इस वक़्त की हिन्दी ग़ज़ल के पास एक तपा हुआ कलमकार है, जिसने इंसानी रिश्तों और जज़्बात के कई पहलुओं को नए अल्फ़ाज़ दिए हैं।
हिन्दी ग़ज़ल के अलावा उसने नज़्मों, गीतों और दोहों की शक्ल में भी अपना फ़न ज़ाहिर किया है। वैसे तो आज वे किसी परिचय के मोहताज नहीं, लेकिन फिर भी अदब के गलियारों में उसे आलोक श्रीवास्तव के नाम से जाना जाता है। हिंदुस्तानी शायरी के फलक पर हिंदी पट्टी से आने वाले आलोक ऐसे इकलौते युवा ग़ज़लकार हैं जिनकी ग़ज़लों, गीतों और नज़्मों को गजल सम्राट जगजीत सिंह, पंकज उधास, तलत अज़ीज़ और शुभा मुदगल से लेकर सदी के महानायक अमिताभ बच्चन तक ने अपनी आवाज़ दी है।
आलोक श्रीवास्तव उस युवा रचनाकार का नाम है जिसने अपनी दिलकश रचनाओं से हिन्दी-उर्दू के बीच न सिर्फ़ एक मज़बूत पुल बनाया है बल्कि इन दोनों ज़बानों के साहित्य में उसे ख़ास मक़ाम भी हासिल है।
मप्र की साहित्य अकादमी ने उन्हें दुष्यंत कुमार सम्मान से नवाज़ा है तो साहित्य के अनेक प्रतिष्ठित सम्मानों के साथ रूस का अंतरराष्ट्रीय पुश्किन सम्मान और अमेरिका का अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मान भी इस नौजवान के खाते में दर्ज हो चुका है।
आलोक की ग़ज़लें, नज़्में, दोहे और गीत अनुभूतियों का सतरंगा इंद्रधनुष रचते हैं। 'आमीन' उनका बहुचर्चित ग़ज़ल संग्रह है। वेबदुनिया के पाठकों के लिए हर दिन इसी संग्रह से एक रचना पेश की जाएगी। प्रस्तुत है 'आमीन' की पहली रचना-
ले गया दिल में दबाकर राज़ कोई,
पानियों पर लिख गया आवाज़ कोई.
बांधकर मेरे परों में मुश्किलों को,
हौसलों को दे गया परवाज़ कोई.
नाम से जिसके मेरी पहचान होगी,
मुझमें उस जैसा भी हो अंदाज़ कोई.
जिसका तारा था वो आंखें सो गई हैं,
अब कहां करता है मुझपे नाज़ कोई.
रोज़ उसको ख़ुद के अंदर खोजना है,
रोज़ आना दिल से इक आवाज़ कोई.