कैलाश खेर की नई एल्बम 'रंगीले' आपको अपने रंग में रंगने के लिए तैयार है। दस गानों की इस एल्बम में हर गाने का अपना अलग ही रंग दिखाई देता है। 'यादाँ तेरियाँ' जहाँ विरह के गमगीन रंग में डूबी है वही 'मैं तो आज़ादी में भी कैद हो गई, मेरे अलबेलिया, तू खेलिया' गीत प्रेम की सारी सीमाएँ लाँघता हुआ और प्रीत के रंग में पूरी तरह से रंगा नज़र आता है।
मस्ती के रंग को 'हुड्कान मान बीतती' अपने अजब शब्द और गजब संगीत में ढाल देता है। टाइटल ट्रैक ओ रंगीले एक अद्भुत संगीतमय यात्रा में ले जाता है। यह बेहतरीन शब्दों, सुर और ताल का अनूठा संगम है। सूफी और रॉक संगीत के अच्छे तालमेल की ओर इशारा करता 'तू क्या जाने' खुदा की बंदगी को एक नया आयाम देता है।
बैंजो जैसे वाद्ययंत्र के संगीत की ताजगी लिए हुए 'कथागान' एक कहानी को बड़े रोचक और नए अंदाज़ से सुनाता है। अमिताभ बधान की आवाज़ 'धरती पे जन्नत' में चार चाँद लगाती है और यह इस एल्बम को पसंद किए जाने की एक और वजह है। एल्बम के अन्य गीत भी बेहद खूबसूरत है। इंडी पॉप रॉक संगीत में सूफियाना इश्क की सौंधी-सौंधी खुशबू लिए हुए इस एल्बम को सुनना तो बनता है।