बरखा रानी आई कर सोलह श्रृंगार,
आने से उसके छा गई बहार ही बहार।
मेघों की काली साड़ी में लगी अति सुंदर,
बिजली की पायल पहने वह मनहर।
आषाढ़ के पहले बादल ने की उसकी अगवानी,
सावन-भादो में की उसने भी मनमानी।
तोड़ दिए सारे तट बंध ऐसी छाई मस्ती,
वैभव रूप का ऐसा सब मान गए हस्ती।
रह-रहकर बरसाती वह ऐसी रसधार,
मगन हो जाएं सब नाच उठे सारा संसार।
- कवि चौधरी