इस वर्ष दालों के भाव उत्पादन में कमी के कारण आसमान को छूने लगे हैं।
इसलिए दलहन की खेती अब लाभदायक सिद्ध हो सकती है। दलहनों की खेती से आर्थिक लाभ तो होगा ही, ये प्रोटीन का अच्छा स्रोत होने के कारण शाकाहारी जनता के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। दलहन फसलों की कटाई के बाद इनकीजड़ों के जमीन में रह जाने से मिट्टी में पर्याप्त नत्रजनयुक्त जीवांश की मात्रा उपलब्ध होती है। इससे भूमि की उर्वरा शक्ति में वृद्धि होती है।
दाने निकालने के बाद जो पाला (व भूसा) प्राप्त होता है, उसे पशु आहार की तरह उपयोग में लाया जाता है। इनसे उन्हें पर्याप्त प्रोटीन प्राप्त होता है। इस तरह से दलहन फसलों के उगाने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति, पशुओं को पर्याप्त पोषण, मनुष्यों को प्रोटीनयुक्त पौष्टिक आहार व किसान को आर्थिक लाभ प्राप्त हो सकेगा।
मिट्टी का प्रकार : अरहर, मूँग और उड़द तीनों ही फसलों के लिए मध्यम किस्म की बलुई दुमट, दुमट, कछारी, सुनिथार, अच्छे वायु संचार वाली, जीवांशयुक्त मिट्टी उपयुक्त रहती है। वैसे चिकनी या बलुई मिट्टी में भी पर्याप्त मात्रा में जीवांश खाद डालकर इन फसलों के अनुकूल बनाया जा सकता है। खेत की आखिरी बार तैयारी के समय खेत में 10-12 गाड़ी गोबर खाद या अच्छी तरह पची हुई कंपोस्ट खाद डालकर, बखर (पांस वाला) या कल्टीवेटर या डिस्क हेरो चलाकर मिट्टी के साथ मिलाएँ।
उपयुक्त किस्में : अच्छी उपज का प्रमुख आधार उन्नत बीज होता है। प्रदेश में किए गए अनुसंधानों के आधार पर निम्न किस्में उपयुक्त बताई गई हैं-
अरहर की जल्दी (120 दिन) में पककर तैयार होने वाली किस्में हैं जागृति (आईसीपीएल-151), प्रगति (आईसीपीएल-87)।
मध्यम अवधि यानी 120 से 150 दिन में पककर तैयार होने वाली किस्में जेए-4, आशा (आईसीपीएल-87119), जेकेएम-7, सी-11 और बीडीएन-2।
देर से यानी 150 दिन से ज्यादा में पककर तैयार होने वाली किस्में एम-3 व बहार हैं।
मूँग की उन्नत किस्में, बीएम-4, पीडीएम-54, एमएल-131, पूसा-16, पूसा बैसाखी, खरगोन-1, के-851, कृष्णा वजवाहर मूँग 721 हैं।
उड़द की समर्थित उन्नत किस्में, जवाहर उड़द-86, जवाहर उड़द जेयू-2, इंदौर उड़द आईयू-83-5, टाइप-9, टीपीयू-4, जवाहर उड़द जेयू-3 हैं।
अरहर की देर से पकने वाली किस्मों की कतारों के बीच 60 से 75 सेमी, मध्यम समय में पकने वाली किस्मों की कतारों के बीच 45 से 60 सेमी और अल्पावधि किस्मों के बीच 30 से 45 सेमी की दूरी रखना उपयुक्त पाया गया है। मूँग और उड़द के पौधों की कतारों में 30 से 45 सेमी की दूरी उपयुक्त पाई गई है। इनमें 5 से 7 दिन में अंकुरण पूरा हो जाता है।
पौधों में 6 से 8 पत्तियाँ आ जाने पर एक ही कतार में पौधे से पौधे के बीच अरहर में 15-20 सेमी तथा मूँग व उड़द में 10-15 सेमी की दूरी रखकर बीच के कमजोर पौधे निकाल दिए जाते हैं। अरहर या तुवर का 10-12 किग्रा व मूँग व उड़द का 25 से 30 किग्रा बीज एक हैक्टेयर क्षेत्र बोने में लग जाता है। बोवनी के 25-30 दिन बाद डोरा चलाकर खरपतवार नियंत्रण करें।
कतारों में हाथ निंदाई करें। कीट नियंत्रण के लिए नीम का तेल या पानी में उबालकर निंबोली के घोल का उपयोग करें। इन फसलों की किस्म के अनुसार इनके पकने की अवधि अलग अलग होती है। फसल पकने पर शीघ्रता से कटाई करें। दाने झड़ने का खतरा रहता है।
कभी-कभी फसल बोते समय खेत में पर्याप्त नमी न होने या बोवनी के बाद वर्षा देर तक न होने पर नमी की कमी के कारण खाद में पाए जाने वाले रसायन बीजों के अंकुरण को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करते हैं। इन फसलों की कतारों के बीच की दूरी मौसम मिट्टी की किस्म (हल्की, मध्यम, भारी, उथली, गहरी) उर्वरा शक्ति (कम या अधिक), किस्म के पकने की अवधि (कम, मध्यम या अधिक), पौधों की बनावट (फैलने वाली या झाड़ीदार) के अनुसार रखी जाती है।
इनकी उपज किस्म की अवधि, भूमि की उर्वरा शक्ति, उपलब्ध मौसम, पोषण एवं पौध संरक्षण व्यवस्था आदि के अनुसार अरहर में 10 से 12 क्विंटल व मूँग की 6 से 12 व उड़द की 8 से 10 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक मिल जाती है। इनकी जमीन पर गिरी पत्तियों व कटाई के बाद बचे ठूँठों से खेत को जीवांश प्राप्त होता है एवं दाल बनाने के दौरान निकले छिलके और चूरी पशुओं के लिए उत्तम प्रोटीनयुक्त पोषक आहार है।
खाद-बीज मिलाकर न बोएँ : सभी किस्मों के बीजों को बोने के पहले जैविक फफूँदनाशक 'प्रोटेक्ट' (ट्राइकोडर्मा विरिडि) 5 ग्राम प्रति एक किलोग्राम बीज के साथ मिलाएँ। इन तीनों ही फसलों के पौध पोषण के लिए गोबर की खाद के अलावा 30 किग्रा नत्रजन, 60 किग्रा स्फुर, 20 किग्रा पोटाश तथा 30 किग्रा गंधक प्रति हैक्टेयर रासायनिक उर्वरकों के रूप में बीज की बोवनी के समय बीज की कतारों के नीचे बोएँ। इसके लिए बीज व खाद बोने वाली बैल चलित दुफन-तिफन या ट्रैक्टर चलित बीज-खाद बोवनी (सीड कम फर्टी ड्रिल) का उपयोग किया जाना चाहिए। बीज व खाद को मिलाकर नहीं बोया जाना चाहिए।