अमिताभ बच्चन ने अनेक यादगार फिल्मों में काम किया है। उसमें से दस चुन पाना बेहद मुश्किल कार्य है। फिर भी कोशिश की है। आइए नजर डाले उनकी दस श्रेष्ठ फिल्मों पर।
आनंद (1971)
पात्र का नाम : डॉ. भास्कर के. बैनर्जी
निर्देशक : हृषिकेश मुखर्जी
वैसे तो इस फिल्म के नायक थे उस दौर के सुपरसितारे राजेश खन्ना। बाबू मोशाय के रूप में अमिताभ सहायक अभिनेता थे, लेकिन अपने सशक्त अभिनय के जरिए अमिताभ ने लोगों का अपनी ओर ध्यान खींचा। ‘आनंद’ राजेश खन्ना की श्रेष्ठ फिल्म मानी जा सकती हैं, लेकिन फिल्म देखने के बाद अमिताभ भी याद रह जाते हैं। दोयम दर्जे की भूमिका होने के बावजूद अमिताभ ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई। यही से अमिताभ ने खन्ना के किले में सेंध लगाना शुरू कर दी थी।
जंजीर (1973)
पात्र का नाम : विजय खन्ना
निर्देशक : प्रकाश मेहरा
प्रकाश मेहरा को जब दिग्गज नायकों ने यह फिल्म करने से मना कर दिया तो हारकर उन्होंने अमिताभ को चुना। प्राण के साथ जब अमिताभ ने पहला शॉट दिया तो प्राण ने मेहरा को कोने में ले जाकर कह दिया कि यह लड़का सुपरस्टार बनेगा। एंग्रीयंग मैन की नींव ‘जंजीर’ से ही डली थी। अमिताभ के इस तेवर को निर्माता-निर्देशकों ने लंबे समय तक भुनाया।
दीवार (1975)
पात्र का नाम : विजय वर्मा
निर्देशक : यश चोपड़ा
उस समय हीरो नकारात्मक भूमिका निभाना पसंद नहीं करते थे। ‘दीवार’ में अमिताभ का चरित्र ग्रे-शेड लिए हुए था। अपने ईमानदार और आदर्श भाई के मुकाबले वह अपराध की दुनिया चुनता है। उसके इस कदम से नाखुश उसकी माँ भी उसका साथ छोड़ देती है। नकारात्मक भूमिका होने के बावजूद दर्शकों की सहानुभूति अमिताभ बटोर लेते हैं। भगवान पर गुस्सा होने और मंदिर की सीढि़यों पर माँ की गोद में दम तोड़ते हुए अमिताभ, हिंदी फिल्मों के उम्दा दृश्यों में से एक है।
शोले (1975)
पात्र का नाम : जय (जयदेव)
निर्देशक : रमेश सिप्पी
हिंदी फिल्मों की सफलतम फिल्मों में से एक ‘शोले’ में जय और वीरू की जोड़ी ने गजब ढा दिया था। वीरू के मुकाबले में जय कम बोलता था। अमिताभ बच्चन ने बिना संवाद बोले अपनी आँखों और चेहरे के भावों के जरिए कई दृश्यों को यादगार बना दिया। फिल्म में जया बच्चन के साथ उनका रोमांस सिर्फ खामोशी के जरिए बयां हुआ। गब्बर को पकड़ने के लिए जय ने अपनी जान की बाजी लगा दी तो सिनेमाघर में लोगों की आँखों से आँसू निकल आए। जय को क्यों मार दिया? यह सवाल अभी भी लोग के दिलों को कचोटता है।
अमर अकबर एंथोनी (1977)
पात्र का नाम : एंथोनी गोंजाल्विस
निर्देशक : मनमोहन देसाई
मनमोहन देसाई की ठेठ मसाला फिल्मों में से एक ‘अमर अकबर एंथोनी’ में अमिताभ एंथोनी बने थे। इस फिल्म में उन्होंने लात-घूँसे भी चलाए और वे सारी हरकतें कीं, जो देसाई की फिल्मों में होती थी। फिल्म के एक दृश्य में घायल अमिताभ आइने के सामने खड़े होकर आइने में मौजूद अपने अक्स की मरहम-पट्टी कर देते हैं। अकेले अमिताभ ने फिजूल की बातें करते हुए दर्शकों को खूब हँसाया था। यह ऐसा दौर था, जब अमिताभ परदे पर कुछ भी कर सकते थे और दर्शक कोई तर्क-वितर्क नहीं करते थे।
