- मणिशंकर उपाध्याय
इस साल खरीफ मौसम की शुरुआत दुविधा की स्थिति में हुई। खंड वर्षा से सोयाबीन की बोवनी अलग-अलग जगह अलग-अलग समय पर की गई। अवर्षा के कारण इसकी बढ़वार प्रभावित हुई है। सोयाबीन में ब्लू बीटल का प्रकोप देखा जा रहा है। इसके अलावा रस चूसने वाले कीड़ों में माहू व हरे मच्छर भी पौधों पर दिख रहे हैं। मौसम ने साथ न दिया तो दूसरे कीड़ों व रोगों का प्रकोप हो सकता है। इसलिए इनकी रोकथाम के उपाय बताना प्रासंगिक होगा।
तना मक्खी : इसे स्टेम फ्लाई भी कहते हैं। इसकी इल्ली हल्के पीले रंग की व मक्खी काले चमकीले रंग की होती है। इसका प्रकोप पौधे सह नहीं पाते, मर जाते हैं या दानों की संख्या व वजन कम हो जाता है।
ब्ल्यू बीटल : दूसरा प्रमुख कीड़ा है नीला या काला भृंग या ब्लू बीटल। यह पौधों के ऊपरी भाग से निकलने वाली नाजुक पत्तियों और केंद्रीय (बीच) भाग को खाता है। इससे पौधे की बढ़वार रुक जाती है।
गर्डल बीटल : फसल थोड़ी-सी बड़ी होने पर गर्डल बीटल के प्रकोप की आशंका होती है। इसे चक्र भृंग भी कहा जाता है। इससे फसल का विकास रुक पौधा टूट जाता है। फसल कटने के बाद भी यह भाग खेत में पड़ा रहता है। अगले वर्ष सोयाबीन बोने पर पुनः प्रकोप हो जाता है। इस कीट का नियंत्रण जरूरी है।
अर्ध कुंडलक : ये इल्लियाँ पत्तियों के हरे भाग को खुरचकर इस तरह खा जाती हैं कि पत्तियों की नसें (शिराएँ) ही बच रहती हैं। इल्लियाँ फूलों को अधिक मात्रा में खा जाएँ तो अफलन की स्थिति आ जाती है।
हीलियोथिस : चने की यह इल्ली सोयाबीन पौधे की सभी अवस्थाओं में नुकसान पहुँचाती है। इस कीट के वयस्क का रंग मटमैला, पीला या हल्के धूल के समान होता है। इसे प्रारंभिक अवस्था में नियंत्रित करें।
तंबाकू की इल्ली : यह मटमैले, हरे रंग की होती है। शरीर पर पीले, हरे या नारंगी रंग की धारियाँ पाई जाती हैं। पेट के दोनों तरफ काले रंग के धब्बे पाए जाते हैं। ये पौधे के सभी भागों को काटकर खाती हैं। ये पौधों का हरा भाग खा जाती हैं।
सोयाबीन फसल के खेत के चारों ओर कोई भी प्रपंची फसल (ट्रेप क्रॉप) मूँग, उड़द, चौला, हिबीस्कस आदि लगाने चाहिए। कीड़े आकर्षित होकर इन फसलों पर आकर इकट्ठे हुए कीड़ों को दवा छिड़ककर मार दिया जाता है। खेत की तैयारी के समय ही एक क्विंटल नीम या करंज की खली मिट्टी के साथ मिला देनी चाहिए। फसल की प्रारंभिक अवस्था में 5 मिली नीम तेल प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़कें। दूसरा छिड़काव एसीफेट 75 प्रश दो ग्राम प्रति लीटर या इमिडोक्लोप्रिट 50 मिली को 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़कें। इनके अलावा ट्रायकोफॉस 40 प्रश ईसी 40 से 50 मिली 300 से 400 लीटर पानी में मिलाकर छिड़कें।