Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

सुनो बदलाव का सुर

Advertiesment
हमें फॉलो करें सुनो बदलाव का सुर
ND
इंदौर में हर वीकेंड में यहाँ संगीत कार्यक्रम सबसे ज्यादा होते हैं। संगीत के शौकीन बड़ी तादाद में इन महफिलों का हिस्सा बनते हैं, मगर एक कमी हमेशा देखी जाती है और वो यह कि ऐसे आयोजनों में युवाओं की हिस्सेदारी बहुत कम है। दूसरी ओर आधुनिक अंदाज में गाने वाले रॉक बैंड्‌स बहुत प्रतिभाशाली होने के बावजूद मुख्यधारा में नहीं आ पा रहे हैं। न उनके पास आर्थिक प्रोत्साहन है और न ही स्थापित संगीत संस्थाएँ उनको आमंत्रित करती हैं। शहर का म्यूजिक कल्चर अब बदलाव चाहता है, लेकिन इस बदलाव की आहट को स्थापित संस्थाएँ अनसुनी कर रही हैं।

संगीत संस्थाएँ आयोजनों में पुराना जायका ही परोस रही हैं। यूथ को इन कार्यक्रमों में अपना जायका नहीं मिल पा रहा है और वह अब डीजे की शरण में जा चुका है। डीजे कल्चर इसलिए बढ़ा, क्योंकि नए संगीत को स्थापित मंचों पर जगह नहीं दी गई। पुराना संगीत हमारी धरोहर है और इंदौर ने इस धरोहर को पूरा सम्मान दिया है। 1960 से 80 तक का फिल्मी संगीत हमारी संस्थाओं की बदौलत अब तक ताजा है, लेकिन मंच पर अभिजीत, उदित नारायण, आतिफ असलम और लकी अली के बेहतरीन गीत क्यो नहीं संजोए जाते।

शहर के अच्छे बैंड्‌स के उभरते कलाकारों को क्यों नहीं बुलाया जाता। यदि ऐसा होगा तो यूथ ज्यादा से ज्यादा आयोजनों का हिस्सा बनेगा। असलियत देखें तो शहर में लगभग बीस स्थापित वोकलिस्ट हैं, लेकिन ये पुराने गीत गाना ही पसंद करते हैं। इसके विपरीत शहर में कुल पच्चीस बैंड अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्षरत हैं। इनमें से पाँच बैंड ऐसे हैं, जिनके कलाकार क्लासिकल, सेमी क्लासिकल और पुराने गीतों का फ्यूजन बेहतरीन ढंग से पेश करते हैं। आर्थिक अभावों से जूझते बैंड और इनके कलाकारों को मंच ही नहीं मिल पा रहा है।

प्रायोजकों की तलाश
इस समय शहर में लगभग 25 रॉक बैंड्‌स अपनी पहचान बनाने के लिए जूझ रहे हैं। इनमें लगभग 150 युवा कलाकार हैं, जिन्हें अब भी स्थायी मंच व प्रायोजकों की तलाश है। इन्हीं युवाओं में से कुछ इंदौर की गरिमामयी संगीत परंपरा को अपने कंधों पर संभालने की क्षमता रखते हैं। कई युवा कलाकारों से बात करने पर मालूम हुआ कि संगीत संस्थाओं को शहर के यूथ के टेस्ट का भी ध्यान रखना चाहिए। वे पुराना संगीत संभाल रहे हैं यह अच्छी बात है, लेकिन नए संगीत को नकार देना भी सही नहीं है। इन युवा कलाकारों ने बताया कि बड़े-बड़े शॉपिंग मॉल्स भी उनके बैंड को ज्यादा पैसा नहीं देते।

इन बैंड्‌स को भी ज्यादातर कॉलेज के मंच ही नसीब होते हैं। इंदौर की भविष्य की संगीत पीढ़ी का हाल आर्थिक रूप से बहुत ही बुरा है। इन रॉक बैंड्‌स में कुछ कलाकार ऐसे भी हैं, जो आने वाले समय में इंदौर और देश के सितारे बनने का दम रखते हैं। राघव खुराना बारह साल की उम्र में अपने बैंड के लिए लीड गिटारिस्ट का रोल अदा कर रहे हैं। नमय ऋषि 15 की उम्र में तीन-तीन ग्रुप में बैंड बजाते हैं। इनके जैसे और कितने सितारे बस कैंपस या मॉल में अपना टैलेंट दिखा पा रहे हैं। ये चाहते हैं कि अपना टैलेंट शहर को दिखाएँ।

यूथ को भी मिले प्लेटफार्म
बंदिश बैंड के लीड सिंगर गणेश शंकर उपाध्याय ने बताया कि हम लोग भारतीय संगीत को नए अंदाज में पेश करते हैं, लेकिन शायद वो स्थापित संगीतज्ञों को पसंद नहीं आता। वे कब तक पुराने से चिपके रहेंगे। हम भी पुराना संगीत पेश कर सकते हैं, लेकिन अंदाज नया होगा। हमारा भी सपना है कि यहाँ कि संस्थाओं के साथ परफार्म करें। कब तक वे संगीत के भविष्य को नजरअंदाज करेंगे। हिप्नोटिका बैंड के ड्रमर नमय ने बताया कि हम लोग नए हैं, इसलिए काम नहीं मिल पाता।

इंदौर का यूथ मैटलिक रॉक पसंद करता है, लेकिन स्पाँसरशिप के बगैर हम सार्वजनिक कार्यक्रम बहुत कम कर पाते हैं। बस हमें ज्यादातर कैंपस का स्टेज ही नसीब होता है। स्थापित संगीतज्ञों को युवा कलाकारों की मदद करना चाहिए। युवा गिटारिस्ट रक्षित त्रिवेदी भी शहर के उभरते हुए कलाकार हैं और यहाँ तवज्जो न मिल पाने के कारण अब शहर से बाहर जाकर अपना टैलेंट निखारना चाहते हैं। रक्षित की तरह कितने कलाकार मुंबई चले जाते हैं, क्योंकि यह शहर उनके टैलेंट को स्वीकार ही नहीं करता।

ये हैं ताजी हवा के झोंके
नए गाने परफार्म करने वाले शहर में बहुत कम हैं। इनमें सचिन दवे, स्वराज पाठक, शोएब खान, आशीष रायकवार, राज ठाकुर और ेया खुराना का नाम लिया जा सकता है। ये शहर के उभरते कलाकार हैं, लेकिन स्थापित कलाकारों की भीड़ में अब भी पहचान बनाने की जद्दोजहद में है। ये गायक कलाकार मंच पर नए और पुराने गीत पेश करते हैं। हालाँकि इनकी संख्या अभी कम ही है।

शहर के जाने-माने गिटार गुरु विवेक ऋषि जैसे कुछ कलाकार हैं, जो इन युवा कलाकारों को प्रमोट कर रहे हैं। विवेक कई बैंड्‌स को जरूरत पड़ने पर मदद करते हैं और कई युवा गिटारिस्ट तैयार कर रहे हैं। विवेक ने बताया कि बड़ी संस्थाओं को प्रायोजक मिलते हैं, लेकिन नए कलाकारों को नहीं। इसके लिए सिर्फ संगीत संस्थाएँ जिम्मेदार नहीं हैं। महँगा मनोरंजन कर भी नए कलाकारों के लिए समस्या है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi