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कविताएं

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चाँद की आधी रात
पूरे चाँद की आधी रात में
एक मधुर कविता
पूरे मन से बने
हमारे अधूरे रिश्ते के नाम लिख रही हूँ
चाँद के चमकीले उजास में
सर्दीली रात में
तुम्हारे साथ मैं नहीं हूँ, लेकिन
रेशमी स्मृतियों की झालर
पलकों के किनारे झूल रही हैं
और आकुल आग्रह लिए
तुम्हारी एक कोमल याद
मेरे दिल में चुभ रही है
चाँद का सौंदर्य
मेरी कत्थई आँखों में सिमट आया है
और तुम्हारा प्यार
मन का सितार बनकर झनझनाया है
चाँद के साथ मेरे कमरे में उतर आया है।
-फाल्गुनी
* * *

याद आती हो तुम

उन नितांत अकेले क्षणों में
जब ठीक आधी रात को
एक दिन विदा लेता है
और दूसरा दिन शुरू होता है
याद करता नहीं हूँ, याद
आती हो तुम
जैसे कोई दीप मंदिर का जल जाए चुपचाप
वो क्षण स्तब्ध से गिनते हैं
शोर के कदमों की आहटों को
कोई ख्याल तो नहीं हो तुम
और कोई बेख्याल-सी भी नहीं
हो हरगिज
प्रेम के उन नितांत क्षणों की परिधि में
जो अधूरा रह गया हो
बिछड़े हुए प्रेम के दीए ही जलते हैं
कोई मशाल नहीं।
- दुष्यंत

* * *
वो पल...
तुम आए
आकर चले गए
आखिरी बन गई
पहली मुलाकात
कुछ कहा भी नहीं तुमने
और न सुना
जो मैंने कहा था
उन कुछ पलों में
सिमट कर रह गया हूँ मैं
और मेरी जिंदगी भी
उन पलों में मैंने देखा है
फूल को मुस्कुराते हुए
तारीफ सुनकर शरमाते हुए
फिर किसी डर से
घबराते हुए
मन को आकाश में घूमते
सपनों को बुनते और
टूट जाते हुए
उन्हीं पलों से सीखा
है मैंने
सही अर्थ प्रेम का
परिभाषा जीवन की
और मजबूरियां इंसान की
जो रोकती हैं हमें
वो करने से जो हम
चाहते हैं
उसे अपनाने से
जिसे हम चाहते हैं
वो पल भूलाए नहीं भूलते
एक पल को भी हटता नहीं दृश्य आँखों से
वो पहली मुलाकात
जो आखिरी बन गई।
-ओजस्वी कौशल

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