Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

बदलाव जो अमेरिका ने स्वीकारा

हमें फॉलो करें बदलाव जो अमेरिका ने स्वीकारा

संदीप तिवारी

अमेरिका में मंगलवार को 47 वर्षीय बराक हुसैन ओबामा के देश के 44वें राष्ट्रपति के रूप में अनौपचारिक तौर पर निर्वाचित होते ही अमेरिकी राजनीति की वह अंतिम प्रजातीय बाधा भी खत्म हो गई जिसे देश की लोकतांत्रिक शासन प्रणाली के लिए अच्छा नहीं माना जाता था।

ओबामा की जीत अमेरिका के लिए एक ऐसी राष्ट्रीय अभिव्यक्ति बन गया है जिसके जरिए प्रबल अश्वेत विरोधी भावनाओं का शमन हुआ है और सारी दुनिया ने देखा कि अमेरिका में सबके लिए समान अवसर हैं और वहाँ आगे चलकर अगर कोई महिला और एशियाई या भारतीय अमेरिकी राष्ट्रपति का बन जाए तो यह आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए।

एक अलोकप्रिय रिपब्लिकन राष्ट्रपति की आर्थिक और विदेश नीतियों के खिलाफ बदलाव के आह्वान को अमेरिकी जनता ने स्वीकारा जोकि मात्र कुछेक वर्षों पहले तक अविश्वसनीय समझा जाता था। इलिनॉयस से पहली बार सीनेटर बने ओबामा ने वियतनाम युद्ध के दौरान युद्धबंदी रहे एरिजोना के सीनेटर जॉन मैक्केन को हराया जोकि दूसरी बार राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ रहे थे।

मैक्केन को विरोधी राजनीतिक माहौल का सामना पड़ा क्योंकि राष्ट्रपति बुश को लेकर अमेरिकी जनता की नाराजगी और चुनाव प्रचार के दौरान ही भीषण आर्शिक मंदी ने ओबामा के लिए राह और आसान कर दी।

लेकिन उनकी जीत ने यह बात साबित कर दी है कि मात्र 143 वर्षों पहले अमेरिका में उनके जैसे अश्वेत को खरीदा-बेचा जा सकता था लेकिन आज एक अश्वेत देश के शीर्षस्थ पद तक पहुँच गया है। इतना ही नहीं, वे इसी सप्ताह से व्हाइट हाउस के लिए अपनी टीम के सदस्यों को चुन सकते हैं। इसके साथ ही करीब तीन दशकों से प्रभावशाली रहे रिपब्लिकन पार्टी के अनुदारवादी नेताओं को अब सोचना पड़ेगा कि अब अमेरिकी राजनीति में उनका क्या स्थान है ?

सीनेट और हाउस के लिए हुए चुनावों में उदारवादी रिपब्लिकन नेताओं को भी हार का सामना करना पड़ा है जिससे यह धारणा बलवती होने लगी है कि अगली जनवरी को वाशिंगटन में होने वाली पार्टी की नेशनल कन्वेंशन में कट्टरपंथियों के अधिक सक्रिय होने की संभावना है।

जबकि दूसरी ओर सीनेट में डेमोक्रेटिक पार्टी की ताकत में इजाफा हुआ है। मंगलवार को पाँच सीटें जीतकर पार्टी ने जहाँ अपनी ताकत बढ़ाकर 56 सीटें कर लीं वहीं न्यू हैंपशायर और उत्तरी कैरोलाइना में रिपब्लिकन दावेदारों को हराया। वर्जिनिया, कोलोराडो और न्यू मेक्सिको में रिपब्लिकन पार्टी के सांसदों के रिटायर होने से खाली सीटों पर कब्जा जमाया।

इसी तरह हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में भी रिपब्लिकन पार्टी को 16 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा जिसका सीधा लाभ डेमोक्रेटिक पार्टी को मिला। हाउस में अब 249 सीटों पर डेमोक्रेट्‍स का कब्जा है जबकि रिपब्लिकन प्रतिनिधियों की संख्या घटकर 168 तक ही रह गई है। उल्लेखनीय है कि सीनेट और हाउस की कुछ सीटों के परिणाम अभी भी आने बाकी हैं लेकिन इनसे मूलभूत स्थिति पर बहुत अधिक असर नहीं पड़ेगा।

डेमोक्रेटिक पार्टी को 60 या इससे अधिक सीटों की उम्मीद थी लेकिन यह आस पूरी नहीं हो सकी पर इस बात की संभावना बनी रहेगी कि नीतिगत मुद्‍दों पर दोनों दलों के सीनेटर एक दूसरे को वाँछित सहयोग देते रहेंगे और डेमोक्रेटिक पार्टी को भी एक सीमा तक नरम रुख अपनाना पड़ेगा जोकि लोकतंत्र के लिए स्वास्थ्यकर होगा।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi