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न्यूयॉर्क से जितेन्द्र मुछाल सितम्बर की शुरुआत में जब अमेरिका में वित्तीय संकट के चलते एक के बाद एक बड़े बैंक धराशायी होते जा रहे थे तब जॉन मैक्केन ने घोषणा की थी कि वे चाहेंगे कि राष्ट्रपति पद के प्रचार के दौरान होने वाली पहली बहस को निलंबित कर दिया जाए और वॉशिंगटन डीसी लौट जाया जाए। तब उनके पास पूछने के लिए कोई स्पष्ट सवाल या संकट को सुलझाने के लिए कोई योजना नहीं थी।
उस समय ओबामा के पास भी इस संकट से बाहर निकलने के लिए कोई स्पष्ट नीति नहीं थी लेकिन तब भी उन्होंने पूरी गंभीरता और धैर्य के साथ बहस में हिस्सा लिया था और पूरे देश पर अपनी छाप छोड़ी थी।
इसके बाद ओबामा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और आर्थिक मुद्दों पर उनके प्रचार की बढ़त लगातार बढ़ती रही। उस समय केवल चुनाव प्रचार था और कुछ भी नहीं लेकिन तब भी 60 फीसदी से अधिक मतदाता आर्थिक चुनौतियों और वित्तीय मंदी को देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती मानते थे। उस समय भी न केवल अमेरिका वरन सारी दुनिया को ओबामा से उम्मीद थी कि वे वित्तीय व्यवस्था को सामान्य बनाकर लोगों में विश्वास बहाल करेंगे।
राष्ट्रपति पद के लिए चुने जाने के कुछेक दिनों बाद ही ओबामा को विश्व के 20 शीर्ष देशों की 20 नवंबर को राष्ट्रपति जॉर्ज बुश द्वारा बुलाई गई वित्तीय शिखर बैठक में भाग लेने का मौका मिलेगा। चूँकि इस समय वित्तीय क्षेत्र की दशा सुधारने का काम जोरों पर है ऐसे में अपने वित्त मंत्री की नियुक्ति संबंधी घोषणा उनकी पहली महत्वपूर्ण घोषणा हो सकती है। हालाँकि अपने प्रचार के दौरान वे वारेन बफे जैसी दिग्गज वित्तीय हस्तियों से सलाह लेते रहे हैं।
अपनी नीतिगत घोषणाओं के जरिए ओबामा को निम्न और मध्यम वर्ग की अधिसंख्यक जनता के कर कम करने के प्रबल समर्थक के रूप में जाना जाता है। संपन्न तबके के लिए वे अधिक करों के पक्षधर रहे हैं लेकिन समय बताएगा कि वे आगे क्या करेंगे। इराक से फौजों की नियोजित लेकिन चरणबद्ध वापसी के हिमायती ओबामा इसे अंजाम देकर प्रत्येक महीने 10 अरब डॉलर से अधिक खर्च पर अंकुश लगा सकते हैं।
अमेरिका के आवासीय क्षेत्र में वर्तमान संकट की जड़ें होने के कारण ओबामा समझते हैं कि अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने के लिए आवासीय क्षेत्र में विश्वास बहाल करना होगा। अब तक ओबामा ने यह दर्शाया है कि वे आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ नहीं हैं लेकिन वे समर्थ हैं कि ऐसे मामलों पर वे अपने पास ऐसे विशेषज्ञ लोगों को रख सकते हैं जो कि उन्हें बहुमूल्य सलाह दे सकते हैं।
वे बढ़ती हुई ऊर्जा स्वतंत्रता के पक्षधर रहे हैं और अमेरिका में वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों में निवेश को बढ़ा सकते हैं। यह भी उम्मीद की जाती है कि वे देश के बुनियादी ढाँचे में भी निवेश को बढ़ावा दे सकते हैं। इन सब बातों में समय लगेगा और यह सब रातोरात नहीं हो सकता है। पर चूँकि अब सीनेट में भी डेमोक्रेटिक पार्टी का बहुमत है, इसलिए उम्मीद की जाती है कि ओबामा इस अपूर्व अवसर और ऐतिहासिक जनादेश को अमेरिका की आर्थिक शक्ति के रूप में स्थापित करने और संपन्नता को बढ़ाने में करेंगे।
भारतीयों ने पूरे दिलोदिमाग और सभी तरह से ओबामा के प्रचार में मदद की है और उन्होंने भी अमेरिका में भारतीयों के योगदान को बारम्बार स्वीकार किया और माना कि भारत अमेरिकी व्यावसायिक संबंधों में उनकी अहम भूमिका रही है। पेप्सिको की इंदिरा नूई उनकी करीबी कारोबारी सलाहकार रही हैं और वे खुद भी परमाणु करार के प्रबल समर्थक रहे हैं जिससे दोनों देशों को लाभ होगा।
हालाँकि इसके साथ ही ओबामा अपने चुनाव प्रचार के दौरान करों में कमी के साथ अमेरिका में नौकरी के अवसर पैदा करने, कड़े कराधान कानूनों के जरिये आउटसोर्सिंग नौकरियों पर रोक लगाने की बात करते रहे हैं। इन पर कितना अमल होगा और किस हद तक तथा इससे भारतीय आउटसोर्सिंग उद्योग पर कितना असर पड़ेगा, यह तो भविष्य के गर्भ में है।
पर हाल में भारत समेत सभी वैश्विक शेयर बाजारों द्वारा बेहतरी प्रदर्शित करने से स्पष्ट है कि नए प्रशासन और नई नीतियों का असर दिखने लगा है। यह भी उम्मीद की जाती है कि रिपब्लिकन प्रशासन में तेल-ऊर्जा लॉबी की मजबूत पकड़ कमजोर होगी और निकट भविष्य में हमें फिर एक बार तेल प्रति बैरल 150 डॉलर तक के स्तर पर देखने को नहीं मिलेगा।