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यहां मानवता हुई तार-तार

- गायत्री शर्मा

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इंसानियत पर हावी होती हैवानियत का ऐसा वीभत्स दृश्य, जिसे देख कुछ पल के लिए प्रकृति ने भी अपनी आँखें मूँद ली, हवाओं ने अपना रुख पलट दिया, पत्तों की सरसराहट खामोशी में तब्दील हो गई और चारों ओर पसर गया कभी न खत्म होने वाला सन्नाटा। उस सन्नाटे में कैद चीखों और हैवानी अट्टहास को शब्दों में बयाँ करना मुश्किल है। अब हमारे पास यादों के रूप में है तो बस उस मंजर की कल्पना कर रोंगटे खड़े कर देने वाला डरावना एहसास, जो सालों तक भुलाएँ नहीं भूला जाएगा।

लालच, चाहत और भूख की कुछ सीमाएँ होती हैं, लेकिन यहाँ तो ये सारी सीमाएँ लाँघ दी गईं और रचा गया घिनौनेपन का एक नया इतिहास। इसमें कालिख पोती गई बाप, भाई और बेटा कहलाने वाले पुरुष के तीन जिम्मेदार किरदारों पर। जहाँ सरेआम नीलाम हुआ बाप का बेटी के प्रति स्नेह, भाई का बहन के प्रति प्यार और बेटे के पारिवारिक संस्कार।

आज तक कभी न देखा और कभी न सोचा जाने वाला ऐसा वीभत्स कृत्य, जिसने मानवता को शर्मशार कर इंसानियत की धज्जियाँ उड़ा दी। कहते हैं मारने वाले से बचाने वाला बड़ा बलवान होता है, लेकिन यहाँ तो नारी की आबरू बचाने के लिए उनकी चीत्कार सुन रक्षक के रूप में आए किसान ही भक्षक बनकर टूट पड़े दो मासूम बच्चियों पर।

जी हाँ, हम बात कर रहे हैं 10 फरवरी को बेटमा में हुई दो युवतियों के साथ गैंग रेप की घटना की। इसमें 18 व 19 वर्ष की दो युवतियों के साथ करीब एक दर्जन से अधिक लोगों ने बलात्कार किया और इस पूरे घटनाक्रम को मोबाइल कैमरे में कैद कर मोटी रकम कमाने के लिए एमएमएस बनाए गए। इस पूरे मामले में चौंका देने वाली बात तो यह है कि यहाँ इन युवतियों की चीख सुन उन्हें बचाने आए गाँव के कुछ अधेड़ पुरुषों ने अन्याय किया।

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इस घटना में विश्वास को जिस्म की भूख ने निगल लिया, चाहत को पैसों के लालच ने और इज्जत को अय्याशियों के नशे ने, जिसके चलते इंसानियत पशुता में तब्दील हो गई। इस कृत्य के दोषी सब हैं। राजनीति में कदम रख जनसेवा का ढोंग करने वाले राजनेता, चंद किताबें पढ़ शिक्षित कहलाने वाले स्कूली छात्र, कानूनी पढ़ाई से लोगों को न्याय दिलाने वाले अधिवक्ता और अपने बच्चों और पोते-पोतियों को संस्कार का पाठ पढ़ाने वाले घर के पुरुष सदस्य।

यहाँ इन सभी ने अपने कमजोर संस्कारों के वस्त्र उतार फेंके और शांत की अपनी हैवानियत की भूख। आज इस मुद्दे का हर कोई विरोध कर रहा है। इससे पहले कि यह चर्चा चौराहों व चाय की दुकानों तक ही सिमटकर रह जाए और कानून राजनीति के दबाव में अंधा हो जाए, हमने इस मुद्दे को छेड़ा शहर के युवाओं के बीच, जिन्होंने इस मामले पर बड़ी बेबाकी से कुछ इस तरह अपने विचार रखे-

जनता सजा देगी : - इन घटना को लेकर मन में उबलता क्रोध शब्दों के अभाव में अनुभूति बन गया और चाहते हुए भी इस घृणित कृत्य के लिए शब्द मुख से निकलने में अपनी असमर्थता जता रहे थे। कुछ ऐसी ही स्थिति थी निकिता जैन की, जिसने इस घटना के बारे में सुनते ही कुछ इन शब्दों में अपने क्रोध को बयाँ किया- मैं क्या कहूँ? मुझे बहुत ज्यादा बुरा लग रहा है। कितनी गंदी सोच, कितने गंदे लोग... क्या ऐसे भी लोग होते हैं? निकिता की मानें तो ऐसे लोगों को कानून की नहीं, बल्कि जनता के इंसाफ की जरूरत है, क्योंकि कानून तो बिकाऊ है, जिसके चंगुल से ये लोग आज नहीं तो कल छूट जाएँगे। जनता को इन दोषियों को सरेआम नग्न करके कड़ी से कड़ी सजा देना चाहिए, ताकि इन्हें भी अपमान, दर्द व तिरस्कार का आभास हो।

एकजुट होना जरूरी :- धीरज तिवारी के अनुसार इस घटना में दोषी पाए गए अधिकांश लोग संभ्रांत परिवारों से हैं, जिन्हें पहले से ही अपने माँ-बाप पर इतना भरोसा था कि यदि वे कोई गलत कार्य करते पाए गए तो भी उनके माता-पिता उन्हें कानून के शिकंजे से आसानी से बाहर निकाल लाएँगे। इस घटना में दुख व अपमान का पहाड़ तो उन दो लड़कियों व उनके परिजनों पर टूटा, जो इस गैंगरेप की शिकार हुईं। उन्हें समाज कभी इतनी आसानी से स्वीकार नहीं करेगा। इस मामले में दोषियों को सजा दिलाने के लिए मीडिया, पुलिस और आमजन को एकजुट होकर आवाज उठाना होगी, ताकि कानून उन लड़कियों के साथ इंसाफ कर सके।

एक्सपर्ट व्यू : - आजकल का माहौल ही फिमेल सेक्स के प्रति बड़ा घिनौना होता जा रहा है। टीवी से लेकर मैग्जीन के कवर पेज तक हर जगह आपके मन को भटकाने वाली चीजें आसानी से मिल जाती हैं। जब यह घटना हुई तब इन युवतियों की मदद के लिए आए कुछ पुरुष भी साइकोलॉजी ऑफ क्राउड में रमकर न चाहते हुए भी इस दुष्कृत्य में शामिल हो गए। पुरुषों में सेक्स के अतिरेक की वृत्ति को हम हाइपर सेक्स्चुअल डिसऑर्डर भी कह सकते हैं, जिसमें व्यक्ति पर सेक्स का ऐसा जुनून सवार होता है कि उसे पाने की चाह में कुछ भी करने को तैयार हो जाता है।

- डॉ. दीपक मंशारमानी, मनोचिकित्स

कौन करेगा मदद :- सुनने वालों के रोंगटे खड़े कर देने वाली इस घटना की निंदा करते हुए रुचिका चौरसिया ने यही कहा कि ऐसे घृणित कृत्यों की पुनरावृत्ति भविष्य में कभी नहीं होना चाहिए। यह एक निंदनीय घटना है, जिसे सुनकर हमारा इंसानियत से भरोसा ही उठ जाता है। कानून इन दोषियों को सजा देने में असमर्थ है, क्योंकि अपनी पहुँच बताकर ये आसानी से जमानत पर छूट जाएँगे। इनके लिए बेहतर सजा तो समाज ही निर्धारित कर सकता है। समाज को इन्हें पूरी तरह से तिरस्कृत करना होगा।

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