अग्निपथ (1990)
पात्र का नाम : विजय चौहान
निर्देशक : मुकुल एस. आनंद
अग्निपथ बॉक्स ऑफिस पर असफल रही थी, लेकिन बाद में टीवी पर खूब देखी गई। इस फिल्म को अमिताभ के यादगार अभिनय के कारण आज भी याद किया जाता है। अमिताभ ने इस फिल्म के लिए अपनी अभिनय शैली में परिवर्तन किया था। उन्होंने आवाज को बदल कर बोला। हालांकि उनका यह प्रयोग प्रशंसकों को पसंद नहीं आया और यह फिल्म की असफलता का मुख्य कारण माना गया। बाद में अमिताभ ने अपने संवाद उसी अंदाज में डब किए जिस अंदाज में पसंद किए जाते हैं, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। सफेद सूट में लाल टीका लगाए अमिताभ ने अपने किरदार में आग फूंक दी थी। बेहतरीन अभिनय के लिए अमिताभ को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार भी इस फिल्म के लिए मिला।
शक्ति (1982)
पात्र का नाम : विजय कुमार
निर्देशक : रमेश सिप्पी
इस फिल्म को भले ही खास सफलता नहीं मिली हो, लेकिन दर्शकों को दो महान अभिनेताओं को साथ देखने का यह विरला अवसर था। अमिताभ के सामने खुद उनके आदर्श महानायक दिलीप कुमार थे। उनका चरित्र अपने पिता से नाराज रहता है। अमिताभ ने अपने अभिनय का पूरा बारूद इस भूमिका को निभाने में झोंक दिया। अमिताभ ने खुद स्वीकारा था कि दिलीप साहब के सामने खड़े होकर अभिनय करना आसान नहीं था। उन्हें कई बार रीटेक देने पड़ते थे। किस ने श्रेष्ठ अभिनय किया? बहस जारी है।
ब्लैक (2005)
पात्र का नाम : देबराज सहाय
निर्देशक : संजय लीला भंसाली
अमिताभ को लगता है कि देबराज सहाय की भूमिका निभाकर अपने अभिनय के शिखर को उन्होंने छुआ है। इस फिल्म पर उन्हें गर्व है। एक सख्त टीचर अपने विद्यार्थी के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर देता है। इस फिल्म को देखने के बाद लगता है कि उनके अभिनय की कोई सीमाएँ नहीं हैं। एक अभिनेता के रूप में उनमें अनंत संभावनाएँ हैं। देबराज सहाय को केवल वे ही पर्दे पर उतार सकते थे।
पा (2009)
पात्र का नाम : ऑरो
निर्देशक : आर. बाल्की
पा में बिग बी ने 12 वर्ष के एक ऐसे लड़के का रोल निभाया जो प्रोगेरिया से पीड़ित है। इतनी कम उम्र में उसकी हालत 70 वर्षीय बूढ़े जैसी है। अमिताभ का मेकअप इस तरह किया गया कि उन्हें पहचानना मुश्किल था। बिग बी ने कमाल का काम किया। उनकी सोच एक 12 वर्ष के बच्चे जैसी थी, लेकिन शरीर 70 वर्ष का। तालमेल बिठाना आसान नहीं था, लेकिन बिग बी ऐसे चैलेंजिंग रोल के लिए तो बने हैं। उत्कृष्ट अभिनय के लिए ढेर सारे पुरस्कार मिले, जिनमें बेस्ट एक्टर का राष्ट्रीय पुरस्कार भी शामिल है।
पीकू (2015)
पात्र का नाम : भास्कर बैनर्जी
निर्देशक : सुजीत सरकार
अपनी तीसरी पारी में अमिताभ बच्चन ने लगातार कमाल किए हैं। 'पीकू' में उन्होंने बंगाली किरदार निभाया है जो कब्जियत का शिकार है। इस कारण वह नहीं चाहता कि उसकी बेटी शादी करे क्योंकि उसकी देखभाल कौन करेगा। अमिताभ ने अपने किरदार को इस खूबी से निभाया कि दर्शक दंग रह गए। आश्चर्य होता है कि इस अभिनेता के खजाने में अभी कितना कुछ बाकी है। बेहतरीन अभिनय के लिए बिग बी को नेशनल अवॉर्ड भी मिला।