किए जाने के बाद यह फैसला सामने आया।
 
दिल्ली में साल के पहले दिन यानी 1 जनवरी 2016 को ही वायु गुणवत्ता की स्थिति काफी खराब थी और इसके अलावा दीपावली के बाद के पहले चार दिनों में वायु प्रदूषण के स्तर को भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने पिछले 17 सालों में पहली बार सर्वाधिक खतरनाक स्तर पर करार दिया। साथ ही स्कूलों को 3 दिन के लिए बंद कर दिया गया और बच्चों को घरों के भीतर रहने तथा लोगों को कार्यालय जाने की बजाय घरों से काम करने का परामर्श जारी करना पड़ा।
 
इस समय भी दिल्लीवासी जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर हैं। दिल्ली में धुंध की आपातकालीन स्थिति और सरकार के पास उससे निपटने की कोई आकस्मिक योजना नहीं होने पर सालभर अदालतों की कड़ी प्रतिक्रियाएं आईं और उन्होंने कहा कि क्या लोगों के मरने का इंतजार किया जा रहा है और हालात जाति संहार जैसे बन गए हैं।
 
नवंबर महीने में दिल्ली उच्च न्यायालय, राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) और उच्चतम न्यायालय तीनों ने शहर में हवा की खराब गुणवत्ता से निपटने के लिए केंद्र और चार उत्तरी राज्यों की निष्क्रियता पर नाराजगी जताई। इस मामले में दस नवंबर का दिन सबसे महत्वपूर्ण रहा। इस दिन सबसे पहली खबर उच्च न्यायालय से आई जिसमें कहा गया कि खतरनाक प्रदूषण का स्तर दिल्लीवासियों के लिए मौत की सजा की तरह है और उनके जीवन के 3 साल कम कर रहा है। उसके बाद एनजीटी ने दिल्ली सरकार से सवाल किया कि लोगों को इतने भयावह वायु प्रदूषण का सामना क्यों करना पड़ रहा है?
 
उच्चतम न्यायालय ने अलग-अलग स्तर के प्रदूषण से निपटने के लिए केंद्र की श्रेणीबद्ध कार्ययोजना को भी स्वीकृति प्रदान कर दी और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) से कहा कि वह मौजूदा बुनियादी ढांचे को उन्नत बनाए और 6 महीने के भीतर दिल्ली-एनसीआर में अतिरिक्त निगरानी स्टेशन स्थापित करे। 
 
हवा में प्रदूषक कण (पीएम) 2.5 के 250 से 430 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर के ऊपर रहने को प्रदूषण का गंभीर स्तर करार देते हुए प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि जब वायु प्रदूषण ऐसे खतरनाक स्तर तक पहुंचता है तो निर्माण गतिविधियों पर रोक लगाने और सम-विषम योजना लागू करने सहित कई तत्काल कदमों की जरूरत पड़ती है।
 
न्यायालय की ओर से स्वीकृति उस वक्त मिली जब सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की सुनीता नारायण ने पीठ से कहा कि केंद्र की श्रेणीबद्ध कार्ययोजना स्वीकार्य है और इसे क्रियान्वयन की स्थिति में लाया जा सकता है।
 
शीर्ष अदालत ने सीपीसीबी को निर्देश दिया कि वह 6 महीने के भीतर दिल्ली-एनसीआर में अतिरिक्त निगरानी स्टेशन स्थापित करने को लेकर स्थिति रिपोर्ट दाखिल करे। उसने केंद्र को भी आदेश दिया कि वह चार सप्ताह के भीतर उन पेट्रोलियम कोक और भट्टी के तेल के हानिकारक प्रभावों के बारे में छानबीन करे जिनका इस्तेमाल एनसीआर के उद्योगों और बिजली उत्पादन संयंत्रों में होता है।
 
सॉलीसिटर जनरल रंजीत कुमार ने पीठ को बताया कि सीपीसीबी ने अपने केंद्रीकृत नियंत्रण कक्ष को 57 लाख रुपए की लागत से आधुनिक उपकरणों से उन्नत बनाने का प्रस्ताव रखा है। सबसे आखिर में शीर्ष अदालत की प्रतिक्रिया आई जिसने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की ढुलमुल प्रतिक्रिया के लिए उसे आड़े हाथ लिया।।
 
धुंध की आपातकालीन स्थिति से निपटने के लिए कोई कार्ययोजना नहीं होने पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की आलोचना करते हुए उच्चतम न्यायालय को कहना पड़ा कि क्या आप तब तक इंतजार करना चाहते हैं, जब तक लोग मरना न शुरू कर दें... लोग हांफ रहे हैं।
 
