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9/11 के बाद बढ़ा आतंकवाद, बढ़ी दूरियां

दस वर्षों की कहानी

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न्यूयॉर्क से जितेंद्र मुछाल
महाशक्ति के घाव भरने के लिए दस साल बहुत होते हैं, पर ऐसा नहीं हुआ! तमाम तरह के इलाज करने के बावजूद मर्ज यानी आतंकवाद बढ़ता ही गया! महाशक्ति अमेरिका ने पैसा, ताकत सब कुछ झोंक दिया। लेकिन, विश्व आतंक के दंश को झेलने के लिए अब भी मजबूर है। विकसित, विकासशील और गरीब देशों के अंतर को आतंकवाद के नजर से देखा जाए तो 9/11 की घटना के बाद से अमेरिका ने स्वयं की सुरक्षा व्यवस्था को ज्यादा चाक-चौबंद कर लिया, परंतु विश्वभर में आतंकी घटनाओं में इजाफा हुआ।

अमेरिका महाशक्ति है, इसलिए आतंकवाद पर जो देश साथ में नहीं आना चाहते, उन्हें भी साथ लेकर वह युद्ध करने निकला और परिणाम भी भुगता! आज आतंकवाद के मुद्दे पर अमेरिका आत्ममंथन करने के दौर में है कि वह क्या कर सकता है? क्योंकि, उसने अपनी सुरक्षा तो पुख्ता कर ली, पर सवाल वही कि पूरी दुनिया में बढ़ती आतंकवाद की घटनाओं पर काबू कैसे पाया जा सकेगा?
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वर्ल्ड ट्रेड सेंटर : रईसों की कार्यस्थली : न्यूयॉर्क का मैनहटन स्थित वर्ल्ड ट्रेड सेंटर सन्‌ 1972 में बनकर तैयार हुआ था। 1362 फुट ऊँची इस 110 मंजिला इमारत में कार्यालयीन उपयोग के लिए लगभग एक करोड़ पाँच लाख वर्गफुट क्षेत्रफल की जगह उपलब्ध थी। भवन के दो समीपस्थ टॉवर मिलकर इसे दुनिया की सबसे ऊँची इमारतों में शुमार करते रहे। दुनिया की इस वाणिज्य हृदयस्थली में विस्फोट के वक्त 50,000 से अधिक कर्मचारी कार्यरत थे।

70 स्वचालित सीढ़ियों (एस्केलेटर) से युक्त इस भवन की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए 24 वीडियो मॉनीटर (प्रदर्शक) लगाए गए थे। विश्व व्यापार केंद्र में तीन छविगृहों के अलावा एक सब-वे (रेलवे स्टेशन) की सुविधा भी थी। प्रतिदिन यहाँ लगभग 1 लाख 50 हजार लोगों का आवागमन होता था। इस इमारत की छत पर स्थित अवलोकन कक्ष में प्रवेश के लिए शुल्क प्रति व्यक्ति दस डॉलर था। बच्चों से प्रवेश शुल्क के बतौर 5 डॉलर लिए जाते थे। प्रतिवर्ष 18-20 लाख पर्यटक इसे देखने आते रहे।

1993 में एक आतंकवादी हमले के दौरान भवन को हुई मामूली क्षति के बाद यहाँ आने वाले पर्यटकों की संख्या कुछ कम जरूर हुई, लेकिन विश्व की सर्वाधिक चर्चित इमारत के बतौर इसका रुतबा कम नहीं हुआ। इस वाणिज्य संकुल का स्वामित्व मूलतः न्यूयॉर्क बंदरगाह समिति के पास था, जिसने इसे 32.5 खरब डॉलर की कीमत पर 19 वर्ष की लीज के लिए दे दिया। 1976 में निर्मित फिल्म 'किंगकांग' का अतिकाय जीव इसी इमारत के एक हिस्से को चकनाचूर करता है।

विश्व व्यापार केंद्र वाणिज्यिक गतिविधियों से ज्यादा अपनी भवन निर्माण विशेषताओं के लिए चर्चित रहा। 325 डॉलर प्रति वर्गफुट के मूल्य से कार्यालयीन उपयोग के लिए दी जाने वाली इस भवन की जमीन बेशकीमती मानी गई। विश्व के धनिकतम व्यक्तियों की यह कार्यस्थली आतंक की भेंट चढ़ चुकी है। दो जुड़वाँ टॉवर वाली विश्व व्यापार केंद्र की इमारत महज ईंट-पत्थरों का घेरा नहीं था, यहाँ डाकखाने से लेकर रेलवे स्टेशन तक एक पूरी बसाहट मौजूद थी। इमारत की 107वीं मंजिल पर मौजूद 'विन्डो टू वर्ल्ड' (जगत खिड़की) अब खुल नहीं सकेगी।

