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शुतुरमुर्ग पालें और करोड़पति बनें!

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हमें फॉलो करें शुतुरमुर्ग पालन
, मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011 (13:44 IST)
हाथी के संबंध में एक कहावत है कि जिंदा लाख का और मर गया तो सवा लाख का। यही कहावत शुतुरमुर्ग पर भी फिट बैठती है। जिंदा शुतुरमुर्ग साल में 30 अंडे देता है। एक अंडा करीब 2000 रुपए में बिकता है अर्थात 60000 रुपए।

लेकिन यदि शुतुरमुर्ग मर गया तो 45 से 50 किलों माँस के 45 से पचास हजार रुपए और उसकी चर्बी से 4 से 6 लीटर तेल निकलता है, जो 45 सौ रुपए लिटर बिकता है अर्थात 18 से 27 हजार रुपए। इसके अलावा इसकी चमड़ी से 8 वर्ग फीट लेदर निकलता है और इसके दोनों पंख बेहत कीमती होते हैं। फिर इसके नाखून, दाँत और बालों की अलग अलग कीमतें हैं। कुल मिलाकर यह 100000 के करीब। आय के मामले में ईमू से सैकड़ों गुना अधिक आय प्राप्त होती है।

भारत में शुतुरमुर्ग की तरह विशालकाय ईमू के पालन का प्रचलन धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है। मूलतः यह ऑस्ट्रेलियन पक्षी है। यह केवल एक साल में ही पाँच फुट के हो जाते हैं। जबकि इनकी उम्र करीब 40 वर्ष होती है। 35 वर्ष की उम्र तक यह अंडे देते हैं। ईमू किसी भी वातावरण में रह सकता है। ईमू गर्मी में 52 डिग्री तापमान में रह सकता है तो ठंड में शून्य डिग्री तापमान में भी। भारत में एक जोड़ा ईमू लगभग 20000 रुपए में मिलता है।

भारत में ईमू पालन की शुरुआत 1996 से हुई। वाणिज्य मंत्रालय ने देश के विभिन्न हिस्सों में शुतुरमुर्ग पालन व उसके माँस निर्यात की मंजूरी 1996 में दी थी। आज देश में लगभग एक हजार शुतुरमुर्ग पालन केन्द्र खुल चुके हैं। जिसमें से ज्यादातर फार्म महाराष्ट्र में हैं। आंधप्रदेश, तमिलनाडु, ओडिशा में भी इसका प्रचलन बढ़ गया। देश में हर साल करीब लगभग 33 हजार टन शुतुरमुर्ग-माँस का उत्पादन हो रहा है। यूरोप व अमेरिकी देशो में शुतुरमुर्ग-माँस की माँग बढ़ती ही जा रही है। ग्लोबल आस्ट्रिच इण्डिया प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी ने नवम्बर 1997 में शुतुरमुर्ग के लिए फार्महाउस की शुरुआत की थी। मध्यप्रदेश में भी अब शुतुरमुर्ग फार्म हाउस देखे जा सकते हैं।

*अंडे का कमाल : इसके अंडों का आकार बहुत बड़ा होता है सामान्य मुर्गी के अंडे की अपेक्षा 23 गुना ज्यादा बड़े होते हैं। इसके एक अंडे का वजन 1 से 2 किलो तक का हो सकता है। एक अकेला अंडा ही पूरे परिवार का पेट भर सकता है। इसके एक अंडे से लगभग 14 से अधिक ऑमलेट बन सकते हैं।

शुतुरमुर्ग का अंडा बेहद पोषक होता है। कोलेस्ट्रॉल फ्री ईमू के अंडे की सबसे ज्यादा माँग फाइव स्टार सहित बड़े होटलों में है। इसके एक अंडे की कीमत डेढ़ हजार से दो हजार के बीच है। एक ईमू प्रत्येक वर्ष 15 से 30 अंडे देती है और यह क्रम नियमित 30 सालों तक जारी रहता है।

*माँस से माल : ईमू के अंडे के अलावा इसका माँस 98 फीसदी कोलेस्ट्रॉल फ्री होता है और इसमें सबसे ज्यादा प्रोटीन होता है। डाइबिटीज और हार्ट के मरीज के लिए ईमू का माँस रामबाण की तरह माना जाता है। कई डॉक्टर मरीजों को इसका माँस खाने की सलाह देते हैं।