शीर्ष अदालत ने केंद्र से बिगड़ती वायु गुणवत्ता के स्तर से निपटने के लिए समयबद्ध उपाय करने को कहा। प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली 3 न्यायाधीशों की पीठ ने मुद्दे पर ढुलमुल जवाब के लिए सीपीसीबी की खिंचाई की। सॉलिसीटर जनरल रंजीत कुमार ने हालात से निपटने के लिए जरूरी काम नहीं कर पाने के लिए क्रियान्वयन एजेंसियों को जिम्मेदार ठहराया।
 
दिल्ली उच्च न्यायालय ने पंजाब में सरकार की निष्क्रियता और पराली जलाने के चलन को इस स्थिति के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि भयानक प्रदूषण स्तर दिल्लीवासियों के लिए वस्तुत: मौत की सजा है जिसकी वजह से उनके जीवन के 3 साल कम किए जा रहे हैं।
 
न्यायमूर्ति बदर दूरेज अहमद और न्यायमूर्ति आशुतोष कुमार की उच्च न्यायालय की पीठ ने कहा कि यह हमें मार रहा है। उन्होंने कहा कि इन गंभीर हालात से 6 करोड़ से ज्यादा जीवन वर्ष बर्बाद हो रहे हैं या यूं कहें तो इससे 10 लाख मौतें होती हैं। पीठ ने यह भी कहा कि क्या वोट देने वालों के जीवन से ज्यादा महत्वपूर्ण वोट होते हैं।
 
उच्च न्यायालय ने कहा कि राजधानीवासियों को पूरी तरह मौत की सजा दी जा रही है और वो भी बिना किसी अपराध के। राजधानी में लोगों को मारा जा रहा है। इस वर्ष दिल्ली सरकार की टीमों ने खुले में सूखी पत्तियां जैसा कचरा जलाते पाए गए 140 से अधिक लोगों पर जुर्माना भी लगाया। शहर में वायु प्रदूषण के प्रमुख कारणों में से एक कारण खुले में कचरा जलाया जाना है। सरकार ने यह भी बताया कि वैक्यूम क्लीनर मशीनों से सड़कों की सफाई के लिए ए मशीनें मिलते ही सफाई का काम शुरू कर दिया जाएगा।
 
प्रदूषण की मार से केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी भी नहीं बच पाए। उन्होंने सुझाव दिया कि किसानों को धान की भूसी जलाने के बजाय इससे एथनॉल का उत्पादन करना चाहिए। यहां आर्थिक संपादकों के सम्मेलन को संबोधित करते हुए सड़क परिवहन, राजमार्ग और जहाजरानी मंत्री ने कहा कि दिल्ली के प्रदूषण से मेरा स्वास्थ्य प्रभावित हुआ है। धान की भूसी जलाए जाने से प्रदूषण होता है और इसका इस्तेमाल एथनॉल का उत्पादन करने में किया जा सकता है। 
उन्होंने कहा कि 65 प्रतिशत प्रदूषण उन भारी वाहनों से होता है, जो 15 साल से ज्यादा पुराने हैं। यदि हम इसे खत्म कर दें इससे 65 प्रतिशत प्रदूषण घटेगा। सेंटर फार साइंस एंड एनवायरन्मेंट ने दिल्ली सरकार से सभी प्रकार के प्रदूषकों को नियंत्रित करने के लिए सख्त योजना बनाने को कहा और लोगों के लिए दैनिक आधार पर प्रदूषण को लेकर स्वास्थ्य परामर्श जारी करने का सुझाव दिया।
 
दिल्ली के पर्यावरण मंत्री इमरान हुसैन ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री अनिल माधव दवे को लिखित में पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने के खिलाफ कड़े कदम उठाने को कहा। दिल्ली में प्रदूषण की भयावह स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आरके पुरम वायु गुणवत्ता निगरानी केंद्रों में पीएम 2.5 और पीएम 10 प्रदूषकों का स्तर 15 गुना तक अधिक बढ़ गया। पीएम 2.5 का मानक स्तर 60 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है लेकिन सुबह के समय यह कुछ स्थानों पर 955 तक पहुंच गया। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को वायु प्रदूषण को लेकर आपात बैठक बुलानी पड़ी और लोगों से घरों में रहकर काम करने को कहा गया। (भाषा)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

सेरेना बनेगी अलेक्सिस की दुल्हन, रेडिट के सह-संस्थापक से की सगाई