कहने को तो पोर्न भारत में प्रतिबंधित है। पोर्नोग्राफी के नाम पर जिसे हम गंदा व अश्लील कहते हैं, वही इस देश में सबसे ज्यादा बिकता है। फिर जिक्र चाहे पोर्न फिल्मों का हो या फिर पोर्न स्टार का। ये दोनों ही इस वक्त इंडिया में धूम मचा रहे हैं। क्या करें यहाँ तो जो बच निकले वो साहूकार और जो पकड़ा जाए वो चोर वाला हिसाब होता है। अब तो आप हमारा इशारा समझ ही गए होंगे।
हम बात कर रहे हैं, भारतीय राजनीति की, जहाँ पर्दे के पीछे सब कुछ चलता है, लेकिन पर्दे के सामने पाक-साफ कहलाने वाले नेताओं को वही सब कुछ खलता है। हाल ही में सुर्खियों में आए भाजपा के तीन चर्चित चेहरों (लक्ष्मण सावड़ी, सीसी पाटिल और कृष्णा पालेमर) का ही उदाहरण लीजिए। मामला था विधानसभा की कार्यवाही के दौरान मोबाइल पर पोर्न वीडियो भेजने व उसका लुत्फ उठाने का। सदन में मनोरंजन के इस नए टोटके के कैमरे में कैद होने मात्र की ही देर थी कि कुछ ही दिनों में ये तीनों मंत्री मीडिया व विपक्ष के लाडले बन गए।
अपने मोबाइल पर अश्लीलता का नंगा नाच देखने वाले दो मंत्रियों (लक्ष्मण सावड़ी और सीसी पाटिल) का दामन जब दागदार हुआ तो उसके छीटें कई और मंत्रियों पर भी पड़े। कुछ ने अपना दामन बचाने के लिए चुप्पी साध ली तो कुछ मौका मिलते ही चुटकियाँ लेकर इस मौके को जमकर भुनाया। चुनाव के इस गरमा-गरम माहौल में जब बैठे-बिठाए विपक्ष (कर्नाटक में कांग्रेस) को मुद्दा मिल गया तो भला अपने हाथ आए इस मौके को कौन गँवाने की मूर्खता करेगा।
इस पूरे घटनाक्रम में बहस का मुद्दा यह है कि क्या मंत्रियों द्वारा विधानसभा भवन में पोर्न वीडियो
जो गलत है, वह गलत है। सौ तर्क देकर भी आप उस गलत को सही नहीं बना सकते हैं। दुनिया बदलने की ताकत हम तभी रख सकते हैं, जब हम स्वयं को बदलने का हौसला रखते हो
देखना गलत था या यह एक आम घटना थी, जिसे चुनाव के मद्देनजर मीडिया और विपक्ष ने बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया? इस पूरी घटना को अंशुल मेहरोत्रा तो भारतीय राजनीति को कलंकित करने वाली घटना मानते हैं। अंशुल के अनुसार जो राजनेता कानून बनाकर हमें उसका पालन करने की सीख देते हैं। उन्हीं के द्वारा इस तरह कानून को तोड़ना गलत है। आम आदमी यदि ऐसा कृत्य करता है तो इसे हम उसकी नासमझी कह सकते हैं, किंतु यदि जनता के प्रति उत्तरदायी नेता अपने कार्यस्थल पर ऐसा घिनौना कृत्य करते हैं तो उन्हें माफ नहीं किया जा सकता है। जिसकी सोच नकारात्मक होती है, उसे हर जगह गंदगी ही नजर आती है।
चुनाव करीब हैं, इसलिए विपक्ष और मीडिया को मुद्दे की जरूरत थी सो उन्हें यह नया मुद्दा मिल गया। ऐसा कहने वाली बैली कानूनगो की मानें तो आखिर क्यों हम किसी की एक गलती को मुद्दा बनाकर उसकी सौ अच्छाइयों को नकार देते हैं? हालाँकि इन मंत्रियों ने जो किया वह गलत था, लेकिन उन्हें सजा देने से पहले हम उनके द्वारा किए गए अच्छे कार्यों पर भी तो विचार करें। उनकी इस छोटी-सी गलती पर राई का पहाड़ बनाना किसी भी दृष्टि में उचित नहीं है।
दिव्यांकिता जोशी के अनुसार मीडिया को हमेशा गरमा-गरम मुद्दों का मसाला चाहिए। सकारात्मक की बजाय नकारात्मक चीजें मीडिया को हमेशा आकर्षित करती हैं। हालाँकि भाजपा के इन मंत्रियों ने जो किया वह गलत है। देश के नेताओं को राजनीति की कुर्सी पर बैठने का अधिकार हम देते हैं। ऐसे में यदि वे अपने बुरे कार्यों से जनता के साथ विश्वासघात करते हैं तो तो भला जनता उन पर कैसे विश्वास करेगी?
जगनीत कौर ने इसे एक मामूली मुद्दा माना, जिसे चुनाव के कारण सुर्खियाँ बनाया जा रहा है। जगनीत की मानें तो मंत्रियों द्वारा पोर्न वीडियो देखना गलत नहीं है, पर जिस जगह वह इस वीडियो को देख रहे थे, वह जगह गलत थी।
निष्कर्ष के तौर पर हम यही कह सकते हैं कि हर व्यक्ति की अपनी प्राइवेसी होती है, लेकिन जब वह सार्वजनिक स्थल या अपने कार्यस्थल पर प्राइवेसी के नाम पर आमजन की भावनाओं को आहत करने वाला कोई बुरा कृत्य करता है तो वह प्राइवेसी वहीं खत्म हो जाती है। इन तीनों मंत्रियों ने सदन में अश्लीलता का आदान-प्रदान व उसका लुत्फ उठाने के साथ ही सदन की गरिमा को भी कलंकित किया है, जो कि एक शर्मनाक घटना है।