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कितनी जिंदा है देशभक्ति

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जब गणतंत्र दिवस और देशभक्ति को लेकर युवाओं से सवाल किए जाएँ तो जवाब बड़ी मुश्किल से मिलता है। जब हम अपने ग्रुप डिस्कशन के विषय को लेकर कई युवाओं से मिले तो समझ में आया कि क्यों आज के यूथ को देशभक्ति ओल्ड फैशन नजर आती है। हालाँकि कुछ युवाओं में अब भी देशप्रेम कुछ हद तक जिंदा है। देशप्रेम का रंग जरूर बदला है, लेकिन अब वह नारों और रैलियों में प्रकट नहीं होता।

क्या आज स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस वाकई में देशभक्ति की भावना से मनाए जाते हैं। क्या नेताओं को झंडा फहराने का हक है।

एमबीए स्टूडेंट प्रद्युम्न वैद्य ने कहा- अपने आसपास देखिए, कौन दिल से इन राष्ट्रीय त्योहारों को मनाता है। लोग तो सुबह दिल्ली में होने वाली परेड तक नहीं देखते। इन छुट्टियों में या तो फिल्म देखने का प्लान होता है या पिकनिक मनाने का। हाँ, नेताओं से झंडा फहराने का अधिकार छीन लेना चाहिए, क्योंकि इन्होंने ही देशभक्ति को पाल्यूट किया है।

इंजीनियरिंग स्टूडेंट सुशांत सक्सेना ने कहा कि देशभक्ति कैसे दिखाएँ। हम अपना काम ठीक से करते हैं,
आज देश के जो हालात हैं, उसे देखते हुए भरोसा नहीं होता कि देशभक्ति जिंदा है। युवाओं के सामने ऐसा कोई आदर्श नहीं बचा है, जो उन्हें प्रेरित कर सके
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यही देशभक्ति है। इसके लिए नारे लगाने की जरूरत नहीं है। देश का हर आदमी खुद के साथ देश चलाने का भी काम कर रहा है और नेता अपनी पीठ थपथपाते हैं। इनको झंडा फहराने का अधिकार नहीं होना चाहिए। साइंस स्टूडेंट अमित लड्ढा ने कहा, आज भी देशभक्ति जिंदा है और लोग अपने देश की बेहतरी के लिए सड़क पर भी उतर आते हैं। ये हम पिछले दिनों हुए अण्णा आंदोलन में देख चुके हैं। 15 अगस्त और 26 जनवरी अब भी उसी भावना से मनाए जाते हैं।


सब नेता बुरे नहीं हैं, नहीं तो देश कभी का बिक चुका होता। आर्ट स्टूडेंट कविता पुरोहित ने कहा- यूथ पर अक्सर आरोप लगता है कि उनमें देशभक्ति नहीं है, लेकिन ये सरासर गलत बात है। यदि हम 15 अगस्त नहीं मनाते तो इसका मतलब यह नहीं कि हममें देशप्रेम नहीं है। दिल से भारतीय रहो और अपना काम पूरा करो, बस इतना ही बहुत है। राजनेताओं में कौन बचा है, जो तिरंगा फहराने का हक रखता है।

ये हक तो हर साल किसी फौजी को दिया जाना चाहिए। एमबीए स्टूडेंट शिखा गुप्ता के मुताबिक अब 15 अगस्त और 26 जनवरी मनाना बंद कर देना चाहिए। आज देश घोटालों से तंग आ चुका है। बेरोजगारी दूर नहीं हो रही तो ऐसे में ये त्योहार मनाने का क्या मतलब है। हम किसे आइडियल माने, यहाँ तो सभी घोटालों में फँसे हुए हैं। जब तक हम राजनेताओं के शोषण से आजाद नहीं होंगे, आजादी की खुशी नहीं मना सकते।

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