5 से 6 फीट कद वाले ईमू का वजन 45 से 50 किलो होता है और इसका माँस एक हजार रुपए प्रति किलो बिकता है। एक व्यस्क ईमू की कीमत 50 हजार रुपए से भी अधिक और तीन माह के छोटे ईमू की 10 हजार रुपए है।

*चर्बी का कमाल : अंडा और माँस ही नहीं ईमू की चर्बी भी बहुत कीमती और गुणकारी होती है। ईमू की चर्बी से 4 से 6 लीटर तेल निकलता है। इसका तेल लगभग 45 सौ रुपए प्रति लीटर बिकता है। फर्मास्यूटिकल्स कंपनी दवा बनाने में इसका इस्तेमाल करती है। इसके अलावा फैशन इंडस्ट्री में भी ईमू के तेल की माँग बहुत ज्यादा है। त्वचा और नाखून को सुन्दर बनाने वाले उत्पाद में भी इसके तेल का इस्तेमाल किया जाता है। इसके तेल कई बीमारियों के दर्दों से राहत दिलाता है।

इतना ही नहीं इसकी स्किन (लेदर) बहुत ही मुलायम होती है। इस वजह से अंतरराष्ट्रीय लेदर बाजार में इसकी बहुत माँग है। इसके लेदर से जूते, पर्स, बैग, जैकेट, बेल्ट आदि बनाए जाते हैं। अंतरराष्ट्रीय लेदर ब्रांडों में इसी के लेदर का इस्तेमाल किया जाता है जो काफी मँहगा होता है। विशेषज्ञों का कहना है कि एक ईमू से करीब 8 वर्ग फीट लेदर निकाला जा सकता है।

*पंख का कमाल : इमू के पंखों से फैदर बनता है। वहीं इसकी खाल अच्छी किस्म के महँगे लेदर के तौर पर काम आती है। ईमू के पंख की माँग भी बहुत ज्यादा है। खासकर फैशन, आर्ट एवं क्राफ्ट इंडस्ट्री में। इसके पंख से डस्टर पैड, पंखा, मास्क्स, तकिया, ब्लेजर, ज्वेलरी और क्रॉफ्ट का सामान बनाया जाता है। इस तरह ईमू के मरने के बाद उसके हर अंग को बेचकर पैसा कमाया जाता है।

*ईमू का खान पान : ईमू का खाना भी कोई विशेष नहीं है बल्कि हरी घास, द्घास और मुर्गी दाना इसके लिए पर्याप्त है। एक ईमू पर सालाना 10 से बारह हजार रुपए खर्च होता हैं।

ईमू फर्मिंग के लिए जगह : 10 जोड़ा ईमू पालन के लिए लगभग 6 से 10 एकड़ जमीन का उपयोग करना होता है, जिसमें एक शेट, पानी का होद और खाने का अलग स्थान बनाना होता है। जहाँ कुछ छायादार झाड़ और चारों ओर से फार्मिंग को तारों से कवर्ड किया जाता है। फार्मिंग में पानी की भरपूर व्यवस्था होना जरूरी।

*ईमू फार्मिंग का रख रखाव: ईमू फार्मिंग में साफ सफाई की विशेष व्यवस्था रखना होती है। ईमू को मल को प्रतिदिन फार्म हाउस के बाहर निकालना जरूरी होता है अन्यथा इससे बेक्टिरियाँ फेलने के खतरा रहता है। ईमू के भोजना का जाँच-परख कर ही उन्हें भोजना खिलाएँ। प्रति माह पशुचिकित्सक से ईमू की जाँच कराते रहें। बारिश में ईमू की खास देखभाल की जाती है अन्यथा इनके रोगी होने की संभावना बढ़ जाती है। इसके लिए बेहतर शेड की जरूरत होती है।

कुछ बताते हैं कि मुर्गियों की तरह इसको भारत में किसी भी प्रकार की बीमारी नहीं लगती क्योंकि इसको लगने वाले बैक्टीरिया भारत में नहीं पाए जाते, लेकिन कुछ विशेषज्ञ इस राय से इत्तेफाक रखते हैं। ईमू पालन के लिए भारत सरकार से अनुमति की आवश्यकता होती है। हालाँकि पशु प्रेमी इसके पालन का विरोध करते हैं।

- वेबदुनिया डेस्क

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