जय-जय आरती राम तुम्हारी,
राम दयालु भक्त हितकारी।
जनहित प्रगटे हरि ब्रजधारी,
जन प्रह्लाद, प्रतिज्ञा पाली।
द्रुपदसुता को चीर बढ़ायो,
गज के काज पयादे धायो।
दस सिर बीस भुज तोरे,
तैंतीस कोटि देव बंदि छोरे
छत्र लिए सिर लक्ष्मण भ्राता,
आरती करत कौशल्या माता।
शुक्र शारद नारद मुनि ध्यावें,
भरत शत्रुघ्न चंवर ढुरावैं।
राम के चरण गहे महावीरा,
ध्रुव प्रह्लाद बालिसुत वीरा।
लंका जीती अवध हरि आए,
सब संतन मिली मंगल गाए।
सीता सहित सिंहासन बैठे,