ओबामा अब दुनिया के सबसे बड़े राजनेता कहलाएँगे। भारत के लिहाज से वे कितने फायदेमंद हैं यह तो समय ही बताएगा, लेकिन बतौर डेमोक्रेट वे भारत के लिए कैसे होंगे? कुछ विश्लेषकों का कहना है कि यूँ तो मेकेन और ओबामा दोनों ही भारत के लिए लाभकारी होते, परंतु हो सकता है कि मेकेन भारत को कुछ ज्यादा फायदा देते, जो शायद जॉर्ज बुश से भी ज्यादा हो सकता था।
भारत का भय : जहाँ तक आउटसोर्सिंग का मामला है तो ओबामा पहले ही कह चुके हैं कि वे उन अमेरिकी कंपनियों को दंडित करेंगे, जो नौकरियाँ भारत की झोली में डाल रही है। वे यह कहते हैं कि अमेरिका के बच्चों को बेंगलूरू और बीजिंग से चुनौती मिल रही है। हालाँकि साथ ही वे यह भी कहते हैं कि अमेरिकियों को बेहतर शिक्षा दी जानी चाहिए, ताकि वे भी प्रतिस्पर्धा में खरे निकल सकें। ऐसा नहीं है कि वे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को पसंद नहीं करते हैं। उनके कई भारतीयों से गहरे संबंध हैं। वे ऐसे परिवार से हैं, जहाँ शिक्षा को अहमियत देते हैं।
123 समझौता : जहाँ तक भारत-अमेरिका परमाणु संधि की बात है तो वे इससे ज्यादा सहमत नहीं हैं। उन्होंने इस समझौते में कई संशोधन प्रस्तावित किए थे, जो इसे पूरी तरह बदल सकते थे, परंतु ऐसे कोई संशोधन मंजूर नहीं किए गए, परंतु अब वे कह रहे हैं कि यह समझौता अच्छा है। इस लिहाज से उनकी प्राथमिकता सीटीबीटी में सुधार की होगी।
पाकिस्तान से रिश्ता : जहाँ तक पाकिस्तान से संबंधों का सवाल है तो सभी जानते हैं कि डेमोक्रेट की ओर से उपराष्ट्रपति का चुनाव लड़ने वाले बिडेन ने ही पाकिस्तान के लिए नया राहत पैकेज तैयार किया था। यह माना जाता है कि पाकिस्तान के प्रति ओबामा के मन में सहानुभूति हो सकती है। यह भी कहानी चल रही है कि ओबामा की माँ एन. दनहन पाँच साल तक पाकिस्तान में रही हैं। वे वहाँ पर एशियाई विकास बैंक के लिए परामर्श देती थीं। उन्होंने गुजराँवाला में एक परियोजना पर भी काम किया है।
हालाँकि उनके पाकिस्तान रहने की पुष्टि नहीं हुई है। यह परियोजना 1987 में शुरू हुई थी और 1992 तक चली थी। न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक ओबामा स्वयं पाकिस्तान आ चुके हैं। तब वे कॉलेज में पढ़ते थे। यह बात है 1981 की, तब वे कराची आए थे। हालाँकि इसका जिक्र उन्होंने अपनी आत्मकथा में नहीं किया है, परंतु वे कहते आए हैं कि वे शिया और सुन्नी के भेद को जानते हैं। कॉलेज के जमाने में भी उनके कई पाकिस्तानी दोस्त हुआ करते थे।
इन सबके बाद भी वे पाकिस्तान को समय-समय पर अल कायदा के लिए चेतावनी दे चुके हैं। उन्होंने यह भी कहा था कि यदि जरूरत पड़ी तो अमेरिका अल-कायदा के खिलाफ पाक में सेना के प्रयोग से भी नहीं हिचकेगा। विदेश नीति के जानकार के रूप में उन्होंने यह बात कही थी। (नईदुनिया)