पेंटागन : दुनिया का विशालतम दफ्तर अमेरिकी रक्षा प्रतिष्ठान 'पेंटागन' वॉशिंगटन के करीब ऑर्लिंगटन में स्थित एक पंचकोणीय बहुमंजिला इमारत है। वास्तुकार जॉर्ज एडविन बर्गस्टॉम द्वारा अभिकल्पित रूपरेखा के आधार पर इसका निर्माण सन्‌ 1941-43 में किया गया था। 34 एकड़ के क्षेत्रफल में फैली इस इमारत में स्थित कार्यालयों का कुल क्षेत्रफल 3,707,745 वर्गफुट है। यहाँ अमेरिकी रक्षा सेनाओं के तीनों अंगों से जुड़े 25 हजार कर्मचारी काम करते हैं। इसकी गिनती विश्व के विशालतम कार्यालयीन भवनों में होती है।

सबसे वफादार : अब तक के कुत्तों की सबसे बड़ी मु्हिम के अंतर्गत 350 प्रशिक्षित कुत्ते वर्ल्ड ट्रेड सेंटर हादसे के शुरुआती दिनों में वहां जुटे थे। क्योंकि दबे हुए जिंदा लोगों और मानव अवशेषों को सूंघकर पहचानने में इनकी महारत है। रोजाना 12 घंटे की ड्यूटी पर लगे डच, टफ, सेली, मैक्स और काउबॉय और ऐसे ही नाम वाले कुत्तों को पूरा प्रशिक्षण था कि कैसे मलबे में घूसकर इंसान को सूंघकर ढूंढा जाए। वे ऐसे छोटे स्थानों में भी घूस सकते थे, जहां राहतकर्मी नहीं पहुंच सकते थे।

इलेक्ट्रॉनिक रोबोट : आधुनिक टेक्नोलॉजी का फायदा लेकर पहली बार किसी बचाव और राहत अभियान में छोटे लेकिन अत्यंत कारगर इलेक्ट्रॉनिक रोबोट्स का उपयोग किया गया। इंसानों द्वारा दूर से चालित ये जूते के डिब्बे की साइज के रोबोट मलबे में अंदर तक घूस सकते थे। इसमें लगी लाइट, वीडियो कैमरा और सेंसर द्वारा इंसानों और अवशेषों की खोज की जा रही थी। 12 सितंबर को माइक्रोटेक नामक रोबोट ने मलबे के नीचे दबे हुए कुछ कमरे ढूंढ निकाले, जहां बाद में राहतकर्मी पहुंचे और कई इंसानों को वहां से निकाला।


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जो ढही, वे इमारतें भर नहीं थीं : घटना के बाद सभी दूर से प्रतिक्रिया आई परंतु यह प्रतिक्रिया सही मायने में प्रत्येक अमेरिकी के दिल की बात थी।

'विश्व व्यापार केंद्र के दो टॉवर सिर्फ दो गगनचुंबी इमारतें भर नहीं थीं। ये दो टॉवर आधुनिक अमेरिका की प्रगति के प्रतीक थे, जो कि पूँजीवाद और पश्चिमी सभ्यता के परिचायक शहर न्यूयॉर्क के आकाश पर छाए हुए थे। इन्हीं के इर्द-गिर्द वॉल स्ट्रीट, शेयर बाजार और वित्त की दुनिया बसी हुई है।

वहीं दूसरी ओर पेंटागन अमेरिका की सुरक्षा व्यवस्था का हृदय है, जहाँ से सारे विश्व पर अमेरिका की नजर रहती आई है। इन प्रतीकों पर हमला अमेरिका के नाभि कुंड में हमला है ... जिसने पूरे अमेरिका को झकझोर दिया है। हजारों जानों और अरबों-खरबों के वित्त की हानि तो न्यूनतम है। जो भी कभी न्यूयॉर्क के विश्व व्यापार केंद्र गया है वह जानता है कि पूरा इलाका बहुत ही घना बसा हुआ है ... और अब यह इमारत इतिहास के पन्नो में खून से दर्ज हो गई।

पूरा अमेरिका शर्म, दुःख और आक्रोश से भरा हुआ है। राष्ट्रपति बुश के लिए भी यह परीक्षा की घड़ी है। एक ओर जहाँ अमेरिका 'राष्ट्रीय प्रक्षेपास्त्र सुरक्षा प्रणाली' से अपनी सीमाएँ सुरक्षित करना चाहता था, वहीं आतंकवादियों ने अमेरिका के अंदर ही से वार करके देश की पूरी सुरक्षा व्यवस्था पर ही प्रश्नचिह्न लगा दिया है। इस वार से उबरने में, पहले ही से आर्थिक मंदी का सामना कर रहे अमेरिका को काफी समय लगेगा और दरकार होगी उच्चतम स्तर की नेतृत्व क्षमता की।'

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