यह तेजी से उभरती और व्यापक नई तकनीकों का समूह है, जिससे सतत खाद्य उत्पादन, पोषण सुरक्षा, स्वास्थ्य की देखभाल और पर्यावरण की सुदीर्घता के क्षेत्रों को बड़ी उम्मीदें हैं। जैव प्रौद्योगिकी को विश्व में तेजी से उभरती, जटिल और व्यापक नई तकनीकी के रूप में पहचान मिली है।
अगले दो दशकों में जैव प्रौद्योगिकी तकनीकी क्षेत्र में सूचना प्रौद्योगिकी से आए बदलावों के बराबर ही क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है। जीवन विज्ञान के क्षेत्र में हाल की प्रगति साफ तौर पर जैव प्रौद्योगिकी के इस नए औजार के उपयोग का नतीजा है। जीव विज्ञान-जीनोमिक्स, प्रोटियोमिक्स, बायोइंफॉर्मेटिक्स और सूचना प्रौद्योगिकियों में प्रगति की अभिरूपता से एक नई जैव-अर्थव्यवस्था का विकास हो रहा है। भारत के वार्षिक कारोबार में 2015 तक इस क्षेत्र में वार्षिक प्रगति की दर 25 फीसद होने की संभावना है। इस क्षेत्र में 450 से ज्यादा अनुसंधान और विकास परियोजनाओं को सरकार की तरफ से सहयोग दिया गया, वहीं 200 से ज्यादा विश्वविद्यालयों और अनुसंधान प्रयोगशालाओं को क्षमता निर्माण और ढाँचागत मजबूती दोनों ही कार्यों के लिए सहयोग दिया गया।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में नए टीके और नैदानिक पदार्थ बनाए गए हैं और उनका क्लीनिकल परीक्षण चल रहा है। देश में स्टेम सेल अनुसंधान के विकास की दिेशा में बड़ा कदम उठाया गया है और 6 केंद्रों को कार्यक्रम सहयोग दिया गया है। इस क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण अंतरविभागीय सहयोग के लिए योजना भी सरकार ने बनाई है। ऊतक अभियांत्रिकी, जैव आयुर्विज्ञान उपकरण, जैव-पदार्थ, नैनो जैव प्रौद्यागिकी और आरएनएआई के क्षेत्र में गहन अनुसंधान को सहायता दी जा रही है। देश के मातृ, नवजात और बाल स्वास्थ्य कार्यक्रमों के लिए जरूरी विशेष साधन और फार्मूलेशन के लिए प्रयास किए जा रहे हैं।
कृषि जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में पोषण बढ़ाने, उत्पादन में बढ़ोतरी और जैविक या अजैविक तत्वों के प्रति फसलों में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। लोगों की नए उत्पादों और तकनीकों तक पहुँच बढ़ाने और स्वास्थ्य, पोषण सुरक्षा, रोजगार निर्माण और पर्यावरण में सुधार के लिए अनुकूल वातावरण बनाने के लिए विशेष प्रयास भी किए जा रहे हैं। जैव-विज्ञान और जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र में अनुसंधान के नए औजार के विकास और नए विचारों और प्रतिपादनों के लिए नई पहलें की गईं, जिनमें पीएचडी, पोस्टडाक्टरल और विदेशी शिक्षावृत्ति में बढ़ोतरी, युवा अनुसंधानकर्ताओं को त्वरित अनुदान, नव अनुसंधान शिक्षावृत्ति आदि शामिल हैं।
निजी-सार्वजनिक क्षेत्र की साझेदारी एक बड़ी सफलता रही लघु व्यापार नवाचार अनुसंधान उपक्रम (एसबीआईआरआई) का गठन, जो काफी महत्वपूर्ण है। डेनमार्क,नीदरलैंड, अमेरिका, फिनलैंड, ब्रिटेन आदि देशों के साथ नए अंतरराष्ट्रीय समझौते हुए हैं। जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने वर्ष 2004 से कनिष्ठ अनुसंधानवृत्ति की शुरुआत की है। 100 शोधार्थियों का चुनाव जैव प्रौद्योगिकी योग्यता परीक्षा (बीईटी) के जरिए पुणे विश्वविद्यालय करता है और शोधवृत्तियाँ शुरू में तीन साल के लिए दी जाती हैं, जिन्हें 5 साल तक बढ़ाया जा सकता है।
डॉक्टरेट के बाद फैलोशिप (पीडीएफ) 100 लोगों को हर साल दी जाती है, जिनका चुनाव भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलुरू करता है। मध्यम स्तर के वैज्ञानिकों तथा स्नातक व स्नातकोत्तर कक्षाओं में पढ़ाने वाले शिक्षकों के लिए कम अवधि के प्रशिक्षण कार्यक्रम भी हैं, जो देश के शीर्ष संस्थानों में चलाए जा रहे हैं। विदेशी प्रयोगशालाओं में विशेषज्ञता प्रशिक्षण कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं।