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आंदोलन आगाज़ है बदलाव का

- गायत्री शर्मा

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संघर्ष और सब्र का बाँध टूटने पर जन्म लेते हैं आंदोलन व अभियान। जो अपने हर चरण में एक नया इतिहास रच सदा के लिए अमर हो जाते हैं। परिवर्तन की बयार बन समय-समय पर चलने वाले आंदोलन हमारी एकता का परिचय देकर हम सभी को एकसूत्र में बाँधते हैं। यदि हम इंदौर का इतिहास खंगाले तो इस शहर ने भी कई बार आंदोलनों व अभियानों की गूँज के रूप में अपने हक के लिए आवाज उठाई है, जिसकी बदौलत आज राजबाड़ा शहर की शान है और घर-घर पहुँचता नर्मदा का जल शहर की पहचान है। विकास की दौड़ में तेजी से अपने स्वरूप को बदलते इंदौर की तस्वीर को निखारने का बीड़ा उठाया है युवाओं ने। जो स्वयंसेवी संगठनों के माध्यम से शहर को स्वच्छ व सुंदर बनाने की दिशा में सराहनीय कार्य कर रहे हैं।

इतिहास साक्षी रहा है कि शहर में जब भी कोई आंदोलन हुआ है तब बदलाव की बयार के रूप में हमें खुशहाली, हरियाली व संपन्नता मिली है। मुद्दा पानी बचाने का हो या पक्षियों के उजड़ते आशियानों का, भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने का हो या फिर प़ेडों की अंधाधुंध कटाई रोकने का। हर बार नए-नए मुद्दों के साथ शहर की जनता ने अपने हक के लिए आवाज उठाई है। शहर में हुए आंदोलनों के दौरान बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक हर वर्ग का व्यक्ति र्तपती दुपहरी और बरसती बरसात में अपनी माँगों को लेकर अडिगता से खड़ा रहा है। शहर के चिंतकों व बुद्धिजीवियों द्वारा शहर के विकास व जनहित के लिए चलाए जाने वाले इन अभियानों व आंदोलनों को आगे बढ़ाने का जिम्मा अब युवा पीढ़ी ने अपने कांधों पर लिया है। देश व समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को भाँपते हुए इंदौर के युवा अब समाजसेवा के पुनीत कार्य में तन-मन-धन से अपना योगदान दे रहे हैं।

युवाओं ने सम्हाली बागडोर
शहर में दिन-ब-दिन बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिए वृक्ष बचाओ, जल बचाओ, पक्षी बचाओ आदि अभियानों के माध्यम से जनता को जागरूक करने में मीडिया के साथ ही अब कुछ युवा संगठन भी आगे आ रहे हैं। ये संगठन नुक्कड़ नाटक, सेमिनार, स्लोगन व पौधारोपण के माध्यम से जनता को पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूक कर रहे हैं।

सदाचार समिति
विगत 25 वर्षों से यह समिति शहर में जरूरतमंदों को भोजन उपलब्ध कराने का पुनीत कार्य कर रही है। संस्था के सचिव अनिल भंडारी के अनुसार शुद्घता के लिहाज से अपनी भोजनशाला में भोजन बनवाकर मात्र 1 रुपए में हम गरीब मरीजों को भोजन पैकेट देते हैं। वर्तमान में हमारी समिति शहर के 6 अस्पतालों में भोजन पैकेट वितरित कर रही है। इसके अंतर्गत प्रतिदिन करीब 1500 से अधिक भोजन पैकेट का वितरण किया जा रहा है।

नर्मदा आंदोल
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इंदौर के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हुए आंदोलनों में नर्मदा आंदोलन प्रमुख है। इंदौर में पानी की समस्या के स्थायी हल हेतु नर्मदा के जल की माँग को लेकर 4 जुलाई 1970 से आरंभ हुए इस आंदोलन का समापन 23 अगस्त 1970 को हुआ। इस आंदोलन के अंतर्गत 1 लाख नागरिकों का हस्ताक्षर अभियान, आंदोलन के समर्थन में शहरभर में 50,000 से अधिक स्थलों पर ध्वजारोहण और चालीस चौराहों पर प्रदर्शन आदि किए गए। इंदौर व महू में व्यापक स्तर पर आयोजित हुए इस आंदोलन को शहर की कई संस्थाओं, उद्योगपतियों व नेताओं के साथ ही तत्कालीन महारानी उषादेवी का भी समर्थन मिला।

इस ऐतिहासिक आंदोलन में 12 जुलाई को गाँधी हाल से साइकल जुलूस, 18 जुलाई को विशाल महिला सभा, 1 अगस्त को विशाल जुलूस, 7 अगस्त को महू और 8 अगस्त को इंदौर बंद आदि का आयोजन किया गया। आंदोलन के समर्थन में इंदौर के अनोखीलाल पहलवान लगातार चौंतीस दिनों तक मालवा मिल चौराहे पर एक स्थान पर खड़े रहे, जिनका अनशन मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद टूटा। इंदौर की जनता की जिद व आंदोलन की व्यापकता के आगे आखिरकार मुख्यमंत्री को झुकना ही पड़ा। कई दिनों तक चले इस शांत आंदोलन का अंत 23 अगस्त को तत्कालीन मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ल की नर्मदा का जल इंदौर लाने की घोषणा के साथ हुआ।

