इस बात का कितना ढिंढोरा पीटा गया है कि बच्चे देश का भविष्य हैं लेकिन इस भविष्य के बदहाल वर्तमान पर एक नजर डाली जाए तो यह भयावह तथ्य सामने आता है कि चाचा नेहरू के बच्चों को फूल तो दूर की बात है दो समय की रोटी तक दूभर है। हमारे देश में बाल मजदूरी की समस्या तमाम कानूनों के बावजूद विकट बनी हुई है।
इन कानूनों को लागू करने वाली एजेंसियों की लापरवाही कहें या इस ओर अक्षम्य उदासीनता आज भी नन्हे हाथों में कॉपी-पेंसिल-बैग की जगह कप-बशी और गिलास देखे जा सकते हैं। जाहिर है यह सरकार से लेकर प्रशासन और हम सब इसके लिए सामूहिक रूप से जिम्मेदार हैं। 14 नवंबर को रस्म अदायगी के तौर पर बाल दिवस मना लिया गया लेकिन बाल जीवन अब भी लापरवाही और उदासीनता का शिकार बना हुआ है।