सखी पिया को जो मैं न देखूं तो कैसे काटूं अंधेरी रतियां,1
कि जिनमें उनकी ही रौशनी हो, कहीं से ला दो मुझे वो अंखियां.
दिलों की बातें दिलों के अंदर, ज़रा सी ज़िद से दबी हुई हैं,
वो सुनना चाहें ज़ुबां से सब कुछ, मैं करना चाहूं नज़र से बतियां.
ये इश्क़ क्या है, ये इश्क़ क्या है, ये इश्क़ क्या है, ये इश्क़ क्या है,
सुलगती सांसें, तरसती आंखें, मचलती रूहें, धड़कती छतियां.
उन्हीं की आंखें, उन्हीं का जादू, उन्हीं की हस्ती, उन्हीं की ख़ुशबू,
किसी भी धुन में रमाऊं जियरा, किसी दरस में पिरो लूं अंखियां.
मैं कैसे मानूं बरसते नैनो कि तुमने देखा है पी को आते,
न काग बोले, न मोर नाचे, न कूकी कोयल, न चटखी कलियां.
1. अमीर खुसरो को ख़िराजे-अक़ीदत जिनके मिसरे पर यह ग़ज़ल हुई।