प्रयास कला संग
नुक्कड़ नाटक, थिएटर व फिल्मों के माध्यम से जनजागृति फैलाने की दिशा में शहर के युवाओं की संस्था प्रयास कला संगम के प्रयास भी सराहनीय हैं। रंगमंच कलाकार राघवेंद्र तिवारी की यह संस्था गली, चौराहों व गाँवों में जाकर नुक्कड़ नाटक के माध्यम से जनता को शिक्षा, पर्यावरण व स्वास्थ्य आदि मुद्दों पर जानकारी देने के साथ ही बेरोजगार युवाओं को अभिनय की बारीकियाँ सिखाकर उन्हें रोजगार भी उपलब्ध कराती है।

मृत्युंजय भार
शहर के कुछ जागरूक युवाओं द्वारा संचालित की जाने वाली संस्था मृत्युंजय भारत युवाओं के हितों की माँग उठाने के साथ ही श्रमदान व पौधारोपण के माध्यम से पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने का पुनीत कार्य भी कर रही है। संस्था की सदस्य धरा पांडे के अनुसार हम समय-समय पर रक्तदान, पॉलीथिन के दुष्प्रभाव व पौधारोपण आदि के बारे में लोगों को जानकारी देते रहते हैं। इसी के साथ ही प्रदेश के अलग-अलग जिलों में कार्य कर रहे 250 से अधिक कार्यकर्ता संस्था की विविध गतिविधियों के माध्यम से अपने शहर व आसपास के इलाकों में पर्यावरण प्रदूषण को रोकने में अपना योगदान दे रहे हैं। हाल ही में हमारी संस्था ने टीकमगढ के पहाड़ों में अवैध खनन रोकने व एक ही दिन में लाखों पौधे रोपने का व्यापक अभियान चलाया था। इसमें हमें अभूतपूर्व सफलता व व्यापक जनसमर्थन मिला था।

इतिहास के झरोखे से
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राजबाड़ा बचाओ समिति : आज भी सुनाई देती है हमें वह गूँज, जिसने निजी हाथों में बिक चुके राजबाड़ा को पुनः हासिल करने के लिए आवाज उठाई थी। उस मनहूस दिन को याद करके आज भी शहर के बड़े-बुजुर्गों की आँखें भर आती हैं। जब उनसे उनका राजबाड़ा छिन लिया गया था। बात 70 के दशक की है। जब शहर की शान व होलकरों की विरासत कहे जाने वाले राजबाड़ा का सौदा 15 लाख रुपए में हुआ था। यह राजबाड़ा के प्रति लोगों की भावनाओं, जिद, लगाव व जन आंदोलन का ही परिणाम था कि 1976 में तत्कालीन मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ल को राज्य निधि से राजबाड़ा खरीदकर उसे पुनः जनता को सौंपने की घोषणा करना पड़ी थी।

कासलीवाल बंधुओं से उस वक्त राज्य सरकार ने राजबाड़ा को 19 लाख 66 हजार 500 रुपए में खरीदा था। आज शहर के बीच शान से खड़े राजबाड़ा को बचाने के लिए जनता ने सड़कों पर आकर आंदोलन व आमसभाएँ की थीं। सच कहें तो इंदौरवासियों के लिए 6 अक्टूबर 1976 का वह दिन दीपावली के जश्न से कम नहीं था। जब ऐतिहासिक महत्व की इस इमारत के पुनः मिलने की खुशी में राजबाड़ा को दुल्हन की तरह सजाकर उसकी आरती उतारी गई थी व हेलिकॉप्टर से इस भव्य इमारत पर पुष्पवर्षा की गई थी।

प्रोजेक्ट हरियाल
70 व 80 के दशक में इंदौर को हरा-भरा बनाने के उद्देश्य से प्रोजेक्ट हरियाली अभियान की शुरुआत की गई थी। तीन हजार स्कूली बच्चों के पैदल मार्च व बैंड-बाजे की स्वरलहरियों के बीच युद्घ स्तर पर आरंभ किए गए पौधारोपण के इस अभियान के अलग-अलग चरणों में शहर में हजारों-लाखों पौधे रौंपे गए। इस अभियान के प्रथम चरण में 2 लाख 84 हजार 761 पौधे व द्वितीय चरण में करीब 9 लाख पौधे रौंपे गए। अभियान को गति प्रदान करने में कलेक्टर अजित जोगी, ओपी रावत, भागीरथ प्रसाद, सुधीर रंजन मोहंती आदि का योगदान अविस्मरणीय रहा।

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