बॉलीवुड में दो फिल्मकार बहुत अच्छे हैं और ये इसलिए अच्छे हैं कि इन दोनों ही गीतकारों ने अपने गीतों में कविताओं को जिंदा रखा है। इनके गीत सार्थक और गहरे होते हैं। ये दो गीतकार हैं गुलजार और जावेद अख्तर। हाल ही में जावेद अख्तर ने कहा है कि आज के गाने गाने के लिए ही बनते हैं। इनमें न तो गहराई होती है और न ही कविता। कहा जा सकता है कि एक हद तक जावेद साहब की बात सही है। इन दिनों बॉलीवुड का संगीत न केवल कोनफोडू है, बल्कि उसमें से कविता भी नदारद और गहराई भी। क्या कहा जा सकता है कि युवाओं की जिंदगी से ही कविता और गहराई गायब हो गई है? क्या बॉलीवुड के सतही और अर्थहीन गीत युवाओं की जिंदगी के ही प्रतिबिम्ब तो नहीं? और फिर जावेद साहब की बात इसलिए वजनदार लगती है कि वे बरसों से बॉलीवुड से जुड़े हैं और उन्हें गीत लिखने का लंबा अनुभव है। तो क्या उनका कहना बिलकुल सही है?