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स्टेम सेल

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विकास भाग 11

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जीवन विज्ञान में स्टेम सेल जीव संभावनाओं से भरपूर उभरता हुआ क्षेत्र है। कई असाध्य रोगों में कोशिकीय प्रतिस्थापना और ऊतकीय इंजीनियरी के जरिए इलाज में स्टेम सेल प्रौद्योगिकी की क्षमता को व्यापक मान्यता मिली हुई है। इस प्रौद्योगिकी के चिकित्सकीय महत्व को देखते हुए विभिन्न संस्थानों, अस्पतालों और उद्योगों में इस बारे में मूलभूत और प्रयोगात्मक शोध को बढ़ावा दिया जा रहा है।

देश में स्टेम सेल शोध के अलग-अलग आयामों से संबंधित 55 कार्यक्रमों को चिन्हित कर उन्हें प्रोत्साहन दिया गया है। इनमें मानव भ्रूणीय स्टेम सेल, अग्नाशयी प्रोजेनिटर कोशिकाओं के इंसुलीन बनाने वाली कोशिकाओं में पृथकीकरण, अस्थि मज्जा से अलग-अलग क्षमताओं वाली वयस्क प्रोजिनिटर कोशिकाओं को अलग करने और उनके क्लोन के रूप में विस्तार, केले के लेक्टिन का स्टेम सेल परीरक्षण के लिए प्रयोग, हैप्लो आइडेंटिकल एचएससी ट्रांसप्लांटेशन के लिए हेमेटोपोइटिक स्टेम सेल, आँख की सतह संबंधी गड़बड़ियों के लिए हाथ-पाँव के स्टेम सेल के प्रयोग, मीसेनकाइमल और लीवर स्टेम सेल के पृथकीकरण और पहचान, मानव भ्रूणीय स्टेम सेल के टेस्ट ट्‌यूब में न्यूरल और नॉन न्यूरल, हृदय संबंधी स्टेम सेल और भ्रूणीय स्टेक सेल आदि में विभेदीकरण शामिल है।

हृदय रोग, लिंब इश्चेमिया (हाथ-पाँव में खून के प्रवाह में कमी) और अस्थि रोग जैसे क्षेत्र में स्टेम सेल के इस्तेमाल के बारे में भी योजनाओं पर काम चल रहा है। सीएमसी वेल्लोर में मूलभूत और प्रयोगात्मक अनुसंधान के लिए सीएमसी-डीबीटी सेंटर फॉर स्टेम सेल रिसर्च की स्थापना की गई है। एक्यूट मायोकार्डियल इंफेक्शन के बारे में कई केंद्रों में नैदानिक अध्ययन किया गया है और एक्यूट इश्चेमिया स्ट्रोक के बारे में प्रायोगिक अध्ययन शुरू किया गया है ताकि अस्थि मज्जा की एक केंद्रित कोशिकाओं की सुरक्षा और सामर्थ्य के बारे में जाना जा सके।

चंडीगढ़ के पीजीआईएमईआर, लखनऊ के एसजीपीजीआईएमएस, मुंबई के केईएम और हैदराबाद के एलवीपीईआई में स्टेम सेल अनुसंधान की सुविधाएँ और साफ-सुथरे कक्ष उपलब्ध कराए गए हैं। भ्रूणीय और वयस्क स्टेम सेल के बारे में प्रशिक्षण देने के लिए बेंगलुरू में एक प्रशिक्षण केंद्र को एनसीबीएस और जेएनसीएसआर संयुक्त रूप से सहयोग दे रहे हैं। निर्माण की अच्छी कार्यप्रणाली के बारे में कार्यशालाएँ और प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित किए गए।

इस क्षेत्र में जो चुनौतियाँ हैं, उनमें शामिल हैं- वांछित योग्यता वाले लोगों की उपलब्धता, बुनियादी ढाँचे में कमियाँ, विषय संबंधी अनुसंधान के लिए शोधकर्ताओं और चिकित्सा विज्ञानियों के बीच तालमेल, उपयुक्त नियामक तंत्र, चिकित्सकीय और संबंधित शोध की दिशा में ले जाने वाले मौलिक शोध को चिन्हित करना और खास लक्ष्य की ओर कार्यरत केंद्र और संस्थान।जैव अभियांत्रिकी के क्षेत्र में ऊतक इंजीनियरी, चिकित्सा शास्त्र, चिकित्सकीय उपकरण, बायोइंस्ट्रूमेंटेशन और बायो सेंसर्स के क्षेत्र में काम करने की जरूरत भी महसूस की गई